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कोरोना से जंग – भारत में रिकवरी रेट 62 प्रतिशत, मृत्यु दर लगभग 3 प्रतिशत

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सही फैसलों का मिला सही परिणाम, कोरोना से जंग जीत रहा है भारत

कोरोना का संकट भारत में लगातार गहराता जा रहा है, पिछले वर्ष नवम्बर में शुरू हुई इस आपदा ने विश्व भर में अपने पैर पसार दिए हैं और दुनिया भर में अब तक 5,47,120 लोगों की मृत्यु हो चुकी है. कुल संक्रमितों के संख्या के संख्या के लिहाज से बात करें तो भारत विश्व का तीसरा सबसे संक्रमित देश है. कोरोना के कुल मामले अब बढ़कर लगभग सात लाख से ज्यादा हो गए हैं, हालांकि इनमें से 458,489 लोग ठीक भी हो चुके हैं और 20,683 लोगों की मृत्यु हुई है. अनलॉक एक के बाद अब अनलॉक दो शुरू हो चुका है और जनजीवन सामान्य की तरफ लौट रहा है. इस समय में यह विश्लेषण किये जाने की आवश्यकता है कि हमने कोरोना को कितने बेहतर तरीके से संभाला, हमारी सरकार और प्रशासन कोरोना की इस महामारी का प्रबंधन कितने बेहतर तरीके से कर पाए.

क्या कहते हैं आंकड़े?

08 जुलाई के आंकड़ों के मुताबिक भारत में मृत्यु दर 2.8% है और रिकवरी रेट 61.5%, इसका मतलब है कि कोरोना से संक्रमित होने वाले 100 लोगों में से मात्र 3 की मृत्यु होती है और 62 लोग ठीक हो रहे हैं. इन आंकड़ों को और बेहतर तरीके से समझने के लिए चलिए भारत के आंकड़ों की तुलना विश्व के सबसे विकसित और तमाम संसाधनों से संपन्न देश अमेरिका से करते हैं. अमेरिका में कोरोना ने भारत से पहले दस्तक दी थी. अमेरिका के शोध संस्थाओं को दुनिया में सबसे उन्नत और स्वस्थ्य व्यवस्था को आदर्श माना जाता है. उसके बावजूद आज अमेरिका में कोरोना के 30,48,072 मामले हैं और 1,33,322 लोगों की मृत्यु हो चुकी है. अगर प्रतिशत में देखें तो अमेरिका का रिकवरी रेट 43.7% और मृत्यु दर 4.3% है. बहुत से लोग यह तर्क देते हैं कि विकसित देशों में ज्यादा केस मिलने का कारण है कि वहां पर टेस्टिंग ज्यादा हो रही है, यह पूरी तरह से आधारहीन है. अमेरिका में जब कोरोना के 7.5 लाख मामले थे, तब रोज लगभग 1.5 लाख टेस्ट किये जा रहे थे, जबकि भारत आज उस स्थिति में रोज 2.62 लाख टेस्ट कर रहा है.

भारत में कभी भी डेथ रेट पांच प्रतिशत से ऊपर नहीं गया है. वहीं रिकवरी रेट निरंतर बढ़ता जा रहा है. ‘डब्ल्यूएचओ स्थिति रिपोर्ट-168’ के अनुसार भारत में कोविड-19 के मामले प्रति दस लाख की आबादी पर 505.37 है, जबकि वैश्विक औसत 1453.25 है.

जनता का हित पहले

चाणक्य अपनी अर्थ नीति में लिखते हैं – प्रजासुखे सुखं राज्ञः प्रजानां तु हिते हितम्. नात्मप्रियं हितं राज्ञः प्रजानां तु प्रियं हितम.. अर्थात् प्रजा के सुख में राजा का सुख निहित है, प्रजा के हित में ही उसे अपना हित दिखना चाहिए. जो स्वयं को प्रिय लगे उसमें राजा का हित नहीं है, उसका हित तो प्रजा को जो प्रिय लगे उसमें है.

जब कोरोना के संकट की शुरुआत हुई तो विश्व भर के देशों का रवैया इसको लेकर अलग-अलग था, सभी देश अर्थव्यवस्था की चिंता में जकड़े हुए थे. यूके के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने पहले हर्ड इम्युनिटी विकसित करने की रणनीति पर काम करना शुरू किया, अमेरिका जैसा देश भी अर्थव्यवस्था को आगे लेकर चल रहा था. मगर भारत की सरकार ने जनता को अर्थ से आगे रखा. प्रधानमंत्री मोदी ने यह स्पष्ट कर दिया कि हमारी पहली प्राथमिकता हमारे देशवासियों के प्राणों की रक्षा है. हमारी सरकार ने अर्थव्यवस्था से ज्यादा महत्व जनता के जीवन को दिया और 25 मार्च को प्रधानमंत्री मोदी ने देशवासियों से हाथ जोड़कर अपील की कि वे अपने घरों से बाहर न निकलें, जहाँ हैं वहीं रहें. जब भारत में 21 दिनों के पहले लॉकडाउन की शुरुआत की, तब यहां कोरोना के मात्र 519 मामले थे. जबकि 11 लोगों की मृत्यु हुई थी. इन मामलों में से ज्यादातर विदेशों से आए लोगों की थी, इस फैसले ने कोरोना संक्रमण के फैलाव में बड़े रुकावट का काम किया. कई मेडिकल एक्सपर्ट्स का कहना है कि समय रहते लिए गए, इस फैसले के कारण ही भारत में अमेरिका और यूरोप जैसी स्थिति नहीं बनी, भारत के राजनीतिक नेतृत्व की दूरदर्शिता ने एक बड़े खतरे को टाल दिया.

हालांकि लॉकडाउन के असर की सही विवेचना एक विस्तृत अध्ययन के बाद ही की जा सकती है, लेकिन अधिकतर चिकित्सा विशेषज्ञों का मानना है कि लॉकडाउन न होने कि स्थिति में हालात और ज्यादा बिगड़ जाते.

सर गंगा राम अस्पताल के जाने माने लंग सर्जन डॉ. अरविन्द कुमार ने कहा था कि सही समय पर लॉकडाउन के फैसले ने भारत के लिए बहुत ही लाभकारी सिद्ध हुआ और इसके कारण ही यहां यूरोप और अमेरिका जैसी स्थिति नहीं बनी और सबसे महत्वपूर्ण की इसने स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े लोगों और स्थानीय प्रशासन को चुनौती से निपटने की तैयारी के लिए समय दे दिया.

पूरा देश एक परिवार

किसी पद पर बैठ जाने से कोई नेतृत्वकर्ता नहीं बन जाता, यह एक नैसर्गिक गुण है. सक्षम नेतृत्वकर्ता वह है जो लोगों को अपने साथ लेकर चले. प्रधानमंत्री मोदी ने इस पूरे संकट के दौरान राष्ट्र से एक साथ आगे आने का आह्वान किया और यह पूरा देश एक परिवार की तरह साथ खड़ा हो गया. देश भर से ऐसी तस्वीरें आईं, जिसमें लोग मदद के लिए हाथ बढ़ाते दिखे, सामाजिक संगठनों के साथ साथ व्यक्तिगत स्तर पर लोग वंचितों की सहायता के लिए अग्रसर हुए. यह हमारे भारतीय समाज का मूल चरित्र है, जिसे दिशा देने का काम प्रधानमंत्री मोदी ने किया.

इतने बड़े फैसले के बाद भी कुछ अपवादों को छोड़ दें तो कहीं अराजकता की स्थिति नहीं बनी, ‘हम अपने समाज, अपने राष्ट्र के लिए तकलीफ सह लेंगे’ लोग इस मानस के साथ सक्रिय हुए. यह मानस बनाना भी सरकार की एक उपलब्धि है, प्रधानमंत्री मोदी ने पहले जनता कर्फ्यू के माध्यम से लोगों को आने वाले फैसले की झलक दी और लोगों की स्वीकार्यता को देखते हुए पूर्ण लॉकडाउन किया. इस लॉकडाउन में लोग अपने घरों में बंद थे, कुछ घबराये हुए भी थे. लेकिन हमारे प्रधानमंत्री ने देश की उत्सवधर्मिता को जागृत किया. कभी थाली बजाने तो कभी दीप जलाने का आह्वान करके समाज को सक्रिय किया और इसका परिणाम है कि हर व्यक्ति अपने स्तर पर जागरूक है. हर व्यक्ति इस संक्रमण से लड़ाई में अपना सहयोग दे रहा है. अब जब लॉकडाउन में ढील दी जाने लगी है, तब भी हमें अपने इस मानस को बनाए रखना है. समाज में अवसाद न आए, हमें अपनी उत्सवधर्मिता को बनाये रखना है. लेकिन उसके साथ सरकार द्वारा जारी किये गए, गाइडलाइन्स का पालन भी सुनिश्चित करना है. कोरोना से यह जंग हम जरुर जीतेंगे.

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