मेरठ (विसंकें). प्रो. मनोरमा त्रिखा जी ने कहा कि भारतीय नारी स्वयं में सौन्दर्य की प्रतिमूर्ति होने के साथ- साथ प्रेम, बलिदान, साहस एवं विनम्रता की भी प्रतीक मानी गई है. नारी और पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं. इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जब भारतीय नारी ने समाज को नई दिशा दी है. लेकिन दुर्भाग्य से आज हमारे समाज की नारियां अपने अतीत को भूल कर ग्लैमर और बाजारीकरण की और दौड़ रहीं हैं, जो हमारी संस्कृति और सभ्यता के लिए अच्छा नहीं है.
सूरजकुण्ड स्थित केशव भवन पर विद्योत्तमा विचार मंच के तत्वाधान में ‘‘नारी अस्मिताः एक विमर्श’’ विषय पर आयोजित विचार गोष्ठी में मुख्य वक्ता चौधरी चरण सिंह विवि के अंग्रेजी विभागाध्यक्ष पद से सेवानिवृत्त प्रो. मनोरमा त्रिखा ने संबोधित किया. उन्होंने कहा कि भारतीय नारी को आज अपने स्वरूप को पहचानते हुए आगे बढ़ना होगा. साथ- साथ उसे अपनी मर्यादा को भी ध्यान में रखना होगा. नारी अस्मिता आज की सामाजिक समस्या बन गई है. इसके इलाज के लिए नारी को आत्मसम्मान, आत्म अवलोकन करना होगा, साथ ही पश्चिम के अंधानुकरण और ग्लैमर की दुनिया से दूर रहना होगा.
कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार रामगोपाल जी ने चित्तौड़ की महारानी पद्मिनी का उदाहरण देते हुए कहा कि किस प्रकार महारानी के साथ नारी के सतीत्व और आत्मसम्मान की रक्षा करते हुए हजारों भारतीय नारियों ने अलाउद्दी खिलजी से बचने के लिए जौहर किया था.
गोष्ठी में विद्योत्तमा विचार मंच की अध्यक्षा डॉ. वेदप्रभा जी ने कहा कि इतिहास गवाह है कि भारतीय नारी की पूजा होती थी. पश्चिमी सभ्यता ने हमारी संस्कृति पर हमला किया है, जिस कारण भारत में नारियों के प्रति अनाचार के मामले बढ़ रहे हैं. समाज में पुरूष और स्त्री दोनों वर्गों को समझना होगा कि सही संस्कारों के बल पर ही स्त्री की अस्मिता को बचाया जा सकता. इस अवसर पर डॉ. मीनाक्षी कौशल ने भारतीय नारी की ऐतिहासिक पृष्ठ भूमि पर विचार रखे. गोष्ठी का संचालन डॉ. पायल अग्रवाल ने किया.