घुमंतू समाज के लिए कार्यरत महाराष्ट्र की ‘भटके विमुक्त विकास परिषद’
मुंबई (विसंकें). कोरोना काल के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों व संघ प्रेरित संस्थाओं ने समाज के प्रत्येक क्षेत्र में जाकर सेवा कार्य किया. जैसी आवश्यकता थी, उसी रूप में सहायता पहुंचाई. सेवा कार्यों के दौरान समाज का दर्शन व सहयोग हैरान करने वाला व प्रेरणादायी था.
इसी प्रकार घुमंतू समाज में कार्य करने वाली संस्था है, भटके विमुक्त विकास परिषद्. संस्था द्वारा मुंबई की विभिन्न बस्तियों में जाकर सूची तैयार की गई, जिनके पास काम नहीं है, अथवा जिनके पास आधार, पैन कार्ड, राशन कार्ड नहीं है, ऐसे लोगों के नाम, पारिवारिक सदस्य संख्या और फोन नंबर लिए गए. उन्हें परिषद्, स्वयंसेवकों द्वारा संचालित कम्युनिटी किचन, सेवा सहयोग आदि के माध्यम से खिचड़ी का वितरण किया गया. राशन किट भी वितरित किये गए. किट में दाल, चावल, तेल, नमक एवं लाल मिर्च, चाय पत्ति आदि था. मुंबई की कुल २३ बस्तियों में २९८७ राशन किट और इस के अलावा कोंकण प्रान्त में २० बस्तियों में ८८५ किट वितरित किए गए. अनेक बस्तियों में आर्सेनिक अल्बम का भी वितरण किया गया.
मुंबई व कोंकण प्रांत के अन्य क्षेत्रों में 60-70 प्रतिशत बस्तियों में सहायता पहुंचाई. इन बस्तियों में ऐसे अनेक उदाहरण स्वयंसेवकों के समक्ष आए, जिनसे न केवल स्वयंसेवकों का उत्साहवर्धन हुआ, अपितु वे समाज के लिए भी अनुकरणीय थे. संकट के समय में भी हम दूसरों की चिंता करते हैं, संतोष से जीवन व्यतीत कर सकते हैं.
बोरीवली की एक बस्ती में एक वृद्ध महिला, अपनी विधवा बहु और पोते के साथ रह रहे थे. स्वयंसेवक बस्ती में राशन किट का वितरण कर रहे थे, इसी में उनके घर भी राशन किट देने पहुंचे. तो महिला ने यह कहते हुए कि उन्हें दूसरी संस्था से पहले ही राशन किट मिल चुका है, स्वयंसेवकों द्वारा दी जा रही किट लेने से विनम्रता से इंकार कर दिया. अन्य जरूरतमंद को देने का आग्रह किया. महिला ने स्वयंसेवकों से पूछा कि बच्चे के लिए दूध उपलब्ध हो सकता है क्या? स्वयंसेवकों ने बच्चे के लिए दूध उपलब्ध करवाया. दूसरे दिन महिला ने किसी से स्वयंसेवक का फोन नंबर पता करके फोन किया तथा दूध उपलब्ध करवाने के लिए आभार व्यक्त किया. साथ ही कहा, कल दूध न भेजें, जब आवश्यकता होगी स्वयं फोन करके बता देंगे.
महिला चाहतीं तो संकट को देखते हुए राशन, दूध लेकर जमा करके रख सकतीं थीं. लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया, महिला का स्वार्थ रहित भाव स्वयंसेवकों को उत्साहित करने वाला था.
कोंकण प्रांत में अनेक घुमंतू समाज दिखाई देते है. इनमें वडार, मांग गारुडी, कैकड़ी, कंजारभाट, बंजारा, अनेक जातियों का अंतर्भाव होता है. लॉकडाऊन के कालखंड में अनेकों व्यक्तियों को अपने रोजगार से हाथ धोना पड़ा. इनमें से कुछ घुमंतू भले अपना पारंपरिक व्यवसाय कर रहे हैं, परन्तु अधिकांश लोग मजूरी, बिगारी काम करते दिखाई देते हैं. लॉकडाऊन के बाद इनके काम बंद हो गए. पारंपरिक व्यवसाय भी बंद होने लगे. दो समय के खाने का प्रश्न निर्माण हुआ. सर्वसामान्य नागरिकों के पास अपना आधार कार्ड, राशन कार्ड होता है. उन्हें सस्ते में राशन और अन्य जीवनावश्यक वस्तुएं जो शासन द्वारा उपलब्ध कराइ गयी वो मिल गयी. परन्तु घुमंतू समाज के अनेकों नागरिकों के पास ना आधार कार्ड है और न ही राशन कार्ड. उन्हें यह सभी सुविधाएं प्राप्त होने में अड़चनें आने लगीं. शहरी भागों में घुमंतू लोगों की बस्ती है. वडाला, विक्रोली, मुलुंड, कांदिवली, भिवंडी, नवी मुंबई, पनवेल आदि.
घुमंतू समाज के लिए कार्य करने वाली अन्य संस्थाओं ने भटके विमुक्त विकास परिषद को संपर्क किया और मदद के लिए विचार किया. समाजवादी विचारों से सम्बंधित रानी वैदू (परिवर्तित नाम) ने परिषद को संपर्क किया और वैदू समाज की बस्ती में मदद करने का आग्रह किया. जनकल्याण समिति द्वारा वैदू समाज की बस्ती में राशन किट उपलब्ध करवाए गए.
राठौड़ जी विधान परिषद में कांग्रेस प्रतिनिधि हैं. वे बंजारा समाज के लिए काम करते है. उन्होंने संघ के कार्यालय में संपर्क किया और बंजारा समाज की अड़चनें बताईं और ११ बस्तियों की जानकारी भी दी. इनमें से तक़रीबन ८ बस्तियों में राशन किट उपलब्ध करवाई गई. भटके विमुक्त विकास परिषद हो, संघ हो, या जनकल्याण समिति हो, इन सभी संस्थाओं ने बिना किसी भेदभाव समय की आवश्यकता को देखकर जरूरतमंदों तक मदद पहुंचाई. भिवंडी में परिषद् द्वारा निःशुल्क ओपीडी चलाकर वैद्यकीय सेवा उपलब्ध करवाई गई.