देर से ही सही, पर अब विश्व के कई देश जान गए हैं और मान भी रहे हैं कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी), जिसे भाकपा (माओवादी) के नाम से जाना जाता है, भारत के लिए सबसे गंभीर खतरा है. अमेरिकी विदेश विभाग की आतंकवाद पर हाल ही में जारी रपट में कहा गया है कि भाकपा (माओवादी) दुनिया का चौथा सबसे खतरनाक संगठन है. वह भारत में हिंसा के ज्यादातर मामलों के लिए जिम्मेदार है. इस कारण यह भारत का सबसे बड़ा हिंसक विद्रोही संगठन है.
अमेरिका की संस्था ‘नेशनल कन्सॉरटियम फॉर द स्टडी ऑफ टेररिज्म ऐंड रिस्पांस टू टेररिज्म’ ने दुनिया के पांच सबसे हिंसक आतंकी संगठनों की सूची जारी की है. दुनिया को इस सूची को गंभीरता से लेते हुए इन गुटों पर प्रभावी लगाम लगाने की रणनीति बनानी होगी.
अपनी कट्टरता और बर्बरता के लिए मशहूर आईएसआईएस आतंक की दुनिया का सरगना है. आतंक के खिलाफ अमेरिका के नेतृत्व में 59 देशों के वैश्विक गठजोड़ की इराक और सीरिया में बने इस्लामिक स्टेट पर जीत के बाद लगा था कि यह संगठन खत्म हो जाएगा, मगर अफसोस वह अब भी सक्रिय है. सन् 2017 में उसने कुल 4315 लोगों की जानें लीं. उसका खलीफा बगदादी फिर सिर उठा रहा है. आईएसआईएस के अकेले आतंकी ही लोन वुल्फ बनकर आतंक की वादातों को अंजाम दे रहे हैं. वह अफगानिस्तान में तालिबान को चुनौती दे रहा था और हाल में उसने वहां तीन बड़े धमाके भी किए. फिर पाकिस्तान में चुनाव के दौरान कई विस्फोट किए. हाल ही में उसने ईरान की सेना पर हमला किया जिसमें 25 सैनिक मारे गए.
दुनिया का दूसरा सबसे खतरनाक हिंसक जिहादी संगठन है तालिबान, जो पिछले 17 साल से अमेरिका से लड़ रहा है. अफगानिस्तान में तालिबान के सामने अमेरिका ने बड़ा अभियान छेड़ा हुआ है जिसे काफी हद तक पूरा करके वह वहां से निकलना चाहता है. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की रणनीति से युद्ध में मरने वालों की संख्या में रिकॉर्ड बढ़ोतरी हुई है. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक अफगानिस्तान में इस साल जनवरी से जून तक 1692 नागरिकों की युद्ध के दौरान मौत हुई है. संस्था के मुताबिक अफगानिस्तान में 2008 के बाद युद्ध में मरने वालों की यह संख्या सबसे ज्यादा है. अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार बताते हैं कि पिछले एक साल में अफगानिस्तान में जिस तरह के परिणाम सामने आए हैं, उन्हें देखते हुए डोनाल्ड ट्रंप और उनके अधिकारियों को अब यह समझ में आ गया है कि अफगानिस्तान में इस जंग का नतीजा बंदूक से नहीं निकलने वाला.
रपट से एक बात पता चलती है कि आतंकवाद एशिया के अलावा अफ्रीका में सबसे ज्यादा उभार पर है. अफ्रीका की गरीबी में आतंकवाद की मार भी तेज होती जा रही है. सोमालिया का आतंकी संगठन अलशबाब दुनिया में हिंसा के मामले में तीसरे नंबर पर है और नाइजीरिया का बोको हराम पांचवें. इन दोनों आतंकी संगठनों ने अफ्रीकी लोगों का जीना हराम किया हुआ है. ये सभी इस्लामी और खासकर वहाबी आतंकवादी हैं.
इस सूची में गैर इस्लामी संगठन भाकपा (माओवादी) का भी प्रवेश हुआ है. इस तरह दुनिया ने माओवाद की बढ़ती चुनौती को पहचाना है. उसके कारण ही भारत आतंकवाद से प्रभावित देशों में तीसरे नंबर पर है. बाकी दो देश हैं – इराक और अफगानिस्तान.
2017 के दौरान भारत पर हुए विभिन्न आतंकी हमलों में से 53 फीसदी हमलों के लिए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी यानी सीपीआई (माओवादी) जिम्मेदार थी. 2017 में उसका सबसे बड़ा हमला सुकमा (छत्तीसगढ़) में हुआ था, जिसमें 25 लोग मारे गए थे. इस संगठन पर भारत में पाबंदी लगी हुई है.
अमेरिकी रिपोर्ट में 2017 के दौरान जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी घटनाओं में बढ़ोतरी का दावा किया गया है. इसमें पेश किए गए आंकड़ों के मुताबिक 2017 में जम्मू-कश्मीर के आतंकवादी हमलों में जहां 24 फीसदी की वृद्धि हुई तो इन हमलों में जान गंवाने वालों की संख्या में 89 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखने को मिली. इसके अलावा 2017 के दौरान भारत में कुल 860 आतंकी हमले हुए थे, जिनमें से 25 फीसदी अकेले जम्मू-कश्मीर में अंजाम दिए गए थे.
उधर, माओवादी चरमपंथियों के बारे में इस अमेरिकी रिपोर्ट में लिखा गया है कि 2016 के मुकाबले 2017 में इस संगठन के हमलों में कमी देखने को मिली. 2016 में इस संगठन ने जहां 338 हमलों को अंजाम दिया था वहीं 2017 में यह आंकड़ा 295 रहा. लेकिन इसी दौरान इन हमलों में मारे जाने वाले लोगों की संख्या 24 प्रतिशत बढ़ गई.
माओवादियों ने कई बार राजनीतिक नेताओं की हत्या की है. आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम में पिछले दिनों अराकू विधानसभा सीट से विधायक सर्वेश्वर राव और पूर्व विधायक एस. सोमा की माओवादियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी. घटना को तब अंजाम दिया गया जब विशाखापट्टनम से करीब 125 किमी. दूर अराकू के थुतांगी गांव में दोनों एक कार्यक्रम में गए हुए थे. कहा जा रहा है कि माओवादियों ने इस ताजा हमले के जरिए संभवत: ‘भीमा-कोरगांव हिंसा मामले में वामपंथी रुझान वाले तेलुगू कवि और लेखक वरावर राव और अन्य कथित मानवाधिकारवादियों को गिरफ्तार किए जाने के विरुद्ध केंद्र सरकार को कड़ा संदेश’ देने की भी कोशिश की है. इसलिए माओवादियों ने सत्तारूढ़ पार्टी के विधायक और पूर्व विधायक को बंदूक का निशाना बनाकर यहां की शांति को भंग करके अपनी मौजूदगी दर्ज कराई है. वरवर राव उन पांच शहरी नक्सल नेताओं में से एक है जिन्हें हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हत्या की साजिश रचने के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया है. ये सभी भाकपा (माओवादी) से भी जुड़े हुए थे.
माओवादी कितने खतरनाक हैं, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पूर्व मुख्यमंत्री राजशेखर रेड्डी की तरह चंद्रबाबू नायडू की सरकार भी माओवादियों के खिलाफ सख्ती से पेश आती रही है. बौखलाए माओवादियों ने एक बार नायडू की हत्या करने की भी कोशिश की थी. जब माओवाद अपने चरम पर था तब माओवादी ‘पशुपति से तिरुपति तक आजाद लाल गलियारा’ बनाने का सपना पाले हुए थे, लेकिन वर्तमान केन्द्र सरकार की सख्त नीति के चलते उनका यह सपना अब पूरा होता नजर नहीं आता. कभी पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, आंध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश सहित 10 राज्यों में उनका खासा प्रभाव होता था. जब से मोदी सरकार आई है तब से माओवादी नियंत्रण वाला क्षेत्र लगातार सिकुड़ता जा रहा है.
देश में वामपंथी उग्रवाद में काफी कमी लाने का दावा करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कुछ समय पहले कहा कि माओवादियों, चरमपंथियों और आतंकवादियों के पैर उखड़ रहे हैं. उन्होंने संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘जहां तक माओवादियों का प्रश्न है तो वे हारी हुई लड़ाई लड़ रहे हैं.’ माओवादी प्रभाव देश के 135 जिलों में था. अब ये घटकर 90 जिले रह गये हैं. यह हमारे चार साल के शासन की उपलब्धि है. यदि हम इसकी और व्याख्या करें तो केवल दस जिले बच गये हैं जहां माओवादियों का बहुत ज्यादा प्रभाव है.
केंद्रीय गृह सचिव राजीव गाबा कहते हैं कि नक्सली हिंसा का फैलाव बीते चार वर्ष में उल्लेखनीय ढंग से सिमटा है. इसका श्रेय सुरक्षा और विकास संबंधी उपायों की बहुमुखी रणनीति को जाता है. उन्होंने कहा, ’44 जिलों में नक्सली या तो हैं ही नहीं या फिर उसकी मौजूदगी न के बराबर है. नक्सली हिंसा अब उन 30 जिलों तक सीमित रह गई है जो कभी इससे बुरी तरह प्रभावित थे.’ गाबा ने कहा कि नक्सल विरोधी नीति की मुख्य विशेषता है हिंसा को बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं करना और विकास संबंधी गतिविधियों को बढ़ावा देना ताकि नई सड़कों, पुलों, टेलीफोन टावरों का लाभ पिछड़े और प्रभावित इलाकों के लोगों तक पहुंच सके.
लेकिन अमेरिकी के विदेश विभाग की रपट भी हल्के में नहीं ली जा सकती. सरकार ने अपनी ओर से सघन माओवाद विरोधी अभियान छेड़ा हुआ है, लेकिन शहरी नक्सली विद्रोही गुट की उग्रता और राज्य विरोधी हरकतों को खाद-पानी पहुंचाने में जुटे हुए हैं. सुरक्षा एजेंसियां सतर्क हैं पर ऐसे तत्व सेकुलर मीडिया, सेकुलर नेताओं और दलों के संरक्षण में देश को गुमराह करने में लगे रहते हैं. जेएनयू के कन्हैया कुमार और उमर खालिद जैसे मजहबी-कामरेड गठजोड़ दुनिया में भारत की छवि धूमिल करने में लगे हुए हैं.
साभार – पाञ्चजन्य