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चुनाव बाद हिंसा की आग में जला बंगाल- एनएचआरसी ने उच्च न्यायालय को सौंपी रिपोर्ट, सीबीआई जांच की सिफारिश

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नई दिल्ली. एनएचआरसी (राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग) ने प. बंगाल में चुनाव बाद हुई हिंसा के मामलों की जांच सीबीआई से करवाने की सिफारिश की है. आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि लोगों का राज्य पुलिस पर विश्वास नहीं रह गया है. एनएचआरसी के जांच दल ने अपनी रिपोर्ट 13 जुलाई को कलकत्ता उच्च न्यायालय को सौंपी है. न्यायालय के निर्देश के बाद आयोग ने संबंधित पक्षों को भी जांच रिपोर्ट की प्रति सौंपी है.

राज्य में हिंसा की घटनाओं में पीड़ितों के प्रति राज्य सरकार की भयावह उदासीनता है और प्रदेश में कानून का शासन नहीं चलता, बल्कि शासक का कानून है. यदि बंगाल में हिंसा नहीं रुकी तो वहां गणतंत्र की हत्या तय है.

एनएचआरसी ने 50 पृष्ठों की रिपोर्ट में कहा कि मुख्य विपक्षी दल के समर्थकों के खिलाफ सत्ताधारी पार्टी के समर्थकों द्वारा की गई प्रतिशोधात्मक हिंसा थी. हजारों लोगों के जीवन और आजीविका में बाधा उत्पन्न की गई और उनका आर्थिक रूप से गला घोंट दिया गया. रिपोर्ट में स्थानीय पुलिस की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाए गए हैं.

कई विस्थापित व्यक्ति अभी तक अपने घरों को वापस नहीं लौट पाए हैं और अपने सामान्य जीवन और आजीविका को फिर से शुरू नहीं कर पाए हैं. कई यौन अपराध हुए हैं, पीड़ितों के बीच राज्य प्रशासन में विश्वास की कमी बहुत स्पष्ट दिखाई देती है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि जांच आयोग को 1,979 शिकायतें मिलीं. अब तक राज्य में 9,384 लोगों के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज हुई है और 1,354 लोग बंद हैं. रिपोर्ट में एक अन्य गंभीर बात यह कही गई कि 97 प्रतिशत आरोपी खुलेआम घूम रहे हैं. आयोग ने सिफारिश की कि बंगाल में हत्या और दुष्कर्म के मामलों की जांच सीबीआई से कराई जाए. अन्य गंभीर अपराधों की जांच के लिए एसआईटी का गठन हो और किसी सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में निगरानी समिति बने.

रिपोर्ट में पीड़ितों के पुनर्वास करने, उन्हें सुरक्षा देने और उनकी आजीविका की व्यवस्था करने की भी बात कही गई है. आयोग ने कहा कि घटनाओं पर निगरानी रखने के लिए हर जिले में एक स्वतंत्र पर्यवेक्षक की तैनाती हो.

रिपोर्ट में कहा गया है कि रविन्द्रनाथ ठाकुर की धरती पश्चिम बंगाल में ‘कानून का राज’ नहीं, बल्कि ‘शासक का कानून’ चल रहा है. यानि सरकार जो बोलती है, उसे ही कानून मानकर राज्य व्यवस्था काम कर रही है. राज्य में संवैधानिक व्यवस्था को ताक पर रख दिया गया है. इसलिए लोग कहने लगे हैं, – ”न कागज, न बही, जो ममता कहे वही सही.”

 

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