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हमारी निष्ठा राष्ट्र के प्रति होनी चाहिए – प्रो. सीताराम जी

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सोनीपत (विसंकें). राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के उत्तर क्षेत्र कायर्वाह प्रो. सीताराम व्यास जी ने कहा कि मनुष्य का निर्माण ही वास्तव में राष्ट्र का निर्माण है. हमारी निष्ठा राष्ट्र के प्रति होनी चाहिए, जो हमारे देश को आगे बढ़ाएगी. हमारा देश तब शक्तिशाली होगा, जब अंतिम व्यक्ति मजबूत होगा. इसके लिए हमें संगठित होकर प्रयास करने चाहिएं. कुछ सामाजिक संगठन इस प्रयास में आगे बढ़ भी रहे हैं. प्रो. सीताराम जी दीनबंधु छोटू राम विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, मुरथल में अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ से संबद्ध दीनबंधु छोटू राम विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय शैक्षिक संघ द्वारा आयोजित कर्तव्य बोध दिवस पर मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित कर रहे थे.

उन्होंने कहा कि हम अपनी इच्छा शक्ति के आधार पर देश को विकास के पथ पर ले जा सकते हैं. लेकिन इसके लिए हमारे अंदर राष्ट्रीय चरित्र होना चाहिए. हमारा व्यक्तिगत चरित्र होगा, तभी हमारा राष्ट्रीय चरित्र होगा. उदाहरण देते हुए कहा कि द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान और जर्मनी दोनों देशों को पराजय मिली थी. लेकिन जापान की जनता की इच्छाशक्ति ने उसे पुन: सक्षम बना दिया. जापान इस्पात का सबसे बड़ा उत्पादक देश बन गया. जर्मनी का मजदूर द्वितीय युद्ध के बाद 4 घंटे अपने देश के लिए फ्री में मजदूरी करता था. जर्मनी भी विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में आ गया. जब तक हमारा देश महान नहीं है, तब तक हमारा अस्तित्व नहीं है. पश्चिम के देशों में मिलकर कार्य करने की वृत्ति है, तभी वे आगे बढ़ते हैं. भाव ही कर्म को प्रेरणा देता है. उन्होंने कहा कि विचार से कर्तव्यबोध की ऊर्जा जाग्रत होती है. समाज में परिवर्तन कर्तव्यबोध द्वारा लाया जा सकता है. हमारे देश की संस्कृति मानववादी है. जिसमें सबके कल्याण की भावना निहित है.

विवि के कुलपति प्रो. राजेंद्र कुमार अनायत जी ने कहा कि मानव को कर्तव्य करने का ही अधिकार है. कर्मों में निष्काम होने के लिए साधक में विवेक भी होना चाहिए और सेवाभाव होना चाहिए. मानव को आसक्ति का त्याग करके सम होकर कर्म करना चाहिए. समता की अपेक्षा सकाम भाव से कर्म करना अत्यंत निकृष्ट है. मानव जो भी कार्य कर रहा है, वह भगवान की इच्छा के अनुसार कर रहा है.

प्रो. दया सिंह जी ने कहा कि कर्तव्य और अधिकार साथ-साथ चलते हैं. कर्तव्य अधिकारों का रक्षक है. कर्तव्य हमें आपस में जोड़ता है, जैसे राज धर्म – राजा को प्रजा के साथ जोड़ता है. अगर हम अपने कर्तव्य का पालन करें तो समाज में कोई संघर्ष नहीं होगा, अपितु सौहार्दपूर्ण माहौल होगा. हमें अपने महापुरुषों का स्मरण करना चाहिए तथा उनके दिखाए पथ पर चलना चाहिए.

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