तेज रफ्तार जिंदगी में शब्दों की रफ्तार थम सी गई है. अपनी भाषा, अपनी बोली के कितने ही शब्दों वजूद सिमटता जा रहा है. विशेषकर कुछ जनजातीय भाषाएं तो बिल्कुल मुहाने पर हैं. अधिकांश जनजातीय भाषाओं का कोई लिखित साहित्य नहीं है, ऐसे में उनके समाप्त हो जाने की आशंका सबसे अधिक है. 1961 में हुई जनगणना में पता चला था कि देश में 1100 भाषाएं बोली जाती थीं, जिसमें अब तक 220 भाषाएं विलुप्त हो चुकी हैं. अगले 50 साल में 150 अन्य भाषाओं का भी यह हाल हो सकता है. जनजातीय भाषाओं- बोलियों की स्थिति ज्यादा खराब है. पांच जनजातीय भाषाएं तो बिल्कुल समाप्त होने की कगार पर हैं. इनमें सिक्किम की माझी भाषा को सबसे ज्यादा खतरा है. इन भाषाओं-बोलियों को बचाने का एक अनोखा तरीका खोजा है – ओदियन लक्ष्मण ने. तमिलनाडु में कोटागिरी के पास रहने वाले ओदियन लक्ष्मण पिछले कई साल से भाषाओं को बचाने के अभियान में लगे हैं. कोटागिरी के सेम्मानरई गांव के जनजातीय बच्चों के लिए ओदियन लक्ष्मण रीडिंग एंड लैंग्वेज रिट्रीवल मूवमेंट चला रहे हैं. इसका उद्देश्य भाषाई गर्व के साथ संस्कृति को भी समझना है. अपने इस अभियान के तहत उन्होंने सेम्मानरई गांव के एक आवासीय विद्यालय में एक लैंग्वेज बॉक्स स्थापित किया है जो गुल्लक की तरह काम करता है. इसमें जनजातीय बच्चों के साथ बाकी बच्चे भी अपनी अपनी भाषा का एक शब्द कागज पर लिखकर बॉक्स में डाल देते हैं. छह महीने में एक बार इस बॉक्स को खोला जाता है. और फिर शब्दों के माध्यम से सबसे ज्यादा योगदान देने वाले बच्चों को पुरस्कृत किया जाता है. बच्चे स्थानीय भाषा के कई शब्द बोलना भूल चुके हैं, लेकिन इस तरह के अनूठे प्रयोग से वे शब्द नहीं भूलते और एक दूसरे की संस्कृति को जानने का भी अवसर मिलता है.
