सूर्यप्रकाश सेमवाल
संघ संस्कारों को जीने वाले समाज और राष्ट्र के लिए समर्पित होकर शिक्षा, संस्कृति और इतिहास के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान देने वाले पद्मभूषण दर्शनलाल जैन 8 फरवरी को 94 वर्ष की आयु में परमात्मा में लीन हो गए. उन्होंने हरियाणा के यमुनानगर में अपने आवास पर अंतिम सांस ली. मात्र 15 वर्ष की उम्र में भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने वाले दर्शनलाल आजीवन देशभक्ति और समाजसेवा के लिए समर्पित रहे.
सरस्वती नदी को पुनर्जीवित करने में अहम भूमिका निभाने वाले सामाजिक कार्यकर्ता दर्शन लाल बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे. शिक्षा के क्षेत्र में उनका योगदान सदैव अविस्मरणीय रहेगा.
दर्शनलाल जैन का जन्म 12 दिसंबर, 1927 को जगाधरी में उद्योगपति जैन परिवार में हुआ था. किशोरावस्था में भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इस सक्रिय और गंभीर ऊर्जावान कार्यकर्ता को युवा अवस्था में ही बाबूजी के नाम से पहचान मिल गई थी. संघ कार्य में संलग्न रहते हुए जनसंघ में संगठन की ओर से पूर्ण निष्ठा के साथ दायित्व निर्वाह किया, किन्तु चकाचौंध वाली राजनीति को इति कहकर वैचारिक भावाधार के साथ सामाजिक कार्य से जुड़ गए.
जनसंघ के समय उन्होंने समाज सेवा को ही अपने जीवन का लक्ष्य मानते हुए 1954 में जनसंघ द्वारा एमएलसी का प्रस्ताव और बाद में प्रधानमंत्र अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार द्वारा राज्यपाल बनाए जाने का प्रस्ताव भी विनम्र भाव से अस्वीकार कर दिया था.
मन में एक ही संकल्प था कि गांव देहात के अभावग्रस्त बालक-बालिकाओं को व्यवस्थित शिक्षा दिलानी है. युवावस्था से लेकर जीवनपर्यंत शिक्षा दर्शन लाल जैन जी के केंद्र स्थान में रही. इसी संकल्प शक्ति, पुरुषार्थ और संगठन कौशल का परिणाम था कि 1954 में सरस्वती विद्या मंदिर, जगाधरी की स्थापना के बाद यह सिलसिला रुका नहीं और आगे के पांच दशक तक डीएवी कॉलेज फॉर गर्ल्स, यमुनानगर, भारत विकास परिषद हरियाणा, विवेकानंद रॉक मेमोरियल सोसाइटी, वनवासी कल्याण आश्रम हरियाणा, हिंदू शिक्षा समिति हरियाणा, गीता निकेतन आवासीय विद्यालय, कुरुक्षेत्र, और नंद लाल गीता विद्या मंदिर, अंबाला की स्थापना के साथ हरियाणा के विभिन्न स्कूलों और कॉलेजों के संस्थापक, प्रवर्तक और प्रेरक रहे दर्शन लाल जी.
इतिहास के प्रति युवाओं में रुचि बढ़े इसके लिए पाठ्य पुस्तकें तैयार कराई. लगभग तीन दशक तक वे हिन्दू शिक्षा समिति हरियाणा के अध्यक्ष रहे. संस्कार, अनुशासन और देश के वास्तविक इतिहास को जन-जन तक पहुंचाना उनका लक्ष्य रहा. राष्ट्रीय योद्धा स्मारक समिति के माध्यम देशभर में कई स्थानों पर भारत के वास्तविक नायकों के स्मारकों को निर्माण कराया.
लगभग 4 दशक तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हरियाणा प्रांत के संघचालक रहे दर्शन लाल जी ने अहर्निश संघ को जीकर कार्यकर्ताओं के सामने अपना श्रेष्ठ आदर्श प्रस्तुत किया. वर्ष 1948 और 1975 के प्रतिबंधों में उन्होंने जेल यात्राएं की.
सतयुग में जिस प्रकार भागीरथ कठिन तप और परिश्रम कर गंगाजी को धरती पर लाए थे, उसी प्रकार अपना सर्वस्व अर्पित कर लुप्त सरस्वती को जीवंत करने का श्रेय दर्शनलाल जी को जाता है. सरस्वती शोध संस्थान की स्थापना कर विद्वानों, पुरातत्वविदों, इतिहासकारों और आध्यात्मिक विभूतियों से चर्चा परिचर्चा कर इसका व्यापक प्रचार किया. पद्मश्री वीएस वाकणकर और सरस्वती शोध संस्थान के अध्यक्ष दर्शनलाल जैन के नेतृत्व में निरंतर कार्य होते रहे. सरकारों के अतिरिक्त देशभर के उच्चतम शोध एवं शैक्षणिक संस्थाओं को उन्होंने सरस्वती नदी के शोध के लिए प्रेरित किया.
सरस्वती शोध संस्थान के तत्वाधान में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में सरस्वती नदी पर द्विदिवसीय ऐतिहासिक चिंतन शिविर का आयोजन किया गया. कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती ने इस अवसर पर उपस्थित होकर आयोजकों, देश-विदेश से आए विद्वानों और शोधकर्ताओं को संबोधित करने के साथ सरस्वती शोध संस्थान एवं वैज्ञानिकों द्वारा प्रस्तुत शोधपत्रों पर आधारित स्मारिका का विमोचन भी किया.
ऐसे वृहद आयोजन का श्रेय सरस्वती नदी का भगीरथ कहलाने वाले दर्शन लाल जी को ही जाता है. उन्होंने न केवल पौराणिक कालीन इस पवित्र नदी के उद्गम स्थल को ढूंढ़ निकाला, बल्कि उसे प्रवाहित करने के लिए जी-जान लगा दिया.
वर्ष 2004 में केंद्रीय पर्यटन मंत्री जगमोहन ने जन आस्था और दर्शनलाल जी के प्रामाणिक और वैज्ञानिक विश्वास को प्रोत्साहित कर सरस्वती सरोवर के निर्माण में सहयोग कर राज्य सरकार को भी इस अभियान से जोड़ने का कार्य किया.
सरस्वती नदी के भूभाग पर हो रहे कब्जे के खिलाफ वर्षों पहले पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई थी. इस याचिका पर 1996 में फैसला सुनाते हुए हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया था कि नदी की जमीन से कब्जा हटाया जाए. इस कानूनी लड़ाई में दर्शन लाल जी ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई.
पानीपत में शहीद स्मारक बनाने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी. इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भी लिखा था. इनके प्रयास से ये कार्य सफल हो पाया. वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी जब पहली बार यमुनानगर आए थे, तब उन्होंने सार्वजनिक मंच पर दर्शन लाल जैन जी के पैर छूकर आशीर्वाद लिया था.
समाजसेवी व शिक्षाविद दर्शनलाल जैन को विशिष्ट और अद्वितीय योगदान के लिए राष्ट्रपति रामनाथ कोविद ने नई दिल्ली में देश के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मभूषण से सम्मानित किया था. इसे दर्शन लाल जी ने हरियाणा राज्य की सभ्यता व संस्कृति का सम्मान बताया था.
अपना सम्पूर्ण जीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचार और कार्य को समर्पित कर समाज और देश के एक श्रेष्ठ वंदनीय नागरिक और अनुकरणीय व्यक्ति चरित्र बनकर दर्शनलाल जैन जी युवा स्वयंसेवकों को सदैव प्रेरणा देने का कार्य करेंगे.
पावन आत्मा को विनम्र श्रद्धांजलि.