प्रथम सत्र : हिन्दू संस्कृति में महिलाओं को समान अधिकार
काशी. संस्कृति संसद के ‘सनातन हिन्दू धर्म के अनुत्तरित प्रश्न’ विषयक प्रथम सत्र के अध्यक्ष एवं जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानन्द सरस्वती ने कहा कि हिन्दू संस्कृति में महिलाओं को समान अधिकार है. स्त्री एवं पुरुष दोनों एक ही परमेश्वर के दो भाग हैं, इसका उल्लेख मनुस्मृति में है. स्त्री विभिन्न रूपों में पूजनीय है. यह मान्यता मात्र हिन्दू संस्कृति में है. उन्होंने हिन्दू संस्कृति में नारियों की स्थिति सम्बंधी प्रश्न के उत्तर में यह कहा.
इसी क्रम में प्रो. रामकिशोर त्रिपाठी ने कहा कि वर्तमान समय में विद्वानों एवं सन्तों को हिन्दू संस्कृति की रक्षा के लिए विदेशों की यात्राएं करनी चाहिए. समुद्र पारगमन पर रोक सुरक्षा की दृष्टि से थी क्योंकि उस समय यात्रा नौका से होती थी, जो सुरक्षित नहीं थी. वर्तमान तकनीकी युग में यह प्रतिबंध उचित नहीं है.
प्रो. रामनारायण द्विवेदी (महामंत्री, काशी विद्वत परिषद) ने कहा कि बिना महिलाओं के कोई यज्ञ नहीं होता, ऐसी हिन्दू धर्म की व्यवस्था है. इसलिए महिला उपेक्षा का आरोप धर्ममान्य नहीं है. प्रो. वाचस्पति त्रिपाठी ने कहा कि हिन्दू संस्कृति में नारी अपमान का आरोप विरोधियों का कुप्रचार है. नारी उपनयन के रूप में विवाह को मान्यता है. विवाह के उपरान्त कुल संचालन ही उसकी दीक्षा एवं जीवनचर्या का भाग है. महिलाओं को पुरुषों से प्रमुख स्थान दिया गया है. इसीलिए कृष्ण के पहले राधा, राम के पहले सीता, का उच्चारण होता है. इस तरह के अनेकों उदाहरण हैं जो महिला सम्मान को प्रदर्शित करते हैं. इस सत्र का संचालन गंगा महासभा के गोविन्द शर्मा, राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) ने किया.
द्वितीय सत्र : हिन्दू संस्कृति है विश्व की श्रेष्ठतम संस्कृति
भारत की प्राचीनतम अखण्डित संस्कृति की वैश्विक छाप एवं वर्तमान परिदृश्य विषयक संस्कृति संसद के दूसरे सत्र के मुख्य वक्ता योगानन्द शास्त्री (पोलैण्ड) ने कहा कि पोलैण्ड के आसपास लगभग एक हजार क्षेत्र ऐसे हैं, जहां की संस्कृति प्राचीनकाल में हिन्दुत्व की थी. वह संस्कृति संसद के दूसरे सत्र में वाराणसी नगर निगम परिसर स्थित रुद्राक्ष सभागार में आयोजित तीन दिवसीय संस्कृति संसद में बोल रहे थे. उन्होंने भारतीय संस्कृति को अपनाए जाने के प्रश्न के उत्तर में कहा कि यह संस्कृति निःस्वार्थ भाव को बढ़ावा देती है, इसलिए आकर्षित होना स्वभाविक है. पोलैण्ड में पोलैण्ड टाइम्स, संस्कृति से जुड़ी पुस्तकों का प्रकाशन एवं प्रसार करती है.
दूसरे वक्ता योगाचार्य दिव्यप्रभा (ब्रिटेन) ने हिन्दू धर्म के खिलाफ हो रहे कुप्रचार के कारणों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हिन्दू धर्म संस्कृति एक प्रकाश की भांति है जो अपनी रोशनी चारों ओर फैला रही है, उसको आरोपों द्वारा छिपाया नहीं जा सकता. हिन्दू सदा हिंसा से दूर रहता है. वास्तव में हर व्यक्ति दुःख से मुक्त होना चाहता है और सुख-शांति चाहता है. यह मार्ग हिन्दू धर्म बताता है. इस सत्र का संचालन दैनिक जागरण के स्थानीय संपादक अनन्त विजय ने किया.
तृतीय सत्र : युवा समस्याओं का समाधान श्रेष्ठ संस्कारों से
संस्कृति संसद के तृतीय सत्र ‘भारतीय युवा; जीवन मूल्य एवं सामाजिक सदाचार’ के मुख्य वक्ता लद्दाख के लोकसभा सांसद जमयांग सिंरग नामग्याल ने कहा कि भारतीयता की भावना भारतीय संस्कृति से उत्पन्न होती है. भारतीय संस्कृति द्वारा आत्मसाहस पैदा होता है. वर्तमान समय में भ्रष्टाचार, गरीबी, बेरोजगारी जैसी समस्याएं हैं. इसे समाप्त करने के लिए युवकों को आगे आना चाहिए. काशी महत्वपूर्ण केन्द्र है. यहां से युवकों को प्रेरित करने के लिए आवश्यक कदम उठाने चाहिए. उन्होंने कहा कि मजबूत संस्कार से ही नकारात्मकता दूर होगी और संस्कृति बचेगी.
राज्यसभा सांसद एवं संस्कृति संसद के आयोजन समिति की अध्यक्ष रुपा गांगुली ने कहा कि हिन्दू संस्कृति कभी भी हिंसक एवं हमलावर नहीं रही. वर्तमान समय में हिन्दू संस्कृति पर निरंतर प्रहार हो रहे हैं, उससे सजगतापूर्वक संघर्ष की जरूरत है.
स्वामी कृष्णानंद ने कहा कि हम बुराइयों से संघर्ष करने से पीछे हट रहे हैं. विश्व मे सर्वाधिक युवाओं वाला देश भारत है और यहां युवकों में नैतिक आचरण के लिए सांस्कृतिक जागरण आवश्यक है. यह संस्कृति संसद आने वाली पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत बनेगा. भारतीय संस्कृति का प्रथम आधार परिवार है.
वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष शुक्ल ने कहा कि गीता का पहला शब्द धर्म है, जबकि अंतिम शब्द मम: है, जिसका अर्थ है मेरा धर्म. अगर आप अपने कार्य के साथ वफादार नही हैं तो आप अधर्मी हैं. अगर हम संस्कृति को अगली पीढ़ी के पास स्थानांतरित नही करेंगे तो आने वाली पीढ़ी कैसे हमारे संस्कारों को समझ पाएगी. मोबाइल ने युवकों की भाषा बिगाड़ दी है जिससे पिछले १५-२० वर्षों में भाषायी गिरावट आई है. आगामी पीढ़ी को श्रेष्ठ बनाने के लिए हमें संस्कृति का ज्ञान उन्हें अवश्यक देना चाहिए.
समानान्तर सत्र : समान नागरिक संहिता है भारतीय संविधान की आत्मा
‘एक देश एक विधान, हमारा देश हमारे कानून’ विषय पर समानांतर सत्र को संबोधित करते हुए अश्विनी उपाध्याय, वरिष्ठ अधिवक्ता, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि देश को विकास के लिए समान नागरिक संहिता आवश्यक है. समान नागरिक संहिता भारतीय संविधान की आत्मा है. अंग्रेजों द्वारा १८६० में बनाई गई भारतीय दंड संहिता, १९६१ में बनाया गया पुलिस एक्ट, १८७२ में बनाया गया एविडेंस एक्ट और १९०८ में बनाया गया सिविल प्रोसीजर कोड सहित सभी कानून बिना किसी भेदभाव के सभी भारतीयों पर समान रूप से लागू हैं. पुर्तगालियों द्वारा १८६७ में बनाया गया पुर्तगाल सिविल कोड भी गोवा के सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू है, लेकिन विस्तृत चर्चा के बाद बनाया गया आर्टिकल ४४ अर्थात् समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए कभी भी गंभीर प्रयास नहीं किया गया और एक ड्राफ्ट भी नहीं बनाया गया. अब तक १२५ बार संविधान में संशोधन किया जा चुका है और ५ बार तो सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी पलट दिया गया. लेकिन ‘समान नागरिक संहिता या भारतीय नागरिक संहिता’ का एक मसौदा भी नहीं तैयार किया गया, परिणाम स्वरूप इससे होने वाले लाभ के बारे में बहुत कम लोगों को ही पता है.
उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में अलग- अलग धर्म के लिए लागू अलग-अलग ब्रिटिश कानूनों से सबके मन में हीन भावना व्याप्त है. इसलिए सभी नागरिकों के लिए एक ‘भारतीय नागरिक संहिता’ लागू होने से हीन भावना से मुक्ति मिलेगी. ‘एक पति-एक पत्नी’ की अवधारणा सभी पर समान रूप से लागू होगी और बांझपन या नपुंसकता जैसे अपवाद का लाभ एक समान रूप से मिलेगा, चाहे वह पुरुष हो या महिला, हिन्दू हो या मुसलमान, पारसी हो या इसाई. विवाह-विच्छेद का एक सामान्य नियम सबके लिए लागू होगा. पैतृक संपति में पुत्र-पुत्री तथा बेटा-बहू को एक समान अधिकार प्राप्त होगा. और संपति को लेकर धर्म, जाति, क्षेत्र और लिंग आधारित विसंगति समाप्त होगी. अलग-अलग धर्मों के लिए अलग-अलग कानून होने के कारण अनावश्यक मुकदमे में उलझना पड़ता है. सबके लिए एक नागरिक संहिता होने से न्यायालय का बहुमूल्य समय बचेगा. इस सत्र का संचालन सुनील किशोर द्विवेदी ने किया.