
नई दिल्ली (इंविसंकें). राष्ट्रीय सिक्ख संगत द्वारा 25 अक्तूबर को तालकटोरा स्टेडियम में विशेष समागम का आयोजन किया जा रहा है, यह समागम श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के 350वें प्रकाश वर्ष के निमित्त किया जा रहा है. कार्यक्रम को लेकर सिक्ख धर्म के प्रति राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दृष्टिकोण को गलत रूप में रखकर भ्रामक प्रचार किया जा रहा है. संघ की मान्यता है कि सिक्ख धर्म भी जैन और बौद्ध धर्म की भांति ही एक सामाजिक-धार्मिक मान्यता प्राप्त स्वतंत्र धर्म है और सिक्खों की एक अलग पहचान है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ स्पष्टता के साथ सिक्ख धर्म की अलग पहचान को मानता आया है. यह कथन व्यक्त करते हुए संघ के उत्तर क्षेत्र संघचालक डॉ. बजरंग लाल गुप्त ने सारे समाज से आह्वान किया कि सभी भारतवासियों को श्री गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज का पर्व मिलजुल कर मनाना चाहिए और उनके जीवन दर्शन को नई पीढ़ी तक पहुँचाना चाहिए. गुरु जी का पर्व मनाने का सभी का दायित्व भी है व अधिकार भी है. गुरु जी के गुणगान के अवसर पर ओछी राजनीति के कारण विवाद का विषय बनाने का पाप नहीं करना चाहिए. उन्होंने कहा कि श्री गुरु गोविन्द सिंह जी एवं उनके द्वारा सृजित खालसा पंथ ने विदेशी आक्रान्ताओं के रास्ते बंद करने व देश की आज़ादी की लड़ाई में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है. जिसके लिए यह देश सदैव उनका ऋणी रहेगा. गुरु जी ने धर्म की रक्षा के लिए ही जन्म लिया था और उसके लिए अपना सर्वांश न्यौछावर कर दिया.
इस विषय पर संघ का दृष्टिकोण तभी स्पष्ट हो गया था, जब 2001 में केंद्रीय अल्पसंख्यक आयोग के तत्कालीन वाईस चेयरमैन तरलोचन सिंह जी और संघ के माधव गोविंद वैद्य के मध्य बैठक हुई थी. जिसके फलस्वरूप संघ के तत्कालीन अखिल भारतीय प्रवक्ता माधव गोविन्द वैद्य जी ने तरलोचन सिंह जी को लिखित रूप में देकर यह तथ्य पुष्ट किया था कि सिक्ख भी जैन और बौद्ध की भांति भारतीय मान्यता प्राप्त धर्म है.
सर्वविदित होने के बावजूद भ्रामक बयानबाजी के जरिए इस विषय को लेकर संघ के विरुद्ध प्रचार किया जा रहा है. इसीलिए यह प्रचारित करना कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं राष्ट्रीय सिक्ख संगत सिखों के स्वतंत्र रूप को नहीं मानती, तथ्यों के विरुद्ध और भ्रामक है. वह सिक्ख समाज के समक्ष इस विषय को पुन: स्पष्ट कर रहे हैं कि सिक्ख धर्म की एक अलग पहचान है और संघ की श्री गुरू ग्रंथ साहिब और गुरूवाणी के प्रति पूर्ण निष्ठा और आस्था है.