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जहां राम का नाम जुड़ जाए, वहां कोई बाधा नहीं रहती

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जयपुर. जहां राम का नाम जुड़ जाए, वहां कोई बाधा नहीं रहती. इसी कथन को चरितार्थ करते हुए आज बहुत से दृष्टिबाधित दिव्यांग मन की आंखों और अंगुलियों के स्पर्श से अखंड रामायण व सुंदरकांड का पाठ कर रहे हैं, जो अब उनकी आजीविका का माध्यम भी है. जयपुर स्थित लुई ब्रेल दृष्टिहीन विकास संस्थान ने उन्हें यह अवसर दिया है. दिव्यांग जन ब्रेल लिपि के माध्यम से पढ़ना सीखते हैं. और अभ्यास से रामचरितमानस पढ़ना सीखा. पूर्व में संस्थान में पढ़ चुके युवा भी यहां पढ़ने आने वाले विद्यार्थियों को ब्रेल लिपि के माध्यम से अखंड रामायण पाठ का अभ्यास करवा रहे हैं.

लुई ब्रेल दृष्टिहीन विकास संस्थान में सचिव ओमप्रकाश अग्रवाल ने बताया कि छह बिंदुओं के समायोजन से बनी ब्रेल लिपि को अंगुलियों के स्पर्श से पढ़ा जाता है. लिपि में पूरी रामचरितमानस लिखी हुई है. बहुत से बच्चों ने ब्रेल लिपि में रामचरितमानस पढ़ने का अच्छा अभ्यास कर लिया है और वे भी कुछ पूर्व छात्रों की भांति इसे अपनी आजीविका का माध्यम बनाना चाहते हैं. 44 वर्ष पहले संस्थान की स्थापना करने वाले अग्रवाल स्वयं भी दृष्टिबाधित हैं.

उन्होंने बताया कि उनके संस्थान से शिक्षा प्राप्त कर चुके चाकसू निवासी रामकिशोर जयपुर आकर प्रति सप्ताह मंगलवार, शनिवार या प्रतिदिन ही अपने यजमानों के यहां अखंड रामायण अथवा सुंदरकांड का पाठ करवाते हैं. कागज पर अंगुलियां फिराते हुए दिव्यांग जन बड़े मनोरम भाव से रामचरितमानस की चौपाइयों का सांगीतिक प्रस्तुतिकरण कर श्रोताओं को भावविभोर कर देते हैं. ब्रेल लिपि के माध्यम से रामायण पाठ सीखने वाले 12 छात्रों ने रामायण पाठ को ही अपनी आजीविका अर्जन का माध्यम बनाया है.

विद्यालय में पूर्व छात्र रहे शिक्षक सलिल तिवारी व बसंत लाल बताते हैं कि अपने छात्र जीवन के समय से ही संस्थान में प्रत्येक मंगलवार व शनिवार को रामायण पाठ करवाते थे. यहीं से छात्रों में धार्मिक श्रद्धा बलवती हुई और रामायण पाठ को ही आजीविका का साधन बना लिया. नित्य प्रतिदिन पाठ करने के अभ्यास से कई चौपाइयां अब अच्छी तरह याद हो गई हैं.

सात दृष्टिबाधित सदस्यों वाला यह समूह ब्रेल लिपि में लिखी रामायण व गीता का पाठ कर आजीविका अर्जित कर रहा है. समूह के सातों सदस्य प्रतिदिन रामायण पाठ का अभ्यास करते हैं. इनका कहना है कि बचपन से ही हमें ब्रेल लिपि में रामायण के साथ अन्य धार्मिक ग्रंथ भी पढ़ाए गए. इसी अभ्यास ने आज हमें हमारी आजीविका भी दिलवाई. समूह को जहां कहीं भी पाठ के लिए बुलाया जाता है, वहां पर भगवत्भक्ति के साथ कार्य सुगमता से कर रहे हैं.

देश के अन्य हिस्सों जैसे, भोपाल, उत्तर प्रदेश में भी कुछ ऐसी मंडलियां हैं. ये सभी रामायण पाठ कर प्रभु भक्ति के साथ साथ अपनी आजीविका भी जुटा लेते हैं. राम काज के लिए मन की आंखों और अंगुलियों के स्पर्श से पढ़कर रामायण पाठ करने वाले ये बंधु समाज के लिए प्रेरणा हैं.

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