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मतदान करते समय राष्ट्र के व्यापक लक्ष्य को नहीं भूलना चाहिए – राम माधव जी

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काशी (विसंकें).

लोकतंत्र में हर एक जन का है कर्तव्य और अधिकार,

लोकतंत्र को विजयी बनावे, कर प्रयोग निज मत अधिकार.

लोकतंत्र में चुनाव का उद्देश्य है कि वर्तमान और भविष्य उज्ज्वल हो. मत देते समय वर्तमान का चिंतन आवश्यक है, परन्तु व्यापक लक्ष्य को नहीं भूलना चाहिए. परिवर्तन का सारथी ऐसे व्यक्ति को बनाना चाहिए जो हर नागरिक को देश में हो रहे बदलाव के प्रति गौरवान्वित कराता हो.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य राम माधव जी ने “मतदान – हमारा अधिकार भी, परम कर्तव्य भी” विषयक लोकमत परिष्कार संगोष्ठी को सम्बोधित किया.

लोक जागरण मंच, काशी द्वारा भेलूपुर स्थित सी.एम. एंग्लो बंगाली इंटर कॉलेज में आयोजित संगोष्ठी में कहा कि भारत की संसद में लोकसभा सभापति के आसन के ऊपर धर्मचक्र प्रवर्तनाय लिखा है. जिसका अर्थ है, धर्मचक्र चलते रहना चाहिए. ऐसे में धर्म निरपेक्षता की बात अप्रासंगिक हो जाती है. पिछले 10 वर्षों में मतदान के उचित प्रयोग से एक नये भारत का चित्र दुनिया के सामने आया है. आधारभूत परिवर्तन के अलावा सांस्कृतिक परिवर्तन भी देश की दशा को बदल रहा है. हम सभी इस सांस्कृतिक परिवर्तन को 5 बिन्दुओं के अंतर्गत देख सकते हैं.

प्रथम बिंदु के रूप में सामाजिक सांस्कृतिक परिवर्तन की चर्चा की. देश के नागरिकों में यह भाव जगा है कि हम सभी इस राष्ट्र के भागीदार हैं. वर्तमान में आर्थिक शुचिता का यह रूप एक नई आर्थिक संस्कृति को जन्म देता है, यही दूसरा बिंदु है. तीसरे बिंदु में बताया कि आज देश के सामान्य नागरिक के मन में अपनी सुरक्षा का भाव नयी सुरक्षा संस्कृति का निर्माण करता है. चौथे बिंदु की चर्चा करते हुए कहा कि भारत वर्तमान में भी गुटनिरपेक्ष है. परन्तु वर्तमान भारत अपने लोकहित को सर्वोपरि मानते हुए दुनिया में सभी से मित्रता रखता है. अंत में देश की धार्मिक व्यवस्थाओं के अन्दर व्यापक परिवर्तन की चर्चा की.

एनी बेसेंट का कथन देते हुए राम माधव जी ने कहा कि इस देश का धर्म समाप्त हो गया तो भारत समाप्त हो जाएगा. विशिष्ट अतिथि के रूप में मंचासीन संत रविदास मन्दिर के महन्त भारत भूषण जी ने कहा कि राष्ट्र ऐसा होना चाहिए, जहाँ सभी का पेट भर सके और सभी में समरसता की भावना हो. विशिष्ट अतिथि पद्मश्री डॉ. के.के. त्रिपाठी ने कहा कि लोकतान्त्रिक व्यवस्थाओं का वर्णन वैदिक काल में भी है. हमें मतदान द्वारा ऐसी परंपरा को जन्म देना चाहिए, जिससे सारे देश में काशी का सम्मान बढ़े. कार्यक्रम के अध्यक्ष गोरखपुर विश्वविद्यालय के कृतकार्य आचार्य पद्मश्री राजेश्वर आचार्य ने कहा कि काशी का प्रत्येक व्यक्ति समझावन भी जानता है और बुझावन भी जानता है. ऐसे में काशी की प्रतिष्ठा और निष्ठा को स्थापित करने के लिए अपने मताधिकार का प्रयोग करे.

वेंकट रमन घनपाठी ने स्वस्तिवाचन किया. धन्यवाद ज्ञापन कार्यक्रम संयोजक राहुल सिंह एवं संचालन डॉ. हरेन्द्र राय ने किया.

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