हरियाणा (विसंकें). श्री सनातन धर्म संस्कृत महाविद्यालय सिरसा में संस्कृत भारती द्वारा 10 दिवसीय प्रशिक्षक प्रशिक्षण वर्ग का आयोजन किया गया. शिविर का शुभारंभ 02 जून को हुआ था. शिविर में शिक्षार्थियों को देववाणी संस्कृत की महत्ता के बारे में जानकारी दी गई, साथ ही संस्कृत संभाषण शिविर लगाने के लिए प्रशिक्षित किया गया. संस्कृत के विद्वानों ने महत्वपूर्ण जानकारी दी.
संस्कृत भारती के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. चांद किरण सलूजा ने कहा कि संस्कृत हमारी केवल आंखों में ही नहीं, बल्कि हमारे आचरण में भी रहनी चाहिए. हमें संस्कृत पढ़ने का लाभ तब ही मिलेगा, जब हमारा मन शुद्ध और सात्विक होगा, क्योंकि शुद्व और सात्विक मन से किया गया कार्य परमात्मा तक जाता है, और संस्कृत परमात्मा की ही भाषा है, इसीलिए इसे देव वाणी भी कहा जाता है. उन्होंने कहा कि संस्कृत से दूर होते ही हम अपने संस्कारों और अपने धर्म से दूर चले जाते हैं.
शिक्षाविद डॉ. सुरेंद्र मोहन मिश्र ने बताया कि वैदिक वांग्मय, वेद, उपनिषद, व्याकरण और संध्या करना हर चीज का मूल है और जो कोई ये सभी चीजें करता है, वह शुद्र होते हुए भी ब्राहम्ण है, और जो इन्हें नहीं करता, वह ब्राह्मण होते हुए भी शुद्र के समान है.