श्रीराम जन्मभूमि पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का मुस्लिमों सहित सारे देश ने स्वागत किया है, लेकिन स्वयं को मुस्लिमों का प्रतिनिधि कहने वाले आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने घोषणा की है कि वो न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दाखिल करेगा. दशकों से चल रहे इस मुकदमे पर अदालत का फैसला बहुत लम्बी सुनवाई और विश्लेषण के बाद आया है. सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के पहले 2010 में इलाहाबाद (अब प्रयाग) उच्च न्यायालय ने भी ये माना था कि राम जन्मस्थान पर स्थित मंदिर को तोड़कर बाबरी ढांचा खड़ा किया गया था.
इसके लिए पुरातात्विक व दस्तावेजों में दर्ज प्रमाणों की एक लम्बी श्रृंखला है, जिनके आधार पर फैसला आया है. इन दस्तावेजों में मुस्लिम इतिहासकारों और लेखकों द्वारा लिखे गए विवरण भी शामिल हैं. आज से बहुत पहले जब मुस्लिम लेखक रामजन्म भूमि पर अपने वक्तव्य दर्ज कर रहे थे, तब उनमें से शायद ही किसी को ये खयाल आया होगा कि उनकी ये लिखावट इतिहास की एक इबारत बन जाएगी. लेखकों द्वारा दिए गए ये बयान अकाट्य तर्क बन गए. ऐसे ही कुछ और दस्तावेजों के अंश इस प्रकार हैं…..
“मंदिर के स्थान पर एक भव्य बाबरी मस्जिद का निर्माण किया गया”
शेख मोहम्मद अज़मत अली काकोरवी नामी द्वारा रचित ‘तारीखे अवध’ अथवा ‘मरक्काऐं खसरवी’ (1869) का सन्दर्भ –
काकोरवी (1811-1893) ने यह पुस्तक 1869 में लिखी थी, परंतु एक शताब्दी से भी अधिक समय तक यह प्रकाशित नहीं हो पाई. जब डॉ. ज़की करोरवी ने छपने के लिए इसकी प्रेस कॉपी तैयार की, तब एफ.ए. अहमद मेमोरियल कमिटी, उसे इस शर्त पर छापने को तैयार हो गई कि इसमें 1855 की घटना संबंधी अध्याय नहीं छपेगा. बाद में डॉ. काकोरवी ने इस अध्याय को स्वतंत्र रूप से ’अमीर अली शाह और मरक़ाए हनुमानगढ़ी’ शीर्षक से प्रकाशित किया.
इसमें लिखा गया है – “अवध लक्ष्मण और राम के पिता की राजधानी था. (यहां) हिन्दुओं में आमतौर से सीता-की-रसोई के नाम से मशहूर जन्म-स्थान के परिसर के भीतर बने एक मंदिर के स्थल पर मूसा आशिकान के मार्गदर्शन में एक भव्य बाबरी मस्जिद का निर्माण किया गया था. निर्माण की तारीख का आकलन ‘खैर बाकी’ से किया जा सकता है . सूबेदार फिदाई खान द्वारा ‘राम दरबार’ के स्थल पर भी एक मस्जिद का निर्माण कराया गया. इसे बाद में हिन्दुओं ने ध्वस्त कर के मिटा दिया.
“राजा रामचन्द्र के निजी आवास को ध्वस्त कर बनाई गई मस्जिद”
हाजी मुहम्मद हसन द्वारा लिखित ‘जियाए अख्तर’ (लखनऊ 1878) पृष्ठ 38-39
लेखक कहता है – ‘‘अलहिजरी 923 (इस्लामी वर्ष) में राजा रामचन्द्र के निजी आवास (महल सराय) और सीता-की-रसोई को ध्वस्त करके दिल्ली के बादशाह जहीरूद्दीन की आज्ञा का पालन करते हुए सैय्यद मूसा आशिकान द्वारा बनवाई गई मस्जिद में तथा मुइनुद्दीन औरंगजेब, आलमगीर बादशाह द्वारा बनवाई गई दूसरी मस्जिद में, पुरानी पड़ जाने के कारण विभिन्न स्थानों पर दरारें पड़ गई थीं. इन दोनों ही मस्जिदों को धीरे-धीरे बैरागियों ने मिटा दिया और इसी बात के कारण दंगा हुआ….’’
“राजा राम के मकान ए पैदाइश को ध्वस्त कर एक अज़ीम मस्जिद बनवाई”
मौलवी अब्दुल करीम कृत ‘गुमगश्ते हालात ए अयोध्या अवध’ (अयोध्या की भूली-बिसरी घटनाएं), अर्थात् ‘तारीखे पर्निया मदीना अल्वालिया’ (फारसी में) लखनऊ 1885 का सन्दर्भ –
यह लेखक उस समय बाबरी ढांचे का इमाम था. वह हजरत शाह जमाल गुज्जरी की दरगाह का विवरण देते हुए लिखता है कि – इस दरगाह के पूरब में मुहल्ला अकबरपुर है, जिसका दूसरा नाम कोट राजा रामचंद्र जी भी है. इस कोट में कुछ बुर्ज (बाबरी ढांचे के गुम्बद वाले बड़े कक्ष) थे.
पश्चिमी बुर्ज की ओर ऊपर बताए गए राजा (श्रीराम) के जन्म का घर (मकान ए पैदाइश) तथा रसोई घर (बावर्चीखाना ) थे और अब यह परिसर जन्मस्थान और रसोई सीताजी के नाम से जाना जाता है. इन घरों (अर्थात् राम जन्मस्थान और सीता की रसोई) को ध्वस्त करने और मिटा देने के पश्चात् बाबर बादशाह ने उस स्थान पर एक भव्य (अज़ीम) मस्जिद बनवाई.
लेखक ने इस रचना में अनेक समसामयिक स्रोतों का हवाला दिया है. इसका उर्दू अनुवाद लेखक पोत मौलवी अब्दुल गफ्फार ने 1979 में किया था.
“बाबर ने ‘जन्मस्थान’ को ध्वस्त करवा कर मस्जिद बनवाई थी”
अल्लामा मुहम्मद नजमुलगनी खान रामपुरी कृत ‘तारीखे अवध’ (1909) का सन्दर्भ –
डॉ. जकी काकोरवी ने इस पुस्तक का एक संक्षिप्त संस्करण प्रकाशित किया है. इस संस्करण के खण्ड 2 का एक अंश (पृ 570-575) इस प्रकार है –
1). ‘‘अयोध्या में जिस स्थान पर रामचन्द्र के जन्मस्थान का मंदिर स्थित था, उसी स्थान पर सैयद आशिकान के संरक्षकत्व में बाबर ने एक भव्य मस्जिद बनाई थी. सीता की रसोई इसी की बगल में बनी हुई है. मस्जिद के निर्माण की तारीख ‘खैर बाकी’ (अल हिजरी 623) है. यह स्थान आज तक सीता की रसोई के नाम से ही जाना जाता है, इसके साथ पर ही वह मंदिर खड़ा है, जिसके लिए कहा जाता है कि इस्लाम की विजय के समय भी यहां तीन मंदिर थे, जिनके नाम ‘जन्मस्थान’, जो रामचंद्र जी के जन्म का स्थान था, ‘स्वर्गद्वार’ अथवा ‘रामदरबार’ और ‘त्रेता का ठाकुर’ थे. बाबर ने ‘जन्मस्थान’ को ध्वस्त करवा कर मस्जिद बनवाई थी.’’
2). ……”संक्षेप में कहा जाए तो 1855 में हिन्दू उस स्थिति में पहुंच गए थे कि हिन्दुओं ने हनुमानगढ़ी में ध्वस्त मस्जिद के अतिरिक्त बाबरी मस्जिद के प्रांगण में भी, जहां सीता की रसोई स्थित थी, एक मंदिर का निर्माण कर लिया था… .”
3). …… “अंततः जिलदका, हिजरी सन 1271 (जुलाई 1855) में बाबरी मस्जिद में जो कि सीता-की-रसोई के अंदर स्थित है, दसवीं या बारहवीं बार दो या तीन सौ मुसलमान इकट्ठे हुए….”
लेखक मुहम्मद नजमुलगनी खान ने इस पुस्तक के लेखन में 17वीं से 18वीं शताब्दियों के भारत/अवध के इतिहास सम्बंधी 81 स्रोतों (पांडुलिपियों और पुस्तकों) का उपयोग किया था. इसमें से अधिकतर के लेखक मुस्लिम थे, परन्तु कुछ हिन्दू और यूरोपीय लेखकों की रचनाओं का भी उन्होंने उपयोग किया था.
“बिलकुल उसी स्थान पर बाबर ने यह मस्जिद बनाई….”
मौलाना हाकिम सईद अब्दुल हई कृत ‘हिन्दोस्तान इस्लामी अहद’ का संदर्भ –
मौलाना हाकिम सईद अब्दुल हई (मृत्यु 1923) इस्लामी संस्कृति के इतिहास के एक मूर्धन्य विद्वान और नदवत-उल-उलमा के रैक्टर थे. इन्होंने 20वीं शताब्दी के प्रारम्भ में ‘हिन्दोस्तान इस्लामी अहद’ के नाम से अरबी भाषा में एक पुस्तक लिखी थी जो 1972 में हैदराबाद से प्रकाशित हुई. इसका उर्दू अनुवाद उनके पुत्र मौलाना अब्दुल हसन नदवी उपाख्य अली मियां के प्राक्कथन सहित नदवत-उल-उलमा, लखनऊ 1973, में प्रकाशित किया गया.
1977 में इसका अंग्रेज़ी अनुवाद प्रकाशित हुआ. इस पुस्तक में ‘हिन्दुस्तान की मस्जिदें’ शीर्षक से एक अध्याय था. इसमें कम से कम छः ऐसी मस्जिदों के निर्माण के उदाहरण दिए गए थे, जिन्हें 12वीं से 17वीं शताब्दी की अवधि में मुसलमान शासकों द्वारा हिन्दुओं के मंदिरों को ध्वस्त करके ठीक उसी स्थान पर बनाया गया था. बाबरी मस्जिद के विषय में वे लिखते हैं –
“इस मस्जिद का निर्माण बाबर द्वारा अयोध्या में किया गया, जिसे हिन्दू रामचंद्र जी का जन्म-स्थान कहते हैं. उनकी पत्नी सीता के विषय में एक कथा मशहूर है. कहा जाता है कि यहां सीता का एक मंदिर था, जिसमें वे रहती थीं और उनके पति के लिए भोजन बनाती थीं. बिलकुल उसी स्थान पर बाबर ने यह मस्जिद बनाई…..”
इन सारे विवरणों और प्रमाणों को वामपंथी इतिहासकारों ने जुनूनी लेखकों का “डींग हांकना” कहकर खारिज कर दिया और बाबरी पक्षकारों ने चुप्पी साध ली. पर, अदालत ने इन्हें ठोस प्रमाण माना और फैसला सुनाया.
प्रशांत बाजपेई