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परमात्मा का सतत् चिंतन व अनासक्त भाव ही जीवन की सफलता का मार्ग – आनंदमूर्ति गुरु माँ

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जबलपुर (विसंकें). परमात्मा के सतत् चिंतन एवं अनासक्त भाव से किये गए कर्मों द्वारा मन को नियंत्रित किया जाता है. निष्काम कर्म के आचरण से मनुष्य का अन्तःकरण नितांत निर्मल हो जाता है और साक्षात् भगवत्प्राप्ति हेतु अनुभूति ज्ञान का पवित्र स्थल बन जाता है. ऐसा कर्म मनुष्य को आसक्त नहीं करता है, न वह उसमें संलिप्त होता है. कर्तापन कर्म को दूषित करता है. मैं और मेरा से अहंकार झलकता है. कार्य की सफलता का श्रेय स्वयं लेना तथा असफलता का दोष औरों पर मढ़ना अहंकार है. यह कर्म बन्धन का कारण बनता है और यही भविष्य में सौभाग्य एवम् दुर्भाग्य का सूचक है. अतः छोटे से लेकर बड़े सभी कार्यों को ईश्वर को अर्पित करना चाहिए. निष्काम कर्म में दोष नहीं होता. आनंदमूर्ति गुरु माँ ने भगिनी निवेदिता बालिका छात्रावास जबलपुर की छात्राओं का मार्गदर्शन किया.

अति महत्त्वपूर्ण कार्य करने वाली शरीर की तीन ग्रन्थियां मस्तिष्क में हैं. इसी वजह से चेतना का आसन भी शरीर के सर्वश्रेष्ठ अंग मस्तिष्क में ही है. इसीलिये सद्गुरु के चरणों में दण्डवत् प्रणाम करने की परम्परा चलती आ रही है. सद्गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण का यह चिंतन है. इसके पीछे यह भी धरणा है कि जब सद्गुरु के चरणों पर सिर रखा जाता है, तो शिष्य को सद्गुरु से आत्मिक उन्नति में सहायक होने वाली बहुत सारी आध्यात्मिक ऊर्जा-तरंगों की प्राप्ति होती है. कार्यक्रम में  विद्याभारती के पदाधिकारी उपस्थित रहे.

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