जयेश मटियाल
धर्मशाला
कोरोना काल में प्रपंच वायरस भी तेजी से फैल रहा है. इन्डियन एक्सप्रेस, द हिन्दू, एनडीटीवी, वायर जैसे मीडिया संस्थान इस प्रपंच के जनक हैं. महाराष्ट्र की एक घटना जिसमें मुस्लिम डिलीवरी ब्वॉय बरकत उस्मान ने गजानन चतुर्वेदी पर आरोप लगाया कि उसके मजहब के कारण उससे सामान लेने से मना किया जा रहा है. इन मीडिया घरानों ने बरकत द्वारा बनाए गए वीडियो की बिना जांच-पड़ताल किए, सनसनी बनाकर, एक नैरेटिव गढ़ने की कोशिश की.
गजानन चतुर्वेदी पर आईपीसी की धारा 295 ए (धार्मिक भावना को आहत करने के उद्देश्य से दुर्भावनापूर्ण हरकत करना) के तहत मुकदमा दर्ज किया गया. जबकि गजानन चतुर्वेदी का कहना है कि उस डिलीवरी ब्वाय ने खुद ही यह बात कही कि थी कि उसके मजहब के कारण उससे सामान लेने से मना किया जा रहा है, जबकि उन्होंने धर्म का जिक्र ही नहीं किया था.
गजानन चतुर्वेदी वीडियो के जरिए बताते हैं कि “मुझ पर एफआईआर बिना हकीकत और मेरी राय जाने बिना किसी के दबाव में दर्ज की गई है. उसका व्यवहार देखकर मुझे ठीक नहीं लगा. वह स्कूटी में झुक कर बैठा हुआ था, वह खुजली कर रहा था, अपने मुंह पर बार–बार हाथ ले जा रहा था और हाथ में ग्लव्स नहीं था. मुझे टेंशन हुई, ऐसी महामारी के समय आदमी खुद अपना हाथ चेहरे पर नहीं ले जा रहा. मैंने उससे पूछा कि कहां से आए हो तो उसने कहा कि नया नगर से आया हूं. मैंने उससे कहा कि वहां से कैसे आ सकते हो, वहां इतना सीरियस मामला है कोरोना का. उसके बाद तुम बार–बार मुंह पर हाथ लगा रहे हो. मैं नहीं लूँगा… इतना कहकर मैं चल दिया. तो वो पीछे से कहने लगा कि मैं मुसलमान हूं, इसलिए नहीं ले रहे हो. जबकि मैंने मुसलमान कहीं भी नहीं कहा. वह वीडियो बना रहा था. मैंने उसे कहा तुम्हें कुछ भी कहना है कह लो लेकिन हमें अपना ध्यान रखना जरुरी है. अगर मैं कोरोना से पॉजिटिव हो जाउंगा, तो मेरे परिवार के सदस्य भी हो जाएंगे. मैंने सुरक्षा की दृष्टि से मना किया”.
हाल ही में सोशल मीडिया पर मजहब विशेष द्वारा फलों, नोटों पर थूक लगाने वाले वीडियो वायरल हुए हैं, ऐसे में स्वाभाविक बात है कि, कोई भी, किसी अनजान व्यक्ति से सामान लेने से डरेगा, और अपनी सुरक्षा हेतु इनकार भी करेगा. खासतौर पर तब, जब उस व्यक्ति द्वारा संक्रमण से बचने की गाइडलाइन्स को नजरअंदाज किया जा रहा हो. गजानन चतुर्वेदी ने भी कोरोना संक्रमण से बचने के लिए यही किया. अब प्रश्न उठता है कि क्या उन्हें यह अधिकार नहीं कि अपनी सुरक्षा कारणों से वे किससे सामान लें, किससे नहीं? क्या उन्हें यह स्वतन्त्रता नहीं? सिकुलर मीडिया ने भी मुस्लिम कार्ड खेलकर, 51 वर्षीय गजानन चतुर्वेदी की छवि को इस्लामोफोबिक बनाने का कुकृत्य किया है. क्या यह डर का माहौल नहीं है?
लिबरल मीडिया ने आज मुसलमानों के आर्थिक बहिष्कार का नैरेटिव सेट करने की कोशिश की है, यही मीडिया तब चुप्पी साध लेता है, जब एक समुदाय विशेष द्वारा पतंजलि के प्रोडक्टस के बहिष्कार का फतवा जारी होता है, यह कहकर कि पतंजलि के प्रोडक्टस में गौमूत्र मिला होता है, और गौमूत्र इस्लाम में हराम है. क्या यह आर्थिक बहिष्कार नहीं है?
विश्व की तर्ज पर भारत में भी हलाल का एक बड़ा बाजार तैयार किया जा रहा है. मैक्डॉनल्ड्स, जोमैटो, कुछ समय पहले हलाल की वजह से ही चर्चा में रहे. आलोचनाओं की बौछार हुई और लोगों ने आशंका जताई कि ‘झटका मीट’ वालों को भी ‘हलाल मीट’ ही बेच रहे हैं. अब आशीर्वाद आटा ‘हलाल आटा’ भी बेच रहा है. तो अब यह उम्मीद लगाना क्या बेईमानी नहीं होगी कि हिन्दु, सिक्ख आदि, अब ‘हलाल आटा’ खाएं. यहां विरोधाभास उत्पन्न हो जाता है कि एक ओर ‘हलाल सर्टिफाइड’ चीजें बेची जा रही हैं, कई बड़ी कंपनियां ‘हलाल सर्टिफिकेट’ ले रही है, और दूसरी ओर कह रहे हैं कि मजहब के कारण सामान लेने से इन्कार किया जा रहा है.
ये हैं गजानन चतुर्वेदी,महाराष्ट्र पुलिस ने इन्हें गिरफ़्तार किया था,एक मुस्लिम डिलेवरी ब्वाय उस्मान की शिकायत पर,उस्मान का आरोप था कि गजानन चतुर्वेदी ने ये कहते हुए उससे सामान नहीं लिया कि वह मुस्लिम है,ये पूरी कहानी अब उल्टी निकली है,जरा असल कहानी सुनिए,खुद चतुर्वेदी की ज़ुबानी pic.twitter.com/1HQBuvZHL2
— Shalabh Mani Tripathi (@shalabhmani) April 24, 2020