लाला लाजपत राय का जन्म पंजाब के मोगा जिले में अग्रवाल परिवार में हुआ था. उन्होंने कुछ समय हरियाणा के रोहतक और हिसार शहरों में वकालत की. ये भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के गरम दल के प्रमुख नेता थे. बाल गंगाधर तिलक और बिपिन चंद्र पाल के साथ इस त्रिमूर्ति को लाल-बाल-पाल के नाम से जाना जाता था. इन्हीं तीनों नेताओं ने सबसे पहले भारत में पूर्ण स्वतन्त्रता की माँग की थी, बाद में समूचा देश इनके साथ हो गया. उन्होंने स्वामी दयानन्द सरस्वती के साथ मिलकर आर्य समाज को पंजाब में लोकप्रिय बनाया. लाला हंसराज के साथ दयानन्द एंग्लो वैदिक विद्यालयों का प्रसार किया, लोग जिन्हें आजकल डीएवी स्कूल्स व कॉलेज के नाम से जानते हैं. लालाजी ने अनेक स्थानों पर अकाल में शिविर लगाकर लोगों की सेवा भी की थी. 30 अक्तूबर 1928 को उन्होंने लाहौर में साइमन कमीशन के विरुद्ध आयोजित एक विशाल प्रदर्शन में हिस्सा लिया, इस दौरान हुए लाठी-चार्ज में ये बुरी तरह से घायल हो गए. उस समय उन्होंने कहा था – “मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी ब्रिटिश सरकार के ताबूत में एक-एक कील का काम करेगी.” और वही हुआ भी; लालाजी के बलिदान के 20 साल के भीतर ही ब्रिटिश साम्राज्य का सूर्य अस्त हो गया. 17 नवंबर 1928 को इन्हीं चोटों की वजह से इनका देहान्त हो गया.
लालाजी की मौत का बदला-
लाला जी की मृत्यु से सारा देश उत्तेजित हो उठा और चंद्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव व अन्य क्रांतिकारियों ने लालाजी पर जानलेवा लाठीचार्ज का बदला लेने का निर्णय किया. इन देशभक्तों ने अपने प्रिय नेता की हत्या के ठीक एक महीने बाद अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर ली और 17 दिसम्बर 1928 को ब्रिटिश पुलिस के अफ़सर सांडर्स को गोली से उड़ा दिया. लालाजी की मौत के बदले सांडर्स की हत्या के मामले में ही राजगुरु, सुखदेव और भगतसिंह को फाँसी की सजा सुनाई गई.
हिन्दी सेवा –
लाला लाजपत राय जी ने हिन्दी में शिवाजी, श्रीकृष्ण और कई महापुरुषों की जीवनियाँ लिखीं. उन्होंने देश में और विशेषतः पंजाब में हिन्दी के प्रचार-प्रसार में बहुत सहयोग दिया. देश में हिन्दी लागू करने के लिये उन्होंने हस्ताक्षर अभियान भी चलाया था.