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शक्ति की आराधना – समाज में वैमनस्यता-अलगाव का जहर फैला रहे राक्षसों का समूल नाश हो

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बुधपाल सिंह

देश में कुछ वर्षों से वनवासियों के नाम पर बने अनेक आदिवासी संगठन गोंड जनजाति समाज को हिन्दू समाज, हिन्दू धर्म से अलग करने के लिए प्रयासरत हैं. जैसे ही दशहरा, दीवाली का समय नजदीक आता है, तब इस प्रकार के संगठन के लोग कहते फिरते हैं कि दशहरा-दीवाली हम गोंड आदिवासियों का त्यौहार नहीं है, ये त्यौहार हिन्दुओं द्वारा हमें लूटने के लिए मनाया जाता है, यह त्यौहार हिन्दुओं का है. हिन्दू यह त्यौहार इसलिए मनाते हैं कि दशहरे के दिन राम ने रावण को मारकर विजय प्राप्त की थी और दीवाली पर वापिस अयोध्या आए थे. इनका तर्क है कि रावण गोंड समाज के थे, वह मंडावी गोत्र के थे. अतः वह गोंड आदिवासियों के पूर्वज थे और राम ने उन्हें मार डाला तो हम रावण के मारे जाने की खुशी में दशहरा क्यों मनाएं?

इन संगठनों द्वारा गोंड समाज में कुतर्क फैलाए जा रहे हैं ताकि जनजाति समाज को हिन्दू समाज से दूर किया जा सके. इसके लिए ये संविधान की ओट भी लेते हैं और संविधान के नाम पर डराते हुए कहते हैं कि रावण गोंड आदिवासी था जो उसका पुतला जलाएगा, उस पर एससी/ एसटी एक्ट के अंतर्गत कानूनी कार्यवाही की जाएगी. इनके द्वारा ज्ञापन देकर रावण दहन बंद करने की मांग की जाती है क्योंकि इससे आदिवासियों (वनवासी) की भावनाओं को ठेस पहुंचने का तर्क देते हैं. उक्त कार्य करके यह संगठन या व्यक्ति गोंड समाज को हिन्दू समाज से अलग कर धर्मान्तरण की ओर ले जाने का प्रयास कर रहे हैं.

वास्तविकता यह है कि गोंड जनजाति अनादिकाल से ही दशहरा दीवाली का त्यौहार हर्षोल्लास से मनाती आ रही है. जिसके ऐतिहासिक प्रमाण हमें मिलते हैं. इनमें छत्तीसगढ़ के वनवासी जनजाति क्षेत्र में सैकड़ों वर्षों से दशहरा उत्सव का मनाया जाना सहित गोंड वंशीय शासन काल में रामनगर के किले में, मंडला किले में, अन्य किलों में व मंडला राजराजेश्वरी मंदिर में भगवान श्रीराम व माता सीता जी की मूर्तियाँ, भगवान विष्णु व भगवान शिव व माँ पार्वती, दुर्गा जी की मूर्तियाँ हैं जो आज भी देखी जा सकती हैं. इन किलों में कहीं पर भी रावण या महिषासुर की मूर्ति नहीं तो फिर रावण व महिषासुर हमारे गोंड आदिवासियों का पूज्यनीय कैसे हो गए, वह हमारे पूर्वज कब और कैसे बनए गए?

हमारे पूर्वज व पूजनीय तो वनवासी श्रीराम ही हैं जो चौदह वर्षों के वनवास काल में दण्डकारण्य में हमारे सुख-दुःख में साथ रहे हैं और स्वयं वनवासी राम कहलाए. गोंडवाना पर शासन करने वाले सभी राजा-महाराजाओं के नाम भगवान राम – कृष्ण व भगवान शिव के नाम पर ही हैं. किसी एक का भी नाम रावण, महिषासुर, मेघनाद, कुंभकर्ण आदि राक्षसों के नाम पर नहीं है, तो फिर गोंड आदिवासी रावण का वंशज कैसे हो गया. गोंडवंशीय राजाओं में गोंडवाना के प्रथम राजा यदुराय, दूसरे माधव सिंह थे. जिनके बाद जगन्नाथ, रघुनाथ, रुद्रसिंह, बिहारी सिंह, नरसिंह देव, सूर्यभानु, वासुदेव, गोपाल साहि, भूपाल साहि, गोपीनाथ, रामचंद्र, सुरतान सिंह, हरिहर देव, कृष्ण देव, जगत सिंह, महासिंह, दुर्जन मल्ल, यश कर्ण, प्रतापादित्य, यश चंद्र, मनोहर सिंह, गोविंद सिंह, रामचन्द्र, कर्ण, रत्नसेन, कमल नयन, नरहरिदेव, वीर सिंह, त्रिभुवनराय, पृथ्वी राय, भारतीय चंद्र, मदन सिंह, उग्रसेन, रामसाहि, तारा चंद्र, उदय सिंह, भानुमित्र, भावनी दास, शिव सिंह, हरि नारायण, सबल सिंह, राय सिंह, दादी राय, गोरक्ष दास, अर्जुन सिंह, संग्राम साहि, दलपति साहि, वीर नारायण, चंद्र साहि, मधुकर साहि, प्रेम नारायण, हिरदैसाहि, छत्रसाहि, केसरीसाहि, नरेंद्र साहि, महाराज साहि, शिवराज साहि, निजाम साहि, नरहर साहि, सुमेद साहि तक व बाद के 1857 में शहीद हुए राजा शंकर शाह, कुंवर रघुनाथ शाह तक एक भी राजा का नाम रावण वंश से नहीं जुडा है. फिर भी हमारे गोंड समाज को राक्षस रावण वंश का बताकर अपमानित किया जा रहा है. यह कतई स्वीकार नहीं.

तथाकथित आदिवासी संगठनों के लोग बताए कि इन राजाओं में से जब कोई राक्षस वंशी नहीं था, तो फिर जनजाति राक्षसवंशी कहां से हो गई. हम राम, कृष्ण और शिव के वंशज हैं. जिन्होंने राक्षसों का समूल नाश किया है. हम भी दशहरे पर परम्परागत रुप से अहंकार, अनाचार, दुराचार और बुराई के प्रतीक रावण का दहन करते हैं और करेंगे. यह हमारे पूर्वजों की बनाई हुई परम्परा है. वहीं रही बात संविधान की तो भारत के संविधान में दूसरों की मौलिक मान्यताओं को रोकने का अधिकार किसी को भी नहीं है. इस प्रकार के संगठन के दस एक लोग यह गैर संविधानिक, गैर कानूनी काम कर रहे हैं. जो हमारी हिन्दू धार्मिक मौलिक मान्यताओं को खत्म करना चाहते हैं.

मेरा गोंड समाज के उन जागरुक युवायों से आग्रह है कि जहां पर भी जनजाति क्षेत्रों में सामाजिक वैमनस्य फैलाने का कुप्रयास हो रहा है, जो लोग इसमें लगे हैं, उनके खिलाफ नामजद कानूनी कार्रवाई करें.

हम इन अलगाववादी दलालों की बातों में आकर क्यों अपनी परंपरा को छोड़ें. जबकि पीढ़ी दर पीढ़ी हमारे गोंड समाज की माताएं-बहनें, माता खेड़ापति की पूजा करती आ रही हैं, वे उनको नवरात्रि पर जल चढ़ाते आ रही हैं. हमारे घरों में देवीजी की घट स्थापना होती आ रही है. तो फिर हम इन अलगाववादी दलालों की बातों में आकर इन्हें क्यों बन्द करें. हमारे पूर्वजों की परम्पराओं को हम जारी रखें और आइये सौहार्द पूर्ण ढंग से दशहरा मनाएं. नवरात्रि उत्सव, मां दुर्गा का उपासना उत्सव धूमधाम से मनाएं. शक्ति की आराधना करें, जिससे हिन्दू समाज में वैमनस्यता, अलगाव का जहर फैला रहे इन राक्षसों का समूल नाश हो सके.

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