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लाउड स्पीकर का उपयोग किसी भी धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं – बॉम्बे उच्च न्यायालय

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मुंबई। बॉम्बे उच्च न्यायालय ने लाउड स्पीकर के उपयोग को लेकर टिप्पणी की कि लाउडस्पीकर का उपयोग किसी भी धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं है। साथ ही, एजेंसियों निर्देश दिया कि वे ध्वनि प्रदूषण के मानदंडों और नियमों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई करें।

न्यायमूर्ति एएस गडकरी और न्यायामूर्ति एससी चांडक की पीठ ने कहा कि शोर स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा है। कोई भी यह दावा नहीं कर सकता कि अगर उसे लाउड स्पीकर के उपयोग की अनुमति नहीं दी गई तो उसके अधिकार किसी भी तरह प्रभावित होंगे।

उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह धार्मिक संस्थाओं को ध्वनि स्तर को नियंत्रित करने के लिए तंत्र अपनाने का निर्देश दे, जिसमें स्वत: डेसिबल सीमा तय करने की ध्वनि प्रणालियां भी शामिल हों।

कुर्ला उपनगर के 2 आवास संघों (जागो नेहरू नगर रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन और शिवसृष्टि कोऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटीज एसोसिएशन लिमिटेड) की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान न्यायालय ने आदेश दिया। याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया था कि क्षेत्र की मस्जिदों पर लगे लाउड स्पीकर से होने वाले ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ पुलिस कोई कार्रवाई नहीं कर रही है। याचिका में दलील दी थी कि अजान सहित धार्मिक उद्देश्यों के लिए लाउड स्पीकर का उपयोग शांति को भंग करता है। ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियम 2000 के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के प्रावधानों का उल्लंघन करता है।

पीठ ने अपने आदेश में कहा कि ‘यह जनहित में है कि ऐसी इजाजत नहीं दी जानी चाहिए। ऐसी अनुमति देने से इनकार करने पर भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 या 25 के तहत अधिकारों का उल्लंघन नहीं होता है। लाउड स्पीकर का उपयोग किसी भी धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं है।’

राज्य सरकार और अन्य प्राधिकारियों का यह कर्तव्य है कि वे कानून के प्रावधानों के तहत निर्धारित सभी आवश्यक उपाय अपनाकर कानून को लागू करें। ‘एक लोकतांत्रिक राज्य में ऐसी स्थिति नहीं हो सकती कि कोई व्यक्ति/व्यक्तियों का समूह/व्यक्तियों का संगठन कहे कि वह देश के कानून का पालन नहीं करेगा और कानून लागू करने वाले अधिकारी मूकदर्शक बने रहेंगे।’

मुंबई पुलिस आयुक्त को निर्देश दिया कि वे सभी थानों को निर्देश जारी करें कि धार्मिक स्थलों पर लाउड स्पीकर के खिलाफ कोई भी शिकायत मिलने पर तुरंत कार्रवाई हो। ‘हम इस तथ्य का न्यायिक संज्ञान लेते हैं कि आम तौर पर लोग/नागरिक तब तक किसी चीज के बारे में शिकायत नहीं करते जब तक कि वह असहनीय और परेशानी का कारण न बन जाए।’

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