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समरस समाज से ही समग्र राष्ट्र की परिकल्पना संभव – डॉ. वीरसिंह रांगड़ा जी

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शिमला (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक 11 से 13 मार्च, 2016 तक राजस्थान के नागौर में सम्पन्न हुई. वर्ष में एक बार होने वाली बैठक में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शीर्ष अधिकारी, संघ की दृष्टि से सभी प्रांतों के प्रांत स्तर के अधिकारी एवं संघ के सभी अनुषांगिक संगठनों के पदाधिकारी शामिल थे. बैठक में हिस्सा लेकर लौटे हिमाचल प्रांत के सह संघचालक डॉ. वीरसिंह रांगड़ा जी ने शिमला में पत्रकार सम्मेलन में बताया कि बैठक में स्वास्थ्य, शिक्षा और समरसता पर तीन प्रस्ताव पारित किए गये. प्रत्येक व्यक्ति को दैनिक जीवन में व्यक्तिगत, पारिवारिक तथा सामाजिक स्तर पर सनातन और शाश्वत जीवन के अनुरूप समरसतापूर्वक आचरण करना चाहिए. ऐसे आचरण से ही समाज से जाति भेद, अस्पृश्यता तथा परस्पर अविश्वास का वातावरण समाप्त होगा और तभी हम सब शोषणमुक्त, एकात्म और समरस जीवन का अनुभव कर सकेंगे. राष्ट्र की शक्ति समाज में और समाज की शक्ति एकात्मता, समरसता, आचरण और बंधुत्व में ही निहित है.

डॉ. वीर सिंह रांगड़ा जी ने कहा कि सभा में चर्चा के दौरान सामने आया कि चिकित्सा सेवाओं के बड़े नगरों में केन्द्रित होने से देशभर में दूरस्थ व ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सा सुविधाओं का भारी अभाव है. सभी स्तरों पर सुविधाओं व चिकित्सा कर्मियों की भारी कमी, जांच व उपचार के लिए लम्बी प्रतीक्षा सूचियों के कारण बड़ी संख्या में लोग चिकित्सा सुविधा से वंचित रह जाते हैं. चिकित्सा शिक्षा की बढ़ती लागतें भी देश में चिकित्सा सेवाओं के महंगा होने एवं उनकी गुणवता व विश्वसनीयता में गिरावट का एक प्रमुख कारण है. उन्होंने कहा कि देश में महिलाओं व शिशुओं सहित सभी नागरिकों को अच्छी गुणवता वाली सब प्रकार की चिकित्सा सेवाएं उनके द्वारा वहन करने योग्य लागत पर सुलभ होनी चाहिए. देशभर में विशेषकर ग्रामीण व जनजातीय क्षेत्रों तक सभी प्रणालियों की सब प्रकार की चिकित्सा सेवाओं का सुचारू विस्तार आवश्यक है.

राष्ट्र व समाज के सर्वांगीण विकास में शिक्षा एक अनिवार्य साधन है, जिसके संपोषण, संवर्द्धन व संरक्षण का दायित्व समाज व सरकार दोनों का है. भारत सर्वाधिक युवाओं का देश है. युवा की अभिरूचि, योग्यता व क्षमता के अनुसार उसे उचित शिक्षा के निर्बाध अवसर उपलब्ध कराकर देश के वैज्ञानिक, तकनीकि, आर्थिक व सामाजिक विकास में सहभागी बनाना समाज एवं सरकार का दायित्व है. आज गरीब छात्र समुचित व गुणवतापूर्ण शिक्षा से वंचित हो रहे हैं. परिणामस्वरूप समाज में बढ़ती आर्थिक विषमता समूचे राष्ट्र के लिए चिंता का विषय है. शिक्षा के बढ़ते व्यापारीकरण पर रोक लगनी चाहिए ताकि छात्रों को महंगी शिक्षा प्राप्त करने को बाध्य न होना पड़े.

डॉ. रांगड़ा जी ने कहा कि देशभर में संघ कार्य तेजी से बढ़ रहा है. गत वर्ष की अपेक्षा इस वर्ष देश में संघ शाखाएं 51335 से बढ़कर 56859 हो गयी है. इस वर्ष शाखाओं में 5524 की वृद्धि हुई है. शाखा स्थान 33155 से बढ़कर 36867 हो गये हैं, जिसमें 3644 स्थानों की वृद्धि हुई है. उन्होंने बताया कि देशभर में संघ के 152388 सेवा प्रकल्प चल रहे हैं, जिसमें शिक्षा के 81278, स्वास्थ्य के 22741, सामाजिक संस्कार के 28388, स्वावलम्बन के 21981 प्रकल्प शामिल हैं. ये सब स्वयंसेवकों द्वारा पिछले वर्ष ग्रामीण क्षेत्रों में किए गये प्रयासों से ही संभव हो पाया है. पत्रकार सम्मेलन में उत्तर क्षेत्र प्रचार प्रमुख नरेन्द्र कुमार भी उपस्थित रहे.

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