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बौद्धिक, मानसिक, आध्यात्मिक ज्ञान का प्रसार करने वाली हो शिक्षा – दीनानाथ बत्तरा

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???????????????????????????????रोहतक (विसंके). बाबा मस्तनाथ विश्वविद्यालय के प्रांगण में भारतीय शिक्षा नीति आयोग (निजी) के एक दिवसीय प्रदेश स्तरीय सम्मेलन में भारतीय शिक्षा नीति पर चिंतन एवं विचार विमर्श हुआ. कार्यक्रम में प्रदेश के शिक्षामंत्री रामबिलास शर्मा ने मुख्यातिथि के रूप में शिरकत की. कार्यक्रम की अध्यक्षता बाबा मस्तनाथ विश्वविद्यालय के कुलाधिपति एवं अलवर से सांसद महन्त चाँदनाथ योगी ने की.

मुख्यातिथि प्रो. रामबिलास शर्मा जी ने कहा कि आज सम्पूर्ण भारत के शिक्षाविद् इस बात को स्वीकार कर रहे हैं कि आज कि शिक्षा हमें आवरणों से ढक रही है जो हमें अध्यात्म से बहुत दूर लेकर जा रही है और पूरे भारत वर्ष को भारत एवं इंडिया जैसी दो विचारधाराओं में बांट रही है. हम आधुनिक प्रणाली के विरोधी नहीं, अपितु भारतीय आवश्यकताओं के अनुसार ऐसी शिक्षा के समर्थक हैं जो नैतिक मूल्यों को बढ़ाए. हमें परिस्थितियों से जूझना सिखाये, हमारे अन्त:करण को जाग्रत करे. गीता का ज्ञान जो हमारी आन्तिरक चेतना को जाग्रत करेगा, हमें अध्यात्म से जोड़ेगा और जो वास्तव में हमारी शिक्षा का मूल है उस तरफ हमें सकारात्मकता से लौटना होगा. संस्कृत के पठन-पाठन पर जोर देना होगा जो सभी भाषाओं की जननी है और शीघ्र ही हरियाणा में नई शिक्षा नीति लागू करने के लिये हम सभी शिक्षाविदो की सहायता से प्रयासरत हैं.

इससे पहले माननीय रामविलास शर्मा, स्थानीय विधायक मनीष ग्रोवर, कुलाधिपति एवं अलवर सांसद महन्त चाँदनाथ योगी, राष्ट्रीय अध्यक्ष दीनानाथ बतरा ने दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम की शुरुआत की. महन्त चाँदनाथ योगी ने कहा कि संत तो समाज में केवल ज्योत प्रकाशित कर सकता है, उसका फैलाव तो समाज पर निर्भर है. शिक्षा ही सम्पूर्ण जगत को बांधने का कार्य कर सकती है. अत: इसका सर्वोत्तम रूप में होना नितान्त आवश्यक है.

???????????????????????????????आयोग के राष्ट्रीय अध्यक्ष दीनानाथ बतरा जी ने कहा कि आज शिक्षा के भारतीय स्वरूप में पूर्ण परिवर्तन आ चुका है जो हमें मात्र जीविका कमाने तक सीमित करता जा रहा है. अब शिक्षाविदों के मानसिक पटल पर भली-भांति उकेरित हो चुका है कि आज शिक्षा से राजनीति को दूर करना होगा और राजनीति में शिक्षा को समाहित करना होगा. शिक्षा को आज स्वायतता की आवश्यकता है. शिक्षा को अब पूर्ण रूप से शिक्षाविदों के हाथों में होना चाहिये. उन्होंने बताया कि हमें आज ऐसे आचार्य को तैयार करना है जो अपने आचरण के द्वारा शिक्षा के ज्ञान दीप को प्रकाशित करें और प्रोफेसर, मास्टर, ट्रेनर जैसे बेमानी शब्दों को दूर करना होगा. हमें शिक्षा के ऐसे पाठ्यक्रम पर जोर देना होगा जो बौद्धिक, आध्यात्मिक, मानसिक सभी स्तरों पर ज्ञान का प्रकाश करे. आयोग के राष्ट्रीय महासचिव अतुल कोठरी ने शिक्षा में नैतिक मूल्यों के उत्थान पर बल दिया. भारतीय शिक्षा नीति आयोग के प्रांतीय अध्यक्ष एवं बाबा मस्तनाथ विश्वविद्यालय के कुलपति डा. मारकंडे ने कहा कि शिक्षा मनुष्य के जीवन के परिष्कार एवं

विकास की प्रणाली है. शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य व्यक्तित्व का सन्तुलित एवं सम्पूर्ण विकास अर्थात् शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा का विकास करना है. हमारे प्राचीन ग्रंथ कहते हैं कि विद्या श्रद्धा द्वारा प्राप्त होती है. जबकि आज हम अंहकार से भरे जा रहे हैं जो श्रद्धा का विपरीत भाव है और गुरु को केवल श्रद्धा से ही प्राप्त किया जा सकता है जो हमें विद्या प्रदान करेगा और वास्तव में आत्मदान करेगा, इसलिए विद्या व्यवसाय नहीं हो सकता. विद्या एक बौद्धिक साधना है जो हमें विवेक सिखाती है.

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