जयपुर. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ राजस्थान क्षेत्र के क्षेत्र प्रचारक निंबाराम ने कहा कि हमें पंच प्रण – विकसित भारत, गुलामी की हर सोच से मुक्ति, विरासत पर गर्व, एकता और एकजुटता और नागरिक अनुशासन के माध्यम से समाज में परिवर्तन लाना होगा. हमारा देश विश्व पटल पर अपनी एक विशेष पहचान बना सके.
क्षेत्र प्रचारक सोमवार को बिड़ला ऑडिटोरियम में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की स्थापना के 75वें वर्ष के उपलक्ष्य में आयोजित ‘अमृत महोत्सव समारोह’ को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी की कविता से अपना उद्बोधन प्रारंभ किया – ‘कभी थे अकेले हुए आज इतने, तब न डरे तो भला अब डरेंगे’. उन्होंने कहा कि परिषद 75 वर्ष का हो गया है. इसलिए देशभर में अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है. देश में हो रहे सकारात्मक परिवर्तन में अभाविप के आंदोलनों का बड़ा योगदान रहा है. अभाविप एकमात्र ऐसा छात्र संगठन है जो 365 दिन कार्य करता है. अन्याय के विरोध में अभाविप के कार्यकर्ता लड़ते हैं. स्वाधीनता की जब शताब्दी आएगी, तब भारत कैसा होगा, इस पर विचार करना होगा. आने वाले 25 वर्ष बहुत महत्वपूर्ण हैं. वर्तमान में देश में अमृतकाल चल रहा है. युवाओं में राष्ट्रभक्ति निरंतर प्रज्ज्वलित रहनी चाहिए.
उन्होंने कहा कि अभी हाल में हमने देखा कि हमारे वैज्ञानिकों ने किस तरह से चंद्रमा पर चंद्रयान को उतारा. यह नजारा पूरी दुनिया ने देखा था. जब हम एक तरफ चंद्रमा पर जीवन बसाने के बारे में सोच सकते हैं, ऐसे में आपस के भेदभाव भी समाप्त करना होगा. हमारी कथनी और करनी समान होनी चाहिए. सामाजिक समरसता कैसे बढ़े इस पर विचार करना चाहिए. ‘हम बदलेंगे-युग बदलेगा, हम सुधरेंगे-युग सुधरेगा’ के नारे को बुलंद करना होगा. इसकी शुरूआत अपने घर-परिवार से करनी होगी.
उन्होंने कहा कि हमारे अंदर स्व का भाव जाग्रत होना चाहिए. पर्यावरण और स्वदेशी को लेकर कुटुंब प्रबोधन होना चाहिए. स्वदेशी को केवल वस्तुओं तक सीमित नहीं रखे. स्वदेशी के बारे में कहा जाता है कि ‘वोकल फॉर लोकल’ यानी जो लोकल है, जो हमारे गांव में या हमारे शहर में बनता है. दूसरे शहर से क्यों लाना? जो हमारे अपने प्रदेश में है, वह दूसरे प्रदेश से क्यों लाना? अपनी विरासत और संस्कृति गर्व करें. इसके लिए अंग्रेजों से पहले के भारत को अवश्य पढ़ें. हमें औपनिवेशिक मानसिकतसा से बाहर निकलना होगा.
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री प्रफुल्ल अकान्त ने कहा कि अभाविप में कार्यकर्ता सतत बदलते रहते हैं. किसी लक्ष्य के साथ इतने साल पूरा कर लेना बड़ी बात है. इसके उद्देश्य को समझना आवश्यक है, ‘देश हमें देता है सब कुछ, हम भी तो कुछ देना सीखें’. ये है अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का उद्देश्य. संगठन ‘राष्ट्र प्रथम है’ के भाव के साथ काम कर रहा है. छात्र समुदाय केवल समस्याओं को गिनाने वाला नहीं है, बल्कि परिषद ने ऐसा आंदोलन खड़ा किया जिसमें ‘समस्या नहीं समाधान’ के भाव को जागृत किया. उन्होंने कहा कि अभाविप एक राष्ट्र और एक संस्कृति के विचार को लेकर आगे बढ़ा है. हमारा विचार और हमारा चिंतन शाश्वत है. इसे कोई पराभूत नहीं कर सकता. भारत के उदय से विश्व शांति का मार्ग प्रशस्त होगा.
कार्यक्रम में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के पुराने व नए कार्यकर्ता, जयपुर प्रांत के विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों में अध्ययनरत विद्यार्थी व प्राध्यापक कार्यकर्ता, शिक्षाविद्, पूर्व कार्यकर्ता, प्रबुद्ध नागरिक एवं सामाजिक कार्यकर्ता भी उपस्थित रहे. महोत्सव की शुरुआत सांस्कृतिक कार्यक्रम से हुई.