प्रकट उत्सव जिला हरदा, मध्य भारत प्रांत
मध्यभारत (विसंकें). हरदा जिले (मध्यभारत प्रांत) के स्वयंसेवकों के तीन दिवसीय शीत शिविर के अंतिम दिन 300 स्वयंसेवकों ने विभिन्न शारीरिक कार्यक्रमों का प्रदर्शन किया. इनमें समता, पदविन्यास, दंड, नियुद्ध, व्यायाम योग व आसन सहित सामूहिक गीत का प्रदर्शन शामिल रहा. समारोप कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह सुरेश भय्या जी जोशी ने पाञ्चजन्य पत्रिका के विशेषांक का विमोचन किया.
सरकार्यवाह जी ने उपस्थित स्वयंसेवकों को संबोधित किया. उन्होंने कहा कि व्यक्ति के जीवन में 90 वर्ष का समय बहुत होता है, किन्तु सामाजिक एवं राष्ट्रीय जीवन में यह समय ज्यादा नहीं है. समाज सुधारकों के प्रयत्नों से ही हम हिन्दू के नाते आज जीवित हैं. मंदिर तोड़े गये पर समाज नहीं टूटा. ग्रंथ जलाए गये, फिर भी हम जीवित रहे. समाज का रक्षण केवल ग्रंथों या मंदिरों से नहीं होता, इनसे समाज को ऊर्जा अवश्य मिलती है. अपनी पहचान बनाए रखने के लिये सामान्य कर्मकाण्ड की आवश्यकता होती है. भाग्य से देवता स्वयं इस भूमि पर पैदा हुए. मोक्ष प्राप्ति के लिये भारत भूमि पर जन्म लेना पड़ता है. उन्होंने कहा कि विश्व मंच पर विकास के मापदंडों पर हमारा देश आगे बढ़ा है, अब हम पिछड़े नहीं रहे. परिवर्तन के इस काल में हम न केवल साक्षी बने हैं, अपितु भागीदार भी बने हैं. देश के उत्थान और पतन के लिये हिन्दू ही जिम्मेदार हैं. विश्व पटल पर देश को गौरव दिलाने की जिम्मेदारी हिन्दू समाज की है.
भय्या जी जोशी ने कहा कि हिन्दू समाज को शक्तिशाली बनना पड़ेगा. शक्तिशाली बने बिना देश का गौरव नहीं बढ़ेगा. हिन्दू की परिभाषा निश्चित करना कठिन है, इसलिये हिन्दू वह है जो स्वयं को हिन्दू कहता है. जब कोई स्वयं को हिन्दू कहता है तो वह हिन्दू समाज के जीवन मूल्यों को मानेगा. हिन्दू शक्ति का जागरण करना आवश्यक है. हिन्दू समाज की दुर्बलता को समाप्त करना है. संस्कारित लोगों को संगठित होना चाहिए. सज्जन होना आवश्यक है, किन्तु समाज एवं राष्ट्र की अनदेखी करने वाला सज्जन किस काम का. आचार्य चाणक्य ने कहा था कि देश-समाज को दुष्टों की दुष्टता से उतना नुकसान नहीं हुआ, जितना नुकसान सज्जनों की निष्क्रियता से हुआ है. सज्जन शक्ति का संगठन एवं जागरण आवश्यक है. समाज में ऐसी सज्जन शक्ति के संगठन से ही समस्त समस्याएं हल होंगी. कलियुग में संगठित शक्ति ही ईश्वर का रूप है. संघ कार्य ईश्वर की आराधना है. समर्थ स्वामी रामदास जी महाराज ने कहा है कि दुर्जनों को सज्जन बनाना होगा और सज्जनों को शक्तिशाली बनाना होगा, तभी श्रेष्ठ समाज का निर्माण होगा.