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“मैं युद्ध भूमि छोड़कर नहीं जाऊंगी, इस युद्ध में मुझे विजय अथवा मृत्यु में से एक चाहिए” – रानी दुर्गावती

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अकबर ने वर्ष 1563 में आसफ खान नामक बलाढ्य सेनानी को गोंडवाना पर आक्रमण करने भेज दिया. यह समाचार मिलते ही रानी दुर्गावती ने अपनी व्यूहरचना आरंभ कर दी. सर्वप्रथम अपने विश्वसनीय दूतों द्वारा अपने मांडलिक राजाओं तथा सेनानायकों को सावधान हो जाने की सूचनाएं भेज दीं. अपनी सेना की कुछ टुकड़ियों को घने जंगल में छिपा रखा और शेष को अपने साथ लेकर रानी निकल पड़ी. रानी ने सैनिकों को मार्गदर्शन किया. एक पहाड़ की तलहटी पर आसफ खान और रानी दुर्गावती का सामना हुआ. बड़े आवेश से युद्ध हुआ. मुगल सेना विशाल थी. उसमें बंदूकधारी सैनिक अधिक थे. इस कारण रानी के सैनिक मरने लगे, परंतु इतने में जंगल में छिपी सेना ने अचानक धनुष-बाण से आक्रमण कर, बाणों की वर्षा की. इससे मुगल सेना को भारी क्षति पहुंची और रानी दुर्गावती ने आसफ खान को पराजित किया. आसफ खान ने एक वर्ष की अवधि में तीन बार आक्रमण किया और तीनों ही बार वह पराजित हुआ.

अंत में वर्ष 1564 में आसफ खान ने सिंगौरगढ़ पर घेरा डाला, परंतु रानी वहां से भागने में सफल हुई. यह समाचार पाते ही आसफ खान ने रानी का पीछा किया. पुनः युद्ध आरंभ हो गया. दोनों ओर से सैनिकों को भारी क्षति पहुंची. रानी प्राणों पर खेलकर युद्ध कर रही थीं. इतने में रानी के पुत्र वीरनारायण सिंह के अत्यंत घायल होने का समाचार सुनकर सेना में भगदड़ मच गई. सैनिक भागने लगे. रानी के पास केवल 300 सैनिक थे. उन्हीं सैनिकों के साथ रानी स्वयं घायल होने पर भी आसफ खान से शौर्य से लड़ रही थी. उसकी अवस्था और परिस्थिति देखकर सैनिकों ने उसे सुरक्षित स्थान पर चलने की विनती की, परंतु रानी ने कहा – ‘‘मैं युद्ध भूमि छोड़कर नहीं जाऊंगी, इस युद्ध में मुझे विजय अथवा मृत्यु में से एक चाहिए. अंत में घायल तथा थकी हुई अवस्था में उसने एक सैनिक को पास बुलाकर कहा, “अब हमसे तलवार घुमाना असंभव है, परंतु हमारे शरीर का नख भी शत्रु के हाथ न लगे, यही हमारी अंतिम इच्छा है. इसलिए आप भाले से हमें मार दीजिए. हमें वीर मृत्यु चाहिए और वह आप हमें दीजिए”; परंतु सैनिक वह साहस न कर सका, तो रानी ने स्वयं ही अपनी तलवार गले पर चला ली.

वह दिन था 24 जून 1564 का. इस प्रकार युद्ध भूमि पर गोंडवाना के लिए अर्थात् अपने देश की स्वतंत्रता के लिए अंतिम क्षण तक वह झूझती रही. गोंडवाना पर 15 वर्ष तक रानी दुर्गावती का शासन था, जो मुगलों ने नष्ट किया. इस प्रकार महान पराक्रमी रानी दुर्गावती का अंत हुआ. इस महान वीरांगना को हमारा शतशः प्रणाम !

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