संघ के प्रचारक राजभाऊ ने गोवा मुक्ति आंदोलन में सर्वोच्च बलिदान दिया था
इंदौर. गोवा को पुर्तगालियों से स्वतंत्र कराने हेतु पुर्तगाली सेना से संघर्ष करते हुए अपने प्राणों की आहुति देने वाले सोनकच्छ के अमर बलिदानी राजाभाऊ महाकाल के बलिदान दिवस पर सोनकच्छ नगर में राजाभाऊ की प्रतिमा का अनावरण एवं लोकार्पण हुआ. अमर बलिदानी राजाभाऊ की प्रतिमा का अनावरण मंत्रोच्चार के बीच श्री अवधूतराव जी मुंगी, राजाभाऊ महाकाल के भतीजे गोपालराव जी महाकाल एवं विनय जी दीक्षित के करकमलों से हुआ.
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता प्रांत प्रचार प्रमुख विनय जी दीक्षित ने राजाभाऊ के प्रेरक जीवन प्रसंगों को सुनाया. इस घड़ी को आनन्द की घड़ी से अधिक समाज और संघ को उऋण होने वाली घड़ी बताया. साधारण से पुजारी परिवार में उज्जैन में जन्मे राजाभाऊ ने अपने संघर्षमय जीवन में असाधारण कार्य किया. क्षिप्रा और महाकाल की भक्ति के बीच ही उनके मन में देशभक्ति का अंकुरण हुआ और दिगम्बर राव तिजारे जी के सम्पर्क में आकर संघ के स्वयंसेवक बने. महाकाल मंदिर के पास लगी मालवा की पहली शाखा में राजाभाऊ ने ध्वजप्रणाम और प्रार्थना की. तिजारे जी के जीवन से कठोर अनुशासन और समर्पण का पाठ अपने जीवन में उतारकर राजाभाऊ 1942 में खंडवा संघ शिक्षा वर्ग के पश्चात आजीवन देशसेवा का व्रत लेकर प्रचारक के रूप में सोनकच्छ आए. कठोर परिश्रम से सोनकच्छ तहसील में 33 से अधिक शाखाएं खड़ी कीं. बंगाल के अकाल के समय सोनकच्छ के कार्यकर्ताओं ने बड़ी मात्रा में सहायता राशि एकत्रित करके भेजी. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने जब कश्मीर के लिये आंदोलन चलाया, तब राजाभाऊ आंदोलन में सम्मिलित होने अपने साथियों के साथ सोनकच्छ से दिल्ली तक पैदल गए. जनसंघ के आह्वान पर राजाभाऊ गोवा मुक्ति आंदोलन में शामिल होने के लिये आठ अगस्त 1955 को सोनकच्छ से गए. 10 अगस्त को इन्दौर में अपने ओजस्वी भाषण में राजाभाऊ ने मातृभूमि के लिये अपने प्राणों की आहुति देने से पीछे नहीं हटने का संकल्प दोहराया. पुणे में राजाभाऊ का सम्पर्क जगन्नाथ राव जोशी, वसंतराव ओक, सरदार हरनाम सिंह और सागर की क्रांतिकारी सहोदरा बहन से हुआ.
पुर्तगाली सेना के साथ हुए संघर्ष में हरिनाम सिंह और वसंतराव ओक के साथ तिरंगा हाथ में थामे सहोदरा बहन और राजाभाऊ तिरंगे की अस्मिता के लिये गोलियाँ खाते रहे. राजाभाऊ की आँख के पास पुर्तगाली सेना की गोली लगने के पश्चात् चिकित्सालय में राजाभाऊ ने प्राण त्यागे. पुणे में अंतिम संस्कार के पश्चात् उनकी अस्थि कलश यात्रा उज्जैन में निकली, जिसमें उज्जैन का संपूर्ण समाज सम्मिलित हुआ.
कार्यक्रम में वीडियों के माध्यम से श्री अवधूतराव जी मुंगी का तेजस्वी एवं मार्मिक संबोधन हुआ. स्वराज अमृत महोत्सव वर्ष में सोनकच्छ में राजाभाऊ की प्रतिमा स्थापना का प्रेरणादायी अवसर पूरे मालवा के लिये गौरव का क्षण है.
कार्यक्रम में राजाभाऊ महाकाल के परिजन और उनके साथी श्री अवधूतराव जी मुँगी, गोपाल जी पँवार, लक्ष्मीनारायण जी की उपस्थिति ने कार्यक्रम को ह्रदयस्पर्शी बना दिया. प्रतिमा अनावरण के पूर्व सोनकच्छ नगर एवं समीपवर्ती ग्रामीण क्षेत्रों से देशभक्त युवाओं की टोलियाँ तिरंगा यात्रा निकालते हुए कार्यक्रम स्थल तक पहुँचीं.