जमात के कारण 40 बच्चे कोरोना संक्रमित, एक्सप्रेस ने समाचार में हिन्दू दंपत्ति की फोटो का उपयोग किया
अहमदाबाद सिविल अस्पताल में धर्म के अनुसार वार्ड बनाने का झूठ फैलाया
अलजजीरा, इंडिपेंडेंट, यूएससीआईआरएफ ने भारत को बदनाम करने का प्रयास किया
जयेश मटियाल, धर्मशाला
झूठा प्रोपगेंडा, झूठे समाचार, झूठा एजेंडा चलाना वामपंथी सेवादारों की आदत सी बन गई है. और इसी आदत के माध्यम से अपनी कुंठा, हिन्दू विरोधी प्रचार की भड़ास निकालते रहते हैं.
आंध्र प्रदेश में तबलीगी जमात के कारण बीते बुधवार (15 अप्रैल) तक 3-17 साल की आयु के 40 बच्चे कोरोना संक्रमित पाए गए. इंडियन एक्सप्रेस की 16 अप्रैल को प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार ये सभी बच्चे अपने परिजनों से संक्रमण की चपेट में आए हैं, जो निजामुद्दीन में तबलीगी जमात की बैठक में भाग लेकर वापस आए थे.
“हिंदुफोबिक एक्सप्रेस” का कमाल देखें, उक्त रिपोर्ट की कवर इमेज एक नवविवाहित हिन्दू दम्पति की लगाकर अपना नैरेटिव गढ़ने की कोशिश की. जबकि रिपोर्ट व इमेज दूर-दूर तक एक-दूसरे से मेल नहीं खाती, और इसी रिपोर्ट में साफ लिखा हुआ है कि बच्चों को कोरोना उनके परिजनों के कारण हुआ है, जो जमात से संबंध रखते थे. तो क्या जमातियों की फोटो लगाना ईशनिंदा है? हालांकि, सोशल मीडिया पर घिरने के बाद अब इंडियन एक्सप्रेस ने फोटो हटाकर, वाहन से सेनेटाइजेशन करती हुई नई तस्वीर लगा दी है.
झूठ एक्सप्रेस ने एक अन्य रिपोर्ट प्रकाशित की, उसमें कहा कि – अहमदाबाद सिविल अस्पताल में धर्म व मजहब को देखते हुए मरीजों के लिए अलग-अलग वार्ड बनाए गए हैं. रिपोर्ट को पुख्ता करने के लिए ये भी कहा गया कि अस्पताल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट ने खुद दावा किया है कि सरकार के फैसले के अनुसार हिन्दुओं और मुस्लिमों के लिए अलग-अलग वार्ड तैयार किए गए हैं.
इंडियन एक्सप्रेस की यह रिपोर्ट गम्भीर मुद्दा बनता कि आखिर सेकुलर देश में, मजहब के कारण भेदभाव कैसे हो रहा है? अन्तरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग यूएससीआईआरएफ ने भी इंडियन एक्सप्रेस का संदर्भ लेकर यही ट्वीट किया. अन्तरराष्ट्रीय मीडिया में अलजजीरा, इंडिपेंडेंट ने भी इसी रिपोर्ट के आधार पर रोना रोया और एक बार फिर गुजरात दंगों को व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को याद किया. मगर इन सबकी आशाओं पर तब पानी फिरा, जब स्वास्थ्य विभाग ने सिविल अस्पताल अहमदाबाद में किसी भी मरीज को धार्मिक आधार पर विभाजन की बात को सिरे से नकार दिया.
सिविल अस्पताल के एमएस ने भी इस पर संज्ञान लेते हुए बयान जारी किया. उन्होंने कहा कि “मेरा बयान गलत तरीके से पेश किया जा रहा है कि हमने हिंदू और मुसलमानों के लिए अलग-अलग वार्ड बनाए हैं. मेरे नाम पर गढ़ी गई ये रिपोर्ट झूठी और निराधार है. मैं इसकी निंदा करता हूं”.
इसके बाद विदेश मंत्रालय ने भी अमेरिकी आयोग के दावे को खारिज किया. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा कि “अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता संबंधी अमेरिकी आयोग भारत में कोविड-19 से निपटने के लिए पालन किए जाने वाले पेशेवर मेडिकल प्रोटोकॉल पर गुमराह करने वाली रिपोर्ट फैला रहा है.
विदेश मंत्रालय ने अमेरिकी आयोग की टिप्पणी पर कहा कि अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में धार्मिक आधार पर कोविड-19 के मरीजों को अलग-अलग नहीं किया गया. इसलिए, यूएससीआईआरएफ को कोरोना वायरस महामारी से निपटने के भारत के राष्ट्रीय लक्ष्य को धार्मिक रंग देना बंद कर देना चाहिए.
इंडियन एक्सप्रेस मानो अहमदाबाद को मजहबी रंग देने के लिए चौकड़ी लगा के बैठा हो. 14 अप्रैल, 2015 को इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में हेड लाइन “अहमदाबाद के विभाजित रंग: हिंदू बच्चों के लिए भगवा वर्दी, मुस्लिम के लिए हरा”. इस रिपोर्ट में भी दावा किया जाता है कि एक प्राइवेट स्कूल जिसमें हिन्दू विद्यार्थी बहुसंख्यक हैं वहां केसरिया रंग की वर्दी है, दूसरा प्राइवेट स्कूल जिसमें मुस्लिम बहुसंख्यक विद्यार्थी हैं वहां हरे रंग की वर्दी है. यह दावा तब खारिज हो जाता है, जब मालूम पड़ता है कि स्कूल प्रशासन ने यूनिफॉर्म का चुनाव अपनी पसंद से किया है. असल में अपनी कपोल-कल्पना के चलते आज भी यह गिरोह गुजरात को मजहबी रंग देने में बैकफुट पर नहीं खेलता है. सच्चाई यह भी है कि अब इस जमात की भद्द पिट रही है.
लेखक मास्टर्स के विद्यार्थी हैं.