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सोच में परिवर्तन से ही सामाजिक समरसता हासिल हो सकती है – रमेश पतंगे जी

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matrivandana (2)शिमला (विसंकें). हिन्दुस्थान प्रकाशन के अध्यक्ष, हिन्दी फिल्म प्रमाणन बोर्ड के सदस्य एवं साप्ताहिक विवेक के परामर्शदाता रमेश पतंगे जी ने कहा कि सामाजिक एकता के लिए समरसता का होना नितांत जरूरी है. पीढ़ियों से चले आ रहे सामाजिक नियमों के दायरों से बाहर आकर और लोगों की सोच में परिवर्तन से ही सामाजिक समरसता को हासिल किया जा सकता है. रमेश जी मातृवंदना संस्थान शिमला द्वारा मंगलवार को श्रीराम मंदिर हॉल में सामाजिक समरसता एवं राष्ट्रीयता विषय पर आयोजित संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित कर रहे थे. कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में सर्वोच्च न्यायालय की अधिवक्ता एवं जीआईए की संयोजक मोनिका अरोड़ा जी ने भाग लिया. कार्यक्रम में अध्यक्ष के रूप में होटल वुड विला पैलेस शिमला के निदेशक कंवर दिवराज सिंह जी ने शिरकत की.

रमेश पतंगे जी ने कहा कि राष्ट्रीयता के बिना किसी भी नागरिक की कोई पहचान नहीं है. जेएनयू में नारे लगाने वाले है मूर्ख हैं, वे राष्ट्र का महत्व नहीं जानते. एक राष्ट्र को बनने में हजारों वर्ष लग जाते हैं. हमारा भारत एक महान विरासत है, लेकिन जिन लोगों ने इस राष्ट्र के बारे में नहीं जाना. वे लोग इस प्रकार के काम करते हैं. सामाजिक विषमता के कारणों पर कड़ा प्रहार करते हुए कहा कि स्वतन्त्रता और समता पर ही बल दिया गया, लेकिन इसमें बन्धुत्व को छोड़ दिया गया. सभी लोग एक ही परमात्मा की सन्तानें हैं. ऐसे में समाज में भेदभाव को कोई स्थान नहीं मिलना चाहिए. एक ही तत्व सब में विराजमान है, यही सभी धर्मों का सार है. भारतीय दर्शन में भी सामाजिक समरसता पर ही बल दिया गया है. उन्होंने बाबा साहब आम्बेडकर के सामाजिक समरसता के कार्यों की सराहना की और कहा कि बाबा साहब आम्बेडकर ने 1916 में विदेशियों की इस बात को नकार दिया था कि भारत कई वंशों का देश है, उनका मानना था कि यह देश अनेक वंशों का मिश्रण न होकर एक ही वंश के लोगों का समूह है. उन्होंने समाज से आह्वान किया कि सभी प्रकार के भेदभाव को दूर करने के लिए आगे आएं.

matrivandana (4)मुख्य अतिथि मोनिका अरोड़ा जी ने कहा कि संविधान में छुआछूत जैसी विषमताओं को समाप्त करने के लिए पहले ही ठोस प्रावधान किये गये हैं. अनुच्छेद 19 में अनटचेबिलिटी को पूरी तरह प्रतिबंधित किया गया है. इसके अलावा समरसता के लिए जरूरी कानूनी प्रावधानों के बारे में विस्तार से बताया. उन्होंने प्राचीन सामाजिक समरसता का उदाहरण दते हुए कहा कि राम और निषाद का क्या नाता था, पक्षी जटायू और राम का नाता क्या था, राम और वनवासी हनुमान का क्या नाता था, यह नाता था सामाजिक समरसता का, बंधुत्व का व प्रेम का. उन्होंने राष्ट्रवाद कहा कि जेएनयू में देश विरोधी नारे लगाने वाले विद्यार्थी तब नारे लगा पा रहे हैं, जब सियाचिन में कोई फौजी खड़ा है. इन विद्यार्थियों में एक भी वहां पर एक घंटा भी नहीं ठहर सकता.

कार्यक्रम अध्यक्ष ने कंवर दिवराज ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा समरसता के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए किये जा रहे कार्यों की सराहना की और कहा कि राष्ट्रीयता के विकास के लिए सामाजिक समता को लक्ष्य बनाना होगा ताकि भारत एक सशक्त राष्ट्र बने. मातृवंदना संस्थान के अध्यक्ष अजय सूद ने सभी अतिथियों एवं उपस्थित जनों का धन्यवाद किया. कार्यक्रम में प्रांत प्रचारक संजीवन जी, सह प्रांत संघचालक डॉ. वीर सिंह रांगड़ा जी सहित अन्य गणमान्यजन उपस्थित थे.

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