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‘वर्ल्ड रामायण कॉन्फ्रेंस’ – भारत की ज्ञान गंगा में डुबकी लगाने को आतुर विश्व

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विश्व आज उस बिन्दु तक आ गया है, जब उसके पास भारत के ऋषियों के चरणों में आ बैठने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा है. भारत को भी ज्ञान की अपनी इस सरयू में डुबकी लगाने आवश्यकता है. योग, वेद, उपनिषद्, रामायण और महाभारत दिन-प्रतिदिन अधिकाधिक प्रासंगिक होते जा रहे हैं. बीते दशकों में ज्ञान और तकनीक के विस्फोट के कारण मानव की अज्ञानता और संकुचित सोच के कवच में कुछ दरारें उभर आई हैं. इसलिए उसकी ग्रहण करने की मानसिकता और क्षमता बढ़ी है. एक शताब्दी पहले स्वामी विवेकानंद के साथ हिन्दू दर्शन दुनिया के दूरस्थ हिस्सों तक पहुंचा था, जिसने अब विशाल स्वरूप ले लिया है. हमारे पूर्वज, जो सागर को पार कर सुदूर दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में पहुंचे थे, वे आज पुकार रहे हैं.

यह सब 26 से 29 जनवरी तक जबलपुर में संपन्न आज तक की सबसे बड़ी ‘वर्ल्ड रामायण कॉन्फ्रेंस’ में अनुभूत किया जा सकता था. सम्मेलन ने दुनियाभर के विद्वानों, शिक्षाशास्त्रियों, कलाकारों तथा रामायण प्रेमियों को आकर्षित किया. 92 देशों के 250 प्रतिनिधियों और 40 संकायों ने भी इसमें हिस्सा लिया.

गायक उस्मान मीर का मंत्रमुग्ध करने वाला भजन गायन और सुंदरता से रचित,‘होरी खेरें रघुबीरा’ ने भारतीय कला साधना में निहित आध्यात्मिक मूल्यों को प्रकट किया. उस्मान मीर ने जब ‘अनहद नाद बजावो’ की तान खींची तो सभागार में कम्पित होते मौन को महसूस किया जा सकता था. रामायण आधारित काव्य संध्या ‘कवि कोविद कह सके कहां ते…’ संपन्न हुई. वहीं रामायण की झलकियां दिखाती प्रदर्शनी भी लोगों को खींचती रही. राम सिक्ख परंपरा में भी रचे-बसे हैं. राम नाम विभिन्न रूपों में ढाई हजार बार से अधिक गुरुग्रन्थ साहिब में आया है. इसलिए सम्मेलन की शुरुआत रागियों के शबद कीर्तन से हुई. रामायण आधारित विद्यार्थी कार्यशाला में विद्यार्थियों ने अच्छी संख्या में भाग लिया. अकादमिक सत्रों के विषयों में रामराज्य में अर्थशास्त्र, रामायणकाल की महान महिलाएं, सैन्य विज्ञान, रामायण का सॉफ्ट पॉवर और विश्व में रामायण का संचार आदि सत्र थे, जबकि सांस्कृतिक सत्रों में इंडोनेशियाई रामायण, मणिपुरी रामायण, राम और मारीच को चित्रित करती थाईलैंड की नृत्य नाटिका और रामलीला समिति गढ़ा जबलपुर द्वारा प्रस्तुत रामायण की झलकियां भी शामिल थीं.

न्यायालय में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के पक्ष में अकाट्य प्रमाण प्रस्तुत करने वाले पुरातत्ववेत्ता के.के. मुहम्मद ने कहा, ‘राम मंदिर के अस्तित्व को लेकर संदेह की कोई गुंजाइश ही नहीं थी. जन्मस्थान का एक-एक पत्थर वहां प्राचीन राम मंदिर के होने का प्रमाण दे रहा था.’ मेजर जनरल (सेनि.) जीडी बख्शी ने रामायणकाल में वर्णित युद्धकला पर बात रखी. उन्होंने कहा, ‘युद्ध जीतने के लिए युद्ध की तैयारियों का बड़ा महत्व होता है. रामायण में हमें युद्ध की तैयारियों का विस्तृत वर्णन मिलता है. चाहे सेतु निर्माण हो या अन्य तैयारियां. हम देखते हैं कि कैसे दोनों पक्ष युद्ध जीतने के लिए अथक प्रयत्न करते हैं. राम और रावण दोनों को युद्ध के विभिन्न प्रकारों का गहरा ज्ञान था. राम ने बड़ी कठिन लड़ाई लड़ी. रावण जैसे अनुभवी और साधन संपन्न विरोधी को परास्त करना आसान नहीं था.’

देश, काल, तत्कालीन समाज और परिस्थिति को देखते हुए रामायण अपने देश और दुनिया में अलग-अलग रूपों में अभिव्यक्त हुई है. जबलपुर के केसी जैन ने श्रमण (जैन) परंपरा में प्रचलित 9 रामायण ग्रंथों का परिचय दिया – रामकथा (संस्कृत), पद्मपुराण (संस्कृत), पौम्चेरियम (प्राकृत), पौम्चेरियम (अपभ्रंश), कुमूदेंदू रामायण (कन्नड़), पद्मपुराण (सन् 1439, अपभ्रंश), पद्मपुराण (सन् 1597, अपभ्रंश), पद्मपुराण (हिंदी) और मारवाड़ी हिंदी में राम रसाय रस. उन्होंने 10 जैन पुराणों के बारे में भी बताया, जिनमें रामकथा को संक्षेप में कहा गया है.

वैश्विक कूटनीति में ‘सॉफ्ट पॉवर’ का बड़ा महत्वपूर्ण स्थान होता है. विश्व रामायण संगोष्ठी सॉफ्ट पॉवर के रूप में भारत की संस्कृति, इतिहास और रामायण के महत्व को रेखांकित करती है. प्रसिद्ध बौद्धिक योद्धा स्टीफन नैप ने संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा, ‘मानव जीवन में अनेक कष्टों के होते हुए भी अनेक आशीर्वाद और उपाय भी हमें मिले हैं, जिनमें से एक रामकथा है. रामकथा हमारे समाज को उन्नत बना सकती है. न केवल भौतिक अर्थों में बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी.’ रामकथा के गहराई से श्रवण-मनन से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष उपलब्ध होता है. यह रामायण की ताकत है.

अमेरिकी फिल्म निर्माता-निर्देशक और एक स्वतंत्र अध्येता, माइकल स्टर्नफेल्ड, पिछले 40 वर्षों से महर्षि महेश योगी के अनुकरणकर्ता हैं. रामायण पर उन्होंने कहा, ‘रामकथा को पढ़ते हुए जब हम क्रमश: आगे बढ़ते हैं और विभिन्न उतार-चढ़ावों के बाद जब राम विजय होती है तो एक श्रोता या पाठक के रूप में हमारे पास क्या अनुभूति गहराती है? वास्तव में संस्कृत वांग्मय के अंग के रूप में रामायण करुणा के साथ कल्याण और शुद्धतम ज्ञान हमारे हृदय पर अंकित करती है. रामायण में स्वयं ब्रह्म मंच पर अवतरित हुए हैं. रामायण उच्च चेतना के विकास का सीधा और स्पष्ट खाका है. जब चेतना में संपूर्णता खिलने लगती है तो रामायण के ये कंपन हमारे चैतन्य में स्थिर होने लगते हैं.’

विपरीत का संतुलन सृष्टि और हिन्दू दर्शन का मुख्य आधार है. इसे अर्द्धनारीश्वर, शिव-शक्ति तत्व और श्रीमद् भागवत में महारास के रूप में चित्रित किया गया है. भारत से यह ज्ञान चीन पहुंचा, जहां इसे ‘यिन-यैंग’ के रूप में दर्शाया गया. चीन के प्राचीन रहस्यवादियों और परम्परागत चीनी मार्शल आर्ट ने इसी ‘यिन-यैंग’ को अपना आधार बनाया. विपरीत के इस संतुलन को स्पर्श करते हुए माइकल स्टर्नफेल्ड बोले, ‘रामायण के सभी चरित्र और अपनी सभी बारीकियों के साथ (मानव का) रूपांतरण करने वाले रामकथा के सभी तत्व हमारे स्वयं के अस्तित्व का हिस्सा हैं. ये (विपरीत) शिव-शक्ति की क्रीड़ा की अभिव्यक्ति हैं. रामकथा के साथ चलते हुए हम चेतना का लचीला और लगातार विस्तृत होता पात्र तैयार करते हैं जो हमें जीवन की संपूर्णता की ओर ले जाता है, जिसका अवतार राम हैं.’ आंध्र से आए मन्यम कुप्पुस्वामी ने रामायण में भद्राचलम विषय पर प्रस्तुति दी.

दक्षिण पूर्वी एशिया का रामायण और हिन्दू संस्कृति के नाते भारत से बहुत गहरा संबंध है. थाईलैंड में रामायण को रामाकिआन कहा जाता है. पिछली शताब्दियों में रामायण महाद्वीप के इस हिस्से में पहुंची, और भिन्न स्वरूपों और परिवर्तनों के साथ स्थानीय आवश्यकताओं को आत्मसात करके यहां की संस्कृति को समृद्ध करती गई. थाईलैंड के थम्मसत विश्वविद्यालय की डॉ. नरीरत फिनिथ्थानसरन ने रामायण के इस आयाम की विवेचना करते हुए कहा, ‘खोन कला थाईलैंड की कला की पहचान है, जिसे यूनेस्को द्वारा 2018 में मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर घोषित किया गया है. खोन में मुख्यत: रामायण को ही नृत्य रूप में दर्शाया जाता है. हमारे बौद्ध मंदिरों के गलियारों और दीवारों पर रामायण सुन्दर कला वीथिकाओं के रूप में अंकित है. हम रामायण का सम्मान करते हैं क्योंकि रामायण ने दक्षिण-पूर्व एशिया के लोगों के जीवन को प्रेरित और गहरे तक प्रभावित किया है. सबसे बढ़कर यह कि रामायण अपनी साझी संस्कृति और साझे मूल्यों के प्रति हमारी समझ को बढ़ाती है.’

डॉ. सोम्बत मैन्ग्मीसुखसिरी ने उत्तर-पूर्वी थाईलैंड की लोककथाओं पर रामायण के प्रभाव को समझाते हुए कहा, ‘हिन्दू दर्शन का गहरा प्रभाव सारे देश पर है. 800 वर्ष प्राचीन सुखोथाई साम्राज्य के अभिलेखों में रामायण का प्रभाव स्पष्ट है. यह महान काव्य दक्षिण-पूर्व एशिया की भूमि पर सब ओर व्याप्त है. उत्तर-पूर्वी थाईलैंड की मौखिक परम्पराओं पर इसका खास असर देखने को मिलता है. थाईलैंड की लोककथाओं में रामायण की कथा भिन्न रूपों में मिलती है. उत्तर पूर्वी थाई बोली पर इसकी सबसे गाढ़ी छाप है. रामायण का बौद्ध संस्करण दशरथ जातक के रूप में जाना जाता है. राम को रामपंडित और लक्ष्मण को राजकुमार लखन कहा जाता है.’

रामायण में अद्वैत की व्याख्या करते हुए आचार्य कृष्णकांत चतुर्वेदी ने कहा, ‘ब्रह्म सत्य रूप है. ब्रह्म ही अद्वैत है.’ गुजरात से आये राम कथावाचक रामेश्वर बापू हरियाणी का विषय था ‘गांधी की दृष्टि में राम.’ उन्होंने कहा, ‘हर महात्मा का एक राम होता है. हर कोई अपने ढंग से राम को ग्रहण करता है. महात्मा गांधी के भी एक राम हैं. सबसे पहले राम गांधी की जिह्वा पर आए मंत्र के रूप में. वे कहा करते थे ‘ईश्वर सत्य है.’ परन्तु अपने जीवन के उत्तरार्ध में उन्होंने इसे बदला और कहने लगे ‘सत्य ही ईश्वर है.’ गांधी के लिए सत्य ही राम है. गांधी के राम सबको स्वीकार करने वाले हैं. गांधी के राम विवेकवान हैं. गांधी के राम स्वार्थरहित हैं. एक बार एक ग्रामीण ने सरदार पटेल से कहा था, ‘मैं-मैं’ की रट लगाने वाला गांधी का अनुयायी नहीं हो सकता. गांधी के राम समर्पण का साकार रूप हैं. समर्पण गांधी के जीवन का केन्द्रीय स्वर है. गांधी के राम कृपालु हैं. करुणावान हैं. करुणा आशीर्वाद है जो राम प्रसाद के रूप में मिली है.’

प्रोफेसर नरेंद्र कौशिक ने महात्मा गांधी को उद्धृत करते हुए कहा, ‘‘तुलसीदास का रामचरित मानस एक उल्लेखनीय ग्रंथ है क्योंकि इसमें शुद्धता, करुणा और धर्मपरायणता सार रूप में मिलता है.’’

वरिष्ठ अस्थिरोग विशेषज्ञ, शल्यचिकित्सक और आयोजन समिति के सचिव डॉ. अखिलेश गुमाश्ता ने ‘रामायण प्रेरित मानव सुख सूचकांक के नव साधनों द्वारा वेलनेस थ्रेशोल्ड को नीचे लाना’ पर विषय रखा. सेवानिवृत्त न्यायाधीश पंकज गौर ने राम वनवास के 14 वर्ष के विधिक पहलू पर प्रकाश डालते हुए बताया कि समय सीमा अधिनियम के अनुसार जो अपने अधिकार की उपेक्षा करता है, वह अपने अधिकार को खो देता है. मंथरा यह बात जानती थी. वह कैकेयी से कहती है कि राम के चौदह वर्ष वनवास जाने पर तुम्हारा बेटा राज्य पर अपनी पकड़ मजबूत कर लेगा और सदा के लिए राजा बना रहेगा. आज भी भारत में 12 वर्ष तक वास्तविक मालिक द्वारा दावा नहीं पेश किए जाने से संपत्ति कब्जाधारक की हो जाती है.

त्रेतायुग में यह समय सीमा 14 वर्ष और द्वापर में 13 वर्ष (पांडवों को चौसर में हारने पर 12 वर्ष का वनवास और 1 वर्ष का अज्ञातवास) थी. भरत यह बात जानते थे, इसलिए वे कभी राजगद्दी पर नहीं बैठे और सिंहासन पर राम का अधिकार सुरक्षित रखा. संगोष्ठी में कुछ उल्लेखनीय प्रस्ताव भी पारित हुए, जैसे जबलपुर में रामायण शोध संस्थान की स्थापना, हर तीन साल में एक बार विश्व रामायण संगोष्ठी का आयोजन, इंडो-थाई रामायण फोरम की नियमित गतिविधियों का संचालन, ग्रेटर रामायण सर्किट, और भारत, श्रीलंका, थाईलैंड, इंडोनेशिया और बाली जैसे देशों के नागरिकों के लिए रामायण वीसा आदि.

आयोजन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने शुभकामना संदेश में कहा, ‘‘रामायण भारत की संस्कृति का अभिन्न अंग है. व्यक्तिगत कर्तव्यबोध से लेकर आदर्श शासन व्यवस्था तक भगवान राम के जीवनचरित का हर प्रसंग हम सभी को प्रेरित करता है. असत्य पर सत्य की जीत का संदेश देता है. श्रीराम की जीत इसलिए प्रेरक है क्योंकि उन्होंने उन लोगों को साथ लिया जो सर्वहारा थे, साधनहीन थे. प्रभु राम ने उनमें आत्मगौरव और विजय का विश्वास पैदा किया.’’ केन्द्रीय पर्यटन मंत्री प्रहलाद पटेल और राज्य सरकार के दो मंत्री संगोष्ठी में शामिल हुए. साध्वी ज्ञानेश्वरी दीदी और आयोजन समिति के अध्यक्ष अजय विश्नोई ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. संगोष्ठी के समापन सत्र में प्रख्यात कथा वाचक मोरारी बापू ने कहा, ‘‘रामायण में अर्थ की व्यापक व्याख्या की गई है. रामायण आधारित अर्थव्यवस्था और नीतियां समाज के लिए सुख और समृद्धि लाएंगी.’’ विश्व रामायण संगोष्ठी ने शहर के वातावरण में विद्युत दौड़ाई. युवाओं ने स्वयंसेवक के रूप में सेवाएं दीं. सब आयु वर्ग के स्त्री-पुरुष भागीदार हुए. कहना न होगा कि विश्व रामायण संगोष्ठी में ज्ञान, सौंदर्य, साधना और आशा का संगम हुआ.

पाञ्चजन्य

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