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“हमें सेवा और संस्कार से समाज का निर्माण करना है” – डॉ. मोहन भागवत जी

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12 July, 2022

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने चित्रदुर्ग के श्री शिवशरण मदाराचन्नाय गुरुपीठ में दलित और पिछड़ा वर्ग के 21 संतों के साथ संवाद कार्यक्रम में भाग लिया.

जगद्गुरु डॉ. श्री शांतावीरा महास्वामी जी, जगद्गुरु श्री इमाददी सिद्धरामेश्वर महास्वामी जी, जगद्गुरु श्री डॉ. पुरुषोत्तमानंद स्वामी जी, जगद्गुरु श्री कृष्ण यादवानंद स्वामी जी, जगद्गुरु श्री बसवा मचिदेव महास्वामी जी, श्री अन्नदानी भारती अप्पन्ना स्वामी जी, जगद्गुरु श्री बसवकुंबारा गुंडया स्वामी जी, जगद्गुरु श्री शांताभिष्म अंबिगर चौदैह महास्वामी जी, जगद्गुरु श्री बसव भृंगेश्वर महास्वामी जी, जगद्गुरु डॉ. श्री बसवकुमार महास्वामी जी, जगद्गुरु श्री दयानंदपुरी महास्वामी जी, जगद्गुरु श्री इम्मादी केतेश्वर महास्वामी जी, जगद्गुरु श्री बसवा नागदेव महास्वामी जी और अनेक श्रद्धेय संतों ने भाग लिया. इसकी अध्यक्षता करने वाले पूज्य श्री श्री बसवमूर्ति मदारा चन्नैया स्वामी जी ने सभी का स्वागत किया.

डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि “संघ से संबंध राजनीतिक नहीं है, धर्म और आध्यात्मिक है. राजनेताओं से ज्यादा संत वृंद संघ के अधिक करीब हैं. हमारे समाज का कुछ वर्ग पिछड़ा हुआ है, क्योंकि सम्बन्ध टूट गया था. सभी अंगों को अच्छी स्थिति में रखना हिन्दू समाज का कर्तव्य है. बार-बार जुड़ने से यह ठीक हो जाएगा, इसे सद्भाव कहते हैं. संघ इसके लिए प्रयास कर रहा है. समाज के सभी अंगों के प्रति संवेदनशीलता होनी चाहिए. जैसे-जैसे हम एक-दूसरे को अधिक जानते हैं, हम एक-दूसरे को बेहतर तरीके से जान सकते हैं. जब जागरूकता बढ़ती है, तो संदेह और अविश्वास गायब हो जाते हैं. तब मन एक हो जाता है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और संतों को एक दूसरे से बार-बार मिलना चाहिए.”

“हिन्दू समाज की महत्वपूर्ण समस्याएं जैसे अस्पृश्यता, असमानता बस हमारे दिमाग में हैं. शास्त्रों में कोई समस्या नहीं है. और ये मुद्दे हमारे दिमाग में कई सदियों से बने हुए हैं. इसलिए समाधान में समय लगेगा. इसे धीरे-धीरे दिमाग से निकालना होगा. तब तक हमें धैर्य और साहस रखना होगा. और हम ऐसा करने में तत्पर हैं. अगर भारत को भारत रहना है तो हमें स्वयं हमारी तरह रहना होगा. नहीं तो भारत भारत नहीं रहेगा. इसलिए धर्म हर जगह प्रसारित होना चाहिए. धर्म से परिवर्तित होना हममें अलगाव लाता है. यह धर्मान्तरित लोगों को जड़ से दूर करता है. इसलिए हमें धर्म परिवर्तन को रोकने का प्रयास करना चाहिए.”

“हमें संस्कारों पर भी ध्यान देना चाहिए. बड़ों का सम्मान करते हुए, हमारी माताओं से कैसा व्यवहार करना चाहिए? ये हमारे समाज की नई पीढ़ी को सिखाना चाहिए. आधुनिक शिक्षा के साथ शिक्षण तो मिल रहा है, लेकिन संस्कृति थोड़ी दूर होती जा रही है. संस्कार, निष्ठा दृढ़ होनी चाहिए, जिसका अर्थ है कि किसी न किसी प्रकार का धार्मिक कार्य अवश्य करना चाहिए. आप, नित्य तपस्या करने वाले संतवृंद हैं. आप अपने जीवन से प्राप्त संस्कार को आने वाली पीढ़ियों को देने के अधिकारी हैं. आपको समाज को सभ्य समाज बनाना है, सब मिलकर आगे बढ़ सकते हैं. हमें सेवा और संस्कार से समाज का निर्माण करना है. हमें सत्य को प्राप्त करके सबकी सेवा करनी है.”

“आप सभी संत आज जो प्रयास कर रहे हैं, वह बीज रूप में है. यह निश्चित रूप से बढ़ेगा, फल और छाया देता है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आपके साथ है. कुछ भी हो, संघ आपके साथ है. हमारी अपनी शैली है. हम इसे वैसे ही करते हैं. जुड़ाव का तरीका बहुत स्वाभाविक है. संघ की गति धीमी है. यदि आप धीरे-धीरे जाते हैं, तो आप दूर तक जा सकते हैं. हम लोग आपके साथ हैं. हम आपके साथ रहेंगे. इसलिए नहीं कि हम बड़े हैं. बल्कि यह हमारा कर्तव्य है, इसलिए संघ को जानने का प्रयास करें. हम सब हिन्दू समाज के अभिन्न अंग हैं.”

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