प्रतिष्ठा कमाने में नहीं, बांटने में है – सरसंघचालक जी
इंदौर (विसंकेंभा). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि हम जीवन जीने की कला भूल गए हैं. इसी कारण हम विघटित होते जा रहे हैं. हमें अपनी संस्कृति की ओर आगे बढ़ना पड़ेगा. संस्कृति के मार्ग पर पीछे जाने की बात ही नहीं है. वेदों की ओर बढ़ने पर हम आगे ही जाएंगे. वेद को सामान्य लोग केवल पूजा-पाठ का ज्ञान मानते हैं. वेद तो जीवन जीने की कला भी हैं. धर्म अर्थात स्वभाव, धर्म अर्थात कर्तव्य. जीवन को संवारने का ज्ञान और विवेक जिससे मिलता है, उसे वेद ज्ञान कहते हैं. पश्चिम के वैज्ञानिक आज वेदों का अध्ययन कर रहे हैं. विज्ञान भटक गया था, वह अब धीरे-धीरे वैदिक बनने की राह पर है, इसीलिए उपयोगी बनेगा. सरसंघचालक जी ने कहा कि हमने वेदों को केवल पंडितों की रटंत का साधन या उऩकी आजीविका का साधन मान लिया है. वेदों का अध्ययन, अध्यापन, साक्षात्कार और व्यवहार हम सबको जानना पड़ेगा.
डॉ. मोहन भागवत जी शुक्रवार (05 जनवरी) को सांवेर रोड स्थित ग्राम रेवती में मानव सेवा ट्रस्ट द्वारा स्थापित प्रदेश के प्रथम देवी अहिल्या वेद विद्यालय के लोकार्पण समारोह में संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि यह केवल संतों या विद्वानों का ही काम नहीं है, हम सबको भगवान ने वेदों के अध्ययन के लिए ही भेजा है. धर्म और संस्कृति के हम सब ट्रस्टी हैं. ज्ञान सारे विश्व का है, हम तो केवल ट्रस्टी हैं. वेदों के प्रचार-प्रसार में जितना सहयोग हो सके, इस तरह करें कि 100 किमी. की परिधि में इस तरह के और वेद विद्यालय खुलें, फले-फूलें और समाज को बचाएं. हम बचेंगे तो दुनिया बचेगी.
उन्होंने उपस्थित प्रबुद्धजनों का आह्वान किया कि वे वेदों के ज्ञान की पुस्तकें अपने घरों में रखें और समय-समय पर बच्चों की परीक्षा भी लेते रहें. हमारा भाव केवल अपने लिए नहीं, सबके लिए सुख प्राप्ति का होना चाहिए. पैसा हमारे पास रहे. लेकिन केवल मेरे पास ही टिका रहे, इसके बजाय सबके लिए कल्याण का भाव होना चाहिए, अन्यथा चोरी, नक्सली और डकैती जैसे अपराध भी हो सकते हैं. मंदिर में प्रसाद के लिए हम झगड़ा भी कर लेते हैं कि कहीं समाप्त न हो जाए. इस तरह से प्रसाद गिरता ज्यादा है, बंटता कम है. हमारी इस प्रवृत्ति में बदलाव लाना होगा. प्रतिष्ठा कमाने में नहीं, बांटने में है. हमारे पास अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष को जोड़ने वाला धर्म है. हमारे यहां चरित्र उनके लिखे जाते हैं, जिन्होंने सब कुछ दे दिया है. सरसंघचालक जी ने कहा कि सामाजिक व्यवहार 8 हजार वर्ष बाद भी हमारे भारत में जिंदा है. वेदों में अविद्या भी है और उसकी भी उपेक्षा नहीं की गई है, लेकिन अखिल ज्ञान एवं धर्म का मूल है वेद. हम सबको भगवान ने वेद के प्रचार के लिए ही भेजा है. जानना तो सबको पड़ेगा. चिंतन करें कि ऐसे विद्यालय खुलें.
राजस्थान के लोकायुक्त न्यायमूर्ति सज्जन सिंह कोठारी जी ने कहा कि वेदों की गौरवशाली सांस्कृतिक धरोहर को प्रशस्त करने का यह काम गौरव का विषय है. वेद भारतीय विचारधारा के आधारभूत स्तंभ हैं, यह वह साहित्य है जो संसार में पहले मानव के वक्त से आया है. देश के ब्राह्मणों ने इन श्लोकों को सुरक्षित रखा है, यह केवल भारत में संभव है. हमारा खजाना बैंकों में नहीं, इन बच्चों और वेद की कक्षाओं में है. चरित्र निर्माण के विद्यालय में गढ़ने वाले संस्कार अमिट होते हैं.
आदित्य बिरला समूह की चेयरपर्सन एवं पद्मभूषण राजश्री बिरला जी ने कहा कि सनातन परंपराओं के अनुसार वेद साक्षात ईश्वर का स्वरूप माने जाते हैं. वेद किसी जाति, धर्म या पंथ के लिए नहीं, समूची मानवता के लिए उपयोगी हैं. आज नई पीढ़ी को वेदों का ज्ञान देना बहुत आवश्यक है. संस्कार जागरण से ही देश का उत्थान संभव है.
स्वामी गोविंददेव गिरी जी ने विद्यालय की जानकारी देते हुए कहा कि मध्य प्रदेश में यह पहला और देश का 32वां वेद विद्यालय होगा. वेद प्रतिष्ठाणम पुणे से संबद्ध इस विद्यालय में 60 बच्चे वेदों का अध्ययन कर सकेंगे. देश भऱ में फिलहाल जम्मू से मणिपुर तक चल रहे विद्यालयों में एक हजार बच्चे पढ़ रहे हैं. विडंबना यह है कि हम में से अनेक ऐसे लोग हैं, जिन्होंने वेदों को पढ़ना और सुनना तो दूर, देखा भी नहीं होगा. वेद तो गीता, भागवत एवं महाभारत जैसे धर्म ग्रंथों की नींव हैं. सभी परंपराओं के आचार्य भी मूलतः वेदों को ही मानते हैं. ईश्वर को मानने या नहीं मानने वाले भी वेदों को अवश्य मानते हैं. हर व्यक्ति जीवन में ईष्ट चाहता है, अनिष्ट नहीं चाहता. वेद एक तरह से हमारी सामाजिक व्यवस्थाओं का विधान हैं. आज विज्ञान भी वेदों की ओर देख रहा है. जिन राज्यों में वेदों की उपेक्षा हुई है, उनका अस्तित्व भी मिट गया. अब वेद की शिक्षा के लिए शिक्षकों का निर्माण भी एक बड़ी चुनौती है.