मुंबई (विसंकें). कोंकण प्रांत संघचालक सतीश मोढ जी ने कहा कि त्याग, सेवा और समर्पण जैसे गुण बचपन से ही महिलाओं में होने के कारण महिलाएं सेवाकार्य में अग्रसर रहती हैं. सतीश जी रामभाऊ म्हाळगी प्रबोधिनी तथा डी.एच. गोखले व श्यामला गोखले धर्मादाय न्यास द्वारा आयोजित अंत्योदय पुरस्कार समारोह में बोल रहे थे.
इस साल का अंत्योदय पुरस्कार मोखाडा के अतिदुर्गम क्षेत्र में वनवासी महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए परिवर्तन संस्था के माध्यम से कार्य कर रही वर्षा परचुरे जी को प्रदान किया गया. एक लाख रुपये की राशि, सम्मान चिन्ह व शाल, श्रीफळ पुरस्कार स्वरुप प्रदान किया गया.
सतीश जी ने कहा कि त्याग, सेवा और समर्पण इन गुणों से महिला स्वयंप्रेरित है. इसलिए उन्हें इन गुणों को सिखाया नहीं जाता. इसके विपरीत बंधनमुक्त जीवन, नियम-कायदों का उल्लंघन, हिंसक वृत्ति आदि अवगुण पुरुषों में अधिक रहते हैं. इसी कारण उनकी सामाजिक कार्य में कम रुचि रहती है. महिलाओं को ये गुण सिखाने नहीं पड़ते, मात्र पुरुषों को सिखाने पड़ते हैं.
उन्होंने कहा कि संघ में स्वयंसेवकों को संयम सिखाया जाता है. इसलिए वह स्व से ज्यादा समाज कार्य में हिस्सा लेते हैं. इसी से आज एक लाख सत्तर हजार स्थानों पर सामाजिक कार्य (सेवा कार्य) चल रहे हैं. नीलम जी ने कहा कि महिला सुरक्षित रहेगी तो वह राष्ट्र, समाज को एक ऊंचाई पर ले जाएगी. इसीलिए उनकी सुरक्षा की आवश्यकता है. साध्य और साधन का उत्कृष्ट मिलाप हुआ तो काम संपन्न हो जाता है. जब तक साध्य और साधना में सुर नहीं मिलता, तब तक कार्य पूरा नहीं हो सकता. आदिवासी क्षेत्रों के विकास के लिए निधि नहीं मिलती, ऐसा नहीं है. परंतु वह उनके पास ज्यादा से ज्यादा प्रमाण पर पहुंचे, इसका प्रयास करना चाहिए. इसी प्रयास में लगी उत्तम संस्था को अंत्योदय पुरस्कार दिया जाता है. अंत्योदय का मतलब निरंतर काम करना, इसके लिए यह पुरस्कार दिया जाता है.
वर्षा परचुरे जी ने कहा कि पिता जी संघ में काम करते थे, इसी वजह से संघ की शिक्षा से लोगों को समझना तथा उनके साथ काम करना सुलभ हुआ. मोखाडा के समाज तथा महिलाओं को स्वयंपूर्ण बनाना और सक्षम बनाना, इसी दृष्टि से हम काम कर रहे हैं. सहायता करने के लिए हमेशा तत्पर रहने वालों की वजह से प्रोत्साहन मिलता है. अंत्योदय पुरस्कार मिलने से काम करने के लिए स्फूर्ति प्राप्त हुई है.