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कुप्रथाओं पर अंकुश लगाने के लिए समान नागरिक संहिता की आवश्यकता – मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय

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भोपाल. हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा कि समान नागरिक संहिता (यूसीसी) केवल कागजों तक ही सीमित नहीं रहनी चाहिए, बल्कि इसे वास्तविकता बनना चाहिए. न्यायमूर्ति अनिल वर्मा ने कहा कि समाज में कई मूल्यह्रासकारी, कट्टरपंथी, अंधविश्वासी और अति-रूढ़िवादी प्रथाएं हैं, जिन्हें आस्था और विश्वास के नाम पर छिपाया जाता है.

न्यायालय ने कहा कि “हालांकि भारत के संविधान में पहले से ही अनुच्छेद 44 में नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता की वकालत की गई है, इसे वास्तविकता में बदलने की आवश्यकता है. एक अच्छी तरह से तैयार समान नागरिक संहिता, ऐसी अंधविश्वासी और बुरी प्रथाओं पर अंकुश लगाने का काम कर सकती है और राष्ट्र की अखंडता को मजबूत करेगी”.

न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए तथा दहेज निषेध अधिनियम और मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019 के प्रावधानों के तहत आरोपियों के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग वाली याचिका पर निर्णय में यह टिप्पणियां कीं.

शिकायतकर्ता ने अपने पति, सास और ननद पर दहेज के लिए उत्पीड़न का आरोप लगाया था. उसने यह भी आरोप लगाया कि आरोपियों ने उसके साथ मारपीट की और उसके पति ने तीन बार तलाक कहा.

सास और ननद ने अधिकार क्षेत्र के आधार पर एफआईआर को चुनौती दी और तर्क दिया कि पति द्वारा तलाक कहने का प्रावधान केवल उसके खिलाफ लागू होता है, ससुराल वालों के खिलाफ नहीं.

न्यायालय ने सहमति व्यक्त की कि मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019 के प्रावधानों को सास और ननद के खिलाफ लागू नहीं किया जा सकता है और तदनुसार उनके खिलाफ धारा 4 (तलाक कहने की सजा) के अपराध को रद्द कर दिया.

फैसला सुनाने से पहले कोर्ट ने ट्रिपल तलाक को गंभीर मुद्दा बताते हुए इस पर टिप्पणी की.

न्यायामूर्ति ने कहा कि “तलाक मुस्लिम पर्सनल लॉ में डाइवोर्स के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है, जिसका अर्थ है विवाह का विघटन, जब मुस्लिम पुरुष अपनी पत्नी के साथ सभी वैवाहिक संबंध तोड़ देता है. मुस्लिम कानून के तहत, ट्रिपल तलाक का मतलब है विवाह के रिश्ते से तुरंत और अपरिवर्तनीय रूप से मुक्ति, जहां पुरुष, केवल तीन बार तलाक कहकर अपनी शादी को खत्म कर सकता है. इस तरह के तत्काल तलाक को ट्रिपल तलाक कहा जाता है, जिसे ‘तलाक-ए-बिद्दत’ भी कहा जाता है. यह स्पष्ट है कि तलाक-ए-बिद्दत या ट्रिपल तलाक में, शादी को कुछ ही सेकंड में तोड़ा जा सकता है और समय को वापस नहीं लाया जा सकता है. दुर्भाग्य से यह अधिकार केवल पति के पास है और अगर पति अपनी गलती सुधारना भी चाहता है तो निकाह हलाला के अत्याचारों का सामना महिलाओं को ही करना पड़ता है.”

न्यायालय ने कहा कि हालांकि तीन तलाक की प्रथा को शायरा बानो बनाम भारत संघ मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पहले ही अवैध घोषित किया जा चुका है, और इसके खिलाफ कानून 2019 में पारित किया गया था.

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