कटनी (विसंकें). साहित्यकार श्याम सुंदर दूबे जी ने कहा कि साहित्यकार आत्मा का इंजीनियर होता है. सकारात्मक ऊर्जा जब शब्दों में ढलती है, तब साहित्य का सृजन होता है. साहित्य का लक्ष्य है मन की शांति व समाज का निर्माण. समाज में रहने वाले लोग यदि अपनी आंचलिक बोलियों को सुनकर भाव विभोर नहीं होते हैं तो उनका हृदय उस बंजर धरती की तरह है, जिस पर ना तो कुछ हो सकता है, ना कुछ पनप सकता है. वे कटनी पुस्तक मेले में साहित्य महोत्सव के उद्घाटन पर विशिष्ट अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे.
मुख्य वक्ता डॉ. श्रीकांत ने कहा कि अध्ययन से बहुत कुछ प्राप्त किया जा सकता है. सरस्वती और लक्ष्मी के बीच की दूरी को अध्ययन से ही कम किया जा सकता है. विश्व का सर्वोत्तम साहित्य भारत में ही रचा गया है. पढ़कर और अनुभव कर लिखा गया साहित्य ही समाज को दिशा प्रदान कर सकता है. आदर्श समाज का गठन आदर्श साहित्य से ही हो सकता है.
कार्यक्रम के अध्यक्ष शरद अग्रवाल ने कहा कि हर वर्ष इस तरह के आयोजन होने चाहिएं और इस कार्यक्रम का प्रचार प्रसार अधिक से अधिक हो सके और समाज की सहभागिता बढ़े, इसके लिए साहित्यिक शोभायात्रा निकालना चाहिए. जिसमें साहित्य जगत एवं समाज के लोग बढ़ चढ़कर हिस्सा लें.
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में विश्व प्रसिद्ध “इशुरी” पुस्तक की समीक्षा वरिष्ठ साहित्यकार नरेंद्र दुबे एवं सतीश आनंद ने की. पुस्तक के लेखक श्याम सुंदर दुबे जी ने आंचलिक साहित्य और बोलियों के विलुप्त होने के खतरे की ओर समाज व साहित्य जगत का ध्यान आकर्षित करने के प्रयत्न किया.
साहित्यकारों ने कहा कि जब प्रेम की पराकाष्ठा होती है, तब राधा और कृष्ण का निर्माण होता है और साधना तथा लेखन की पराकाष्ठा होती है, तब इशुरी नामक पुस्तक की रचना होती है.
सायंकालीन सत्र में विश्व प्रसिद्ध गणितज्ञ शिवनाथ बिहारी ने सैकड़ों बच्चों को पढ़ने में आने वाली कठिनाइयों से मुक्ति के बारे में जानकारी दी.