बॉम्बे हाई कोर्ट ने तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ताओं सुधा भारद्वाज, वर्नोन गोंजाल्विस और अरुण फरेरा को जमानत देने से इंकार कर दिया. इन पर कोरेगांव हिंसा की साजिश रचने तथा माओवादी संगठनों से संबंध रखने के आरोप हैं. हाई कोर्ट ने आज तीनों की जमानत याचिका खारिज कर दी. याचिका पर लगभग एक माह तक सुनवाई चली. जस्टिस सारंग कोतवाल की एकल पीठ 27 अक्तूबर से याचिका पर सुनवाई कर रही थी.
बॉम्बे हाई कोर्ट ने 7 अक्तूबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था, कोर्ट ने आज फैसला सुनाया. तीनों पर दिसंबर 31, 2017 को एल्गार परिषद की बैठक में भड़काऊ बयान देने का आरोप है. पुलिस का कहना है कि तीनों के कारण ही पुणे के भीमा-कोरेगाँव में हिंसा भड़की थी. पुणे पुलिस ने अदालत में बताया कि वर्नोन गोंजाल्विस और अरुण फरेरा प्रतिबंधित नक्सली संगठन में भर्ती के लिए लोगों को भड़का रहे थे और सीपीएम (माओवादी) के लिए कैडर तैयार कर रहे थे.
पुणे पुलिस ने जमानत याचिका का विरोध करते हुए हाई कोर्ट में कहा कि तीनों कथित एक्टिविस्ट्स 4 ऐसे संगठनों से जुड़े थे, जो प्रतिबंधित माओवादी संगठन के मुखौटे के रूप में कार्यरत हैं. UAPA एक्ट के तहत गिरफ़्तार अरुण फरेरा, सुधा भारद्वाज और वर्नोन गोंजाल्विस की जमानत याचिका पिछले वर्ष अक्तूबर पुणे की स्पेशल कोर्ट ने खारिज कर दी थी. इसके बाद तीनों ने बॉम्बे हाईकोर्ट का रुख किया था.