लंदन. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि हिन्दुत्व कोई सम्प्रदाय नहीं, वरन एक जीवन पद्धति है. हिन्दुत्व एक ऐसी संस्कृतिक विरासत है जो सभी तरह के मतों और पंथों को स्वीकार करता है और उसे सम्मान भी देता है. हिन्दू परम्परा में जबरन धर्म परिवर्तन को स्वीकृति नहीं है. यह उस तरह के धर्म परिवर्तन को इजाजत नहीं देता, जिसमें किसी व्यक्ति के मानवाधिकार का उल्लंघन होता हो.
सरसंघचालक जी हिन्दू स्वयंसेवक संघ की स्वर्ण जयंती के अवसर पर ‘पहचान एवं एकीकरण’ विषय पर आयोजित सेमीनार को संबोधित कर रहे थे. सरसंघचालक जी ने कहा कि ‘किसी दर्शन या किसी पंथ पर विचार करने के बाद यदि किसी की खुद की इच्छा या आकांक्षा उसे बदलने की हो, तो हमारी परंपरा कहती है कि प्रत्येक व्यक्ति स्वतंत्र रूप से फैसला कर सकता है कि उसकी आस्था क्या होनी चाहिए. लेकिन लोगों को प्रलोभन देना या कुछ अन्य तरीके का सहारा लेना, व्यक्ति के अधिकारों में हस्तक्षेप होगा और उसकी इजाजत नहीं दी जानी चाहिए.’
डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि “हमें विविध पहचान को लेकर कोई समस्या नहीं है, हम एक एकीकृत समाज की तरह तथा मानवीय एवं सार्वभौम रूप से रह सकते हैं. हिन्दू समाज ने ऐसे जी कर दिखाया है और इस तरह का जीवन कहीं भी पाया जा सकता है, जहां हिन्दू रहते हैं. हिन्दू धर्म कहता है कि विविधता को सराहा जाना चाहिए.” अथर्ववेद की सूक्तियों का उल्लेख करते हुए सरसंघचालक जी ने कहा कि हिन्दू समाज में ‘विविधता में एकता’ प्राचीन काल से ही है और यही हिन्दुत्व का केन्द्रीय बिंदु है.
उन्होंने कहा कि हमारे भारतीय इतिहास में आक्रान्ताओं ने भारतवासियों पर खूब अत्याचार किए, इसके बावजूद भारत ने किसी के साथ विदेशी जैसा बर्ताव नहीं किया. आज भी हमारा समाज विश्व मानवता के साथ खड़ा है. मानवता और स्वीकार्यता हमारे खून में है. उन्होंने कहा कि अंततः हम सभी मानव हैं, सभी आत्मा हैं. हमें सभी की पहचान का सम्मान करना चाहिए और स्वीकार करना चाहिए तथा सामूहिक एकता का ध्यान रखना चाहिए. यह उदाहरण हिन्दू समाज ने पूरी दुनिया में दिया है और इसी में सभी प्रकार के संघर्षों का समाधान निहित है.
सरसंघचालक जी ने ब्रिटेन में प्रवासी भारतीयों को अपने संदेश में कहा कि “हम सभी के अस्तित्व की चिंता करते हैं. हम एकजुट रहने और संसार की भलाई का काम करने में यकीन रखते हैं.”