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प्रकृति वंदन की अग्रदूत बनी प्रदेश की महिलाएं, पर्यावरण संरक्षण की मिसाल

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शिमला (विसंकें). हिमाचल प्रदेश को देवभूमि भी कहा जाता है. इसका एक कारण यह भी है कि हिमाचल में प्रकृति को पूजने वाले लोग उसके संरक्षण के लिए भी हमेशा आगे रहते हैं. प्रदेश में पर्यावरण के प्रति जागरूकता और संरक्षण की दृष्टि से महिलाएं भी पीछे नहीं हैं. यहां पर महिलाओं द्वारा पर्यावरण संरक्षण और संतुलन को बनाए रखने के लिए अनेक अनुकरणीय कार्य किये जा रहे हैं.

मंडी के करसोग क्षेत्र में महिलाएं धरती पर हरियाली बचाने के लिए पौधारोपण का अभियान चला रही हैं. महिलाओं ने शिवा महिला मंडल के तत्वाधान में देहरी सहित आसपास के क्षेत्रों में खाली जगह पर पौधारोपण किया. इस दौरान विभिन्न प्रजातियों के कई पौधे रोपे गए. जिसमें देवदार सहित प्लम और अनार के फलदार पौधे शामिल हैं. महिला मंडल की सदस्यों ने पर्यावरण को बचाने के लिए पौधों की देखभाल का भी संकल्प लिया. ताकि पौधों के जीवन समय को बढ़ाया जा सके. इतना ही नहीं, महिलाएं अपने क्षेत्र में लोगों को स्वच्छता का पाठ पढ़ा रही हैं. सभी महिलाएं छुट्टी के दिन क्षेत्र में स्वच्छता अभियान भी चलाती हैं. इस दौरान सभी महिलाएं इधर-उधर बिखरे कूड़े को एकत्र कर उसका पर्यावरण के अनुकूल निस्तारण करती है.

कुल्लू जिले के आनी में नवज्योति महिला मंडल घोरना की महिलाओं ने पौधारोपण के कार्य को गति देने के सात ही पौधों के संरक्षण का संकल्प भी लिया. महिलाओं ने अभियान की शुरूआत गांव के मंदिर प्रांगण को स्वच्छ करके की. इसके बाद ग्राम्य स्तर पर स्वच्छता का काम किया गया. कोरोना महामारी की गंभीरता के प्रति अपने दायित्वों के निर्वहन के लिए महिलाओं ने लोगों को अपने स्तर पर जागरूक किया. पर्यावरण संरक्षण के बारे में लोगों को बताया, गरीब और जरूरतमंद लोगों को मास्क भी बांटे.

वहीं, ऊना में अबादा बराना में भी महिलाओं ने एकत्र होकर पर्यावरण स्वच्छता के बारे में लोगों को प्रेरित किया.

शिमला जिले के ठियोग क्षेत्र की महिलाओं ने जब देखा कि उनके पानी के प्राकृतिक स्रोत हर साल बारिश के पानी के कारण दूषित हो जाते हैं और बरसात में बीमारियों का खतरा बना हुआ है तो उन्होंने क्षेत्र के गांवों में स्थित सभी बावड़ियों, जलकूपों की सफाई का बीड़ा उठाया. इतना ही महिलाओं ने वृक्षारोपण अभियान में भाग लिया और वनों की हरितिमा को बचाने में अपना बहुमूल्य योगदान किया. प्रदेश की महिलाएं पूर्व में भी स्थानीय वनस्पतियों का उपयोग करके स्वदेशी राखियां बनाकर अपनी जीवटता दिखा चुकी हैं.

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