रांची. नागरिकता संशोधन अधिनियम पर आयोजित विचार गोष्ठी में वक्ताओं ने कहा कि यह अधिनियम पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों के सम्मान के लिए है. सरकार गांधी जी के सपनों को पूरा कर रही है. नेहरू से लेकर ज्योति बसु तक ने अधिनियम की वकालत की थी.
नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 को लेकर पलाश वन भवन में राष्ट्र संवर्धन समिति के तत्वाधान में विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया. विचार गोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्र प्रचारक रामदत्त चक्रधर उपस्थित रहे. ब्रिगेडियर बीजी पाठक मुख्य अतिथि थे. अधिनियम के कानूनी पहलुओं से रूबरू कराने के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता राजेंद्र कृष्ण जी भी उपस्थित रहे. कार्यक्रम की अध्यक्षता राष्ट्र संवर्धन समिति के अध्यक्ष ज्ञान प्रकाश जालान ने की.
मुख्य वक्ता रामदत्त चक्रधर ने कहा कि स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में कहा था कि भारत पूरी दुनिया के पीड़ित-शोषित को संरक्षण देता है. पूर्व प्रधानमंत्री अटल जी अपनी कविताओं में कहते थे कि हमने खुद को लुटाकर भी दुनिया भर से आए लोगों को संरक्षण दिया है. इसका साक्षी पूरा विश्व रहा है. रही बात नागरिकता की तो 566 मुसलमानों को भी इस सरकार ने भारत की नागरिकता दी है. शिमला समझौता में भारत के विभाजन का प्रस्ताव आया था. उस वक्त माउंटबेटन, गांधी जी, नेहरू जी, लियाकत और जिन्ना भी थे. तब देश के लोगों को लगा था कि कांग्रेस के प्रस्ताव में इसका विरोध होगा, परन्तु उसी प्रस्ताव पर कांग्रेस ने मुहर लगा दी. उस विभाजन में ढाई करोड़ लोगों का विस्थापन हुआ. 10 लाख से अधिक हिन्दुओं की हत्या हुई. तब नेहरू लियाकत समझौते में दोनों देशों ने अपने-अपने अल्पसंख्यकों को संरक्षण देने की बात कही थी. भारत ने तो इसका बखूबी पालन भी किया, परन्तु पाकिस्तान ने समझौते की धज्जियां उड़ा दी. पाकिस्तान व बांग्लादेश में गैर इस्लामिक नागरिकों की संख्या आश्चर्यजनक रूप से घटती गई.
आखिर ये गए कहां? या तो इनका धर्मपरिवर्तन हुआ या इनकी हत्या हुई या भगा दिए गए. पूरी दुनिया में हिन्दुओं के लिए एकमात्र देश भारत ही है…. यह अधिनियम बहुत पहले आना चाहिए था, परंतु वोट बैंक के लालच में नेताओं ने इस पर ध्यान नहीं दिया.
1947 में कांग्रेस के प्रस्ताव में और खुद नेहरू जी ने कहा था कि पड़ोसी देश पाकिस्तान में जो प्रताड़ित हैं, उनके लिए भारत के दरवाजे हमेशा खुले हैं. ऐसे लोगों की देखरेख व उन्हें हर सहायता प्रदान करना भारत सरकार की पहली प्राथमिकता है. स्वयं सुचेता कृपलानी, कांग्रेस नेत्री ने तब कहा था कि पाकिस्तान के हिन्दू और सिक्ख स्वयं को असहाय न समझें. उनकी पूरी चिंता भारत करेगा. यह भारत की जिम्मेदारी है. देश को आजाद करवाने में उन्होंने भी भूमिका निभाई, परन्तु दुर्भाग्यवश सीमाओं के बंटवारे के कारण वो पाकिस्तान में चले गए. उनका भारत में स्वागत है. वे हमारे लिए परदेसी नहीं हैं.
रामदत्त जी ने कहा कि अब यह बात हमें सोचनी चाहिए कि आखिर यह कौन सी कांग्रेस है जो अपने ही पुरखों की बात को नहीं मानती. पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहे ज्योति बसु ने भी केंद्र सरकार को पत्र लिखकर कहा था कि बांग्लादेशी घुसपैठियों के कारण पश्चिम बंगाल में जनसंख्या अंसतुलन व आंतरिक सुरक्षा को खतरा उत्पन्न हो गया है.
अधिनियम को लेकर लोगों में बेवजह का भ्रम पैदा किया जा रहा है. धार्मिक उत्पीड़न की बात करें तो सिंध प्रांत में प्रतिवर्ष 1000 लड़कियों का जबरन धर्मान्तरण किया जा रहा है. 1987 से अब तक 1500 लोगों को पाकिस्तान में सिर्फ ईशनिंदा के कारण सजा दी गई. ज्यादातर शिकार बहने और बेटियां होती हैं. सरकार ने यह कानून सिर्फ धार्मिक रूप से प्रताड़ित अल्पसंख्यकों के लिए बनाया है. लियाकत अली ने कहा था कि पाकिस्तान से सफाई कर्मियों को भारत नहीं भेजा जाएगा, वरना पाकिस्तान की सड़कों पर झाड़ू कौन लगाएगा. ऐसे बंधुओं को सम्मान देने के लिए सरकार ने यह कानून बनाया है.
वर्तमान में राष्ट्र विरोधी ताकतें जो काम कर रही हैं, उन्हें रोकने के लिए जरूरी है कि समाज के सज्जन लोग आगे आएं. लोगों में जागरूकता लाने की जरूरत है.
मुख्य अतिथि ब्रिगेडियर बीजी पाठक ने कहा कि देश में जिस तरह से माहौल बिगाड़ा जा रहा है, इससे बहुत पीड़ा होती है. मैं उस जमात से आता हूं, जहां कोई जाति-धर्म नहीं है, हमारा एक धर्म होता है वो है राष्ट्रधर्म. नागरिकता संशोधन अधिनियम को लेकर नार्थ-ईस्ट व शेष भारत में समस्या अलग अलग है. 2003 – 2005 में नार्थ-ईस्ट में सेवा के दौरान मुझे भी कई अनुभव रहे है. वहां के कई क्षेत्रों में स्थानीय निवासी ही अल्पसंख्यक बन गए हैं. अब उनके सामने संकट है कि यदि बाहरी लोगों को नागरिकता मिलती है तो स्थानीय संस्कृति के समक्ष संकट खड़ा होगा. वहां अधिकतर लोग बांग्लादेशी हैं.
वरिष्ठ अधिवक्ता राजेन्द्र कृष्ण ने कहा कि हमारे संविधान के आर्टिकल 15 का हवाला देकर जो लोग इस अधिनियम का विरोध कर रहे हैं वो बिल्कुल गलत है. संविधान ने हमें इस बात की आजादी दी है कि परिस्थितिजन्य हालातों को देखते हुए सरकार निर्णय ले सकती है. अवैध दो लोगों को कहा गया है. एक वैसे लोग जिनके पास दस्तावेज थे, लेकिन उनकी वैधता समाप्त हो चुकी है और दूसरे वो लोग जिनके पास कोई दस्तावेज थे ही नहीं. ऐसे में सरकार को निर्णय लेना होता है, नीति बनानी होती है कि उन्हें किसके लिए क्या प्रावधान करना है. सरकार ने इसी के तहत ऐसे धार्मिक अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान किया है, जो पड़ोसी देशों में धार्मिक रूप से शोषित और प्रताड़ित हैं. सरकार ने पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों को इसलिए चुना क्योंकि ये देश इस्लामिक देश हैं और वहां हिन्दू, बौद्ध, जैन, पारसी, ईसाई आदि अल्पसंख्यक हैं.
कार्यक्रम का संचालन शालिनी सचदेव ने किया. धन्यवाद ज्ञापन विवेक भसीन ने किया. कार्यक्रम का समापन वंदेमातरम के साथ हुआ.