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बाबा साहेब ने जातिविहीन समाज निर्माण के कार्य को महत्वपूर्ण बताया था

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मेरठ (विसंकें). बाबासाहेब आंबेडकर के 125वें जयन्ती वर्ष के अवसर पर सामाजिक समरसता मंच मेरठ द्वारा चैम्बर्स आफ कॉमर्स, दिल्ली रोड मेरठ में एक गोष्ठी का आयोजन किया गया. गोष्ठी के मुख्य वक्ता राष्ट्रदेव के सम्पादक अजय मित्तल ने कहा कि बाबा साहेब के सम्बन्ध में उनके अनुयायियों और विरोधियों दोनों मे गलतफहमियां है, ये दूर होनी चाहिये. बौद्ध मत की दीक्षा लेते समय बाबा साहेब ने कहा था कि हिन्दू और बौद्ध धर्म एक ही संस्कृति का हिस्सा है. उन्होंने इस्लाम व ईसाई मत की ओर से मिले प्रलोभनों को ठुकरा दिया था. वे संस्कृत को भारत की राजभाषा के रूप में तथा भगवा झण्डे को राष्ट्रध्वज के रूप में देखना चाहते थे. ‘जातियों का उन्मूलन’ शीर्षक पर अपने भाषण में उन्होंने जातिविहीन हिन्दू समाज के संगठनकार्य को स्वराज्य के संघर्ष से ज्यादा महत्व का बताया था. उनका कहना था कि जातिवाद विहीन समाज के गठन के बिना हिन्दुओं में स्वराज्य को टिकाये रखने का सामर्थ्य नहीं आ सकेगा.

अजय मित्तल ने बताया कि बाबासाहब ने जो तीन अखबार सम्पादित किये मूकनायक, बहिष्कृत भारत और जनता‘- उनमें संत ज्ञानेष्वर, तुकाराम, रामदास, कबीर जैसे संतों के पद सदैव छपते थे. बुद्ध, कबीर तथा ज्योतिबाफुले – तीन महापुरुषों को उन्होंने अपना आदर्श माना था.
समारोह के अतिथि नगीना के सांसद डॉ यशवंत सिंह ने कहा कि डॉ आंबेडकर को पूरी तरह कोई नहीं समझ सकता. उनका व्यक्तित्व व्यापक है. पूर्व उप निदेषक चरण सिंह ने कहा कि डॉ आंबेडकर ने कोलम्बिया विश्वविद्यालय से तीन डिग्री प्राप्त की, बेस्ट स्कॉलर की उपाधि भी प्राप्त की. आम्बेडकर ने समाज में समता व समानता तथा समरसता के लिये कार्य किया.

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मुख्य अतिथि सांसद राजेन्द्र अग्रवाल ने कहा कि बाबा साहेब समाज के प्रति बहुत चिन्तित रहते थे. उनके मार्ग पर चलने के दो अर्थ है कि हम वंचितों की समस्याओं का निराकरण करें, उन्हें मन से गले लगाये, उन्हें प्रेम से आदर के साथ ऊपर उठाने का प्रयत्न करें. कार्यक्रम की अध्यक्षता पूर्व डीएसपी सहन्सर पाल ने की. कार्यक्रम का संचालन पायल अग्रवाल ने किया.

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