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यमुना पुस्ता व खादर में बनी अवैध कॉलोनी क्यों नजर नहीं आती – डॉ. सुरेन्द्र जैन

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नई दिल्ली. विश्व हिन्दू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय संयुक्त महामंत्री डॉ. सुरेंद्र जैन ने आर्ट ऑफ लिविंग द्वारा दिल्ली में आयोजित किए जाने वाले विश्व सांस्कृतिक महोत्सव पर  नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) द्वारा थोपे गए जुर्माने को जजिया कर की संज्ञा दी. उन्होंने जारी प्रैस वक्तव्य में कहा कि पर्यावरण संरक्षण के विषय में हिन्दू समाज (विशेषकर श्रीश्री रवि शंकर जैसे महापुरुषों या उनकी किसी संस्था) पर बिना किसी जुर्म के जुर्माना लगाना मुगलकालीन जजिया कर की याद ताजा करता है. एक आयोजन जिसके माध्यम से भारत का धर्म, आध्यात्म, योग, कला और संस्कृति का परचम विश्व भर में फैलाने के अलावा यमुना सुरक्षा के प्रति जागरण की तैयारी हो रही हो, वह भला ‘सेक्युलरवादी’ लोगों को रास कैसे आ सकता है? उन्होंने एनजीटी से मामले में पुनर्विचार करने का भी आग्रह किया.

उन्होंने कहा कि यमुना पुस्ता और खादर पर बनी बांग्लादेशी घुसपैठियों की अवैध झुग्गियों, मुस्लिम वोट बैंक की खान बनी ओखला बैराज और यमुना जी से सटी अवैध कालोनियों, बूचड़खानों से निकलने वाले मांस, रक्त और अपशिष्ट अंग, लेदर फैक्ट्रियों व अन्य ओद्यौगिक प्रतिष्ठानों से निकलने वाले घातक रसायन, कबाड़ व प्लास्टिक के निरंतर जलाने से उठे धुंए भरे गुब्बारे और बदबू तथा यमुना जी से निरंतर हो रही रेत की चोरी पर एनजीटी का मौन चिंतनीय है. इसके अलावा एनजीटी को एक बार दिल्ली के जामा मस्जिद सहित क्षेत्रों का दौरा नाक और कान को बिना ढके करने का साहस करना चाहिए, जिससे वहां रह रहे अन्य लोगों की जीने की मजबूरी को समझा जा सके तथा यह भी जाना जा सके कि आखिर पर्यावरण को नुकसान कर कौन रहा है ?

पर्यावरण के नाम पर दिवाली पर तो पटाखों पर प्रतिबन्ध की बात की जाती है, किन्तु अंग्रेजी न्यू ईयर पर नहीं, नदियों में मूर्ति विसर्जन पर रोक किन्तु शवों / ताजियों के दफनाने पर नहीं, होली में पर्यावरण का संकट किन्तु ईद पर निरीह जानवरों के काटने से नहीं, अगरबत्ती, धूपबत्ती या फूलपत्तियों के विसर्जन से प्रदूषण, किन्तु जानवरों के रक्त और मांस से नहीं. और तो और अब एनजीटी को हिन्दुओं के अंतिम संस्कार की विधि भी खटकने लगी है और कल दैनिक यज्ञ पर भी आंच आ सकती है. उन्होंने पूछा कि यह सलेक्टिव पर्यावरण प्रेम आखिर कब तक चलेगा ?

विहिप ने कार्यक्रम के विरोधियों को सलाह दी कि सिर्फ हिन्दू समाज की आलोचनार्थ लामबंद होने की बजाय वे विश्व कल्याण व मानवता की सेवार्थ कार्यक्रम में सहभागी बनें.

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