मेरठ (विसंकें). सन् 1857 की क्रांति के शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए राष्ट्रदेव के सम्पादक अजय मित्तल जी ने कहा कि सन् 1857 की क्रांति समाज के बड़े भाग की सहभागिता पर आधारित थी. राजा से लेकर रंक तक इसमें शामिल थे. स्वराज्य एवं स्वधर्म, इन दो तत्वों ने भारतीयों को उद्वेलित किया था. अजय जी अधीश स्मृति न्यास मेरठ द्वारा आयोजित ‘‘नमन 1857’’ कार्यक्रम में संबोधित कर रहे थे.
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता अजय मित्तल जी ने कहा कि लगभग 10 लाख लोग संग्राम में बलिदान हुए. फिर भी क्रांति असफल हुई. इसके दो प्रमुख कारण रहे. पहला, क्रांति निर्धारित तिथि 31 मई से तीन सप्ताह पहले मेरठ के धैर्यहीन सैनिकों ने प्रारम्भ कर दी, जिस कारण सर्वत्र भ्रम फैल गया. दूसरा, क्रांति के सर्वमान्य नेता नाना साहब के स्थान पर एक 82 वर्षीय व्यक्ति बहादुर शाह जफर के इंकार करने के बाद भी उसे नेता बना दिया गया, जिसने एक बार भी प्रत्यक्ष नेतृत्व नहीं दिया, एक बार भी तलवार नहीं उठायी, और अंग्रेजों से भीतर ही भीतर समझौते के प्रयास करता रहा. मुगलों की वापसी की आहट देखकर सिख, गोरखे आदि उदासीन हो गये.
सन् 1857 की क्रांति को प्रथम स्वाधीनता संग्राम कहना अनुपयुक्त है. सावरकर ने भी इसे ‘प्रथम’ कहीं नहीं लिखा. उनकी पुस्तक का नाम – 1857 का स्वातंत्र्य समर है. भारत में इसके पूर्व हजार साल से जगह-जगह स्वाधीनता संग्राम चले हैं. अंग्रेजों के विरुद्ध भी पहला संग्राम बंगाल के सन्यासियों ने वर्ष 1779 के पूर्व लड़ा था, जिसका वर्णन आनन्द मठ में है. कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए सेवानिवृत्त आईएएस मण्डलायुक्त रविकांत भटनागर ने न्यास के प्रयास की प्रशंसा करते हुए अपने विचार रखे. कार्यक्रम का संचालन अरुण जिन्दल ने किया.