देहरादून (विसंकें). हिन्दी दिवस से पूर्व 13 सितंबर को विश्व संवाद केन्द्र उत्तरखण्ड द्वारा भारतीय भाषा हिन्दी ‘विचार-गोष्ठी’ का आयोजन किया गया. हिन्दी भारत की राष्ट्र भाषा है, जिसके उत्थान के लिए हर साल 14 सितम्बर हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है.
विश्व संवाद केंद्र के निदेशक मुख्य वक्ता विजय जी ने हिन्दी भाषा का परिचय देते हुए, राष्ट्र भाषा, राज्य भाषा, लोक भाषा और मातृ भाषा के विषय को स्पष्ट किया. उन्होंने कहा कि भाषा से बोलियां और बोलियों से भाषा की शोभा बढ़ती है, जो हम अपने परिवेश और घर में बोलते हैं, वह हमारी बोली व मातृ भाषा है. बोलियों से भाषा की सुन्दरता बढ़ती है. हमारी बोलियां ही हमारी भाषा हिन्दी की ईकाईयां है. परन्तु आज हमारी भाषा प्रयोग में धीरे-धीरे कम होती जा रही है. वैसे पहले से ही हमारी भाषा को पूर्ण जगह नहीं मिल पायी है, क्योंकि हमारे देश में काफी समय तक विदेशियों की सत्ता रही है. जिन्होंने अपनी भाषा को बढ़ावा दिया है. जैसे मुगलों के समय फारसी यहां की मुख्य भाषा थी और अंग्रेजों के समय अंग्रेजी. पर आज अंग्रेजी भाषा ने प्रमुख स्थान बना लिया है. जिससे हमारी भाषा हिन्दी को वो स्थान नहीं मिल पा रहा है जो उसे मिलना चाहिए था. हमारी लड़ाई उस विदेशी भाषा से है जो हमारे देश में महारानी बनी हुई है. विदेशी भाषा को बाहर करना चाहिए. विश्व में कई राष्ट्र दूसरे राष्ट्रों के उपनिवेश रहे, परन्तु उन्होंने अपनी भाषा का वर्चस्व कम नहीं होने दिया और इसके लिए अनेक विरोध ओर प्रदर्शन किए. वैसे ही यदि आज हमें अपनी मातृ भाषा को मजबूत करना है तो इसके लिए हमें खुलकर आगे आना होगा. हम अपनी भाषाओं, बोलियों को सबल कर सकें, इसका उपाय है हम अपने घर में अपनी भाषा के वजूद को बनाये रखें. चाहे माता-पिता को अंग्रेजी आये या न आये, पर हर माता-पिता चाहते हैं कि उनका बच्चा अंग्रेजी बोले. इस मानसिकता को दूर करना होगा, हमें हमारी भाषा हिन्दी के प्रति स्वाभिमान होना चाहिए.
विशिष्ट अतिथि मारिया वर्थ (जर्मनी), हिन्दी लेखिका, जिन्होंने 20 वर्षों में 39 देशों का भ्रमण किया. उन्होंने हेमबर्ग विश्वविद्यालय से मनोविज्ञान की पड़ाई की, प्रेस ऑफ जर्मनी से भी उनका सम्बन्ध है. सन् 1980 में अर्द्ध कुम्भ में वह हरिद्वार (भारत) आई. माँ आनन्दमयी और देवराह बाबा का सानिध्य प्राप्त हुआ और देवराह बाबा के मार्ग दर्शन के पश्चात् हिन्दू धर्म संस्कृति परम्परा को आत्मसात कर विगत 15 वर्षों से भारत में उत्तराखण्ड राज्य के देहरादून में रह रही है. उनका मानना है कि अगर विश्व को सही दिशा और दशा प्रदान कर सकता है तो वह भारत ही एक मात्र राष्ट्र है. वह हिन्दी भाषा में लेखन कार्य कर हिन्दी भाषा का प्रचार प्रसार कर रही है. हिन्दी एक महत्वपूर्ण भाषा है, जिसके माध्यम से हम किसी भी व्यक्ति के प्रेम, अभिव्यक्ति, करुणा आदि को स्पष्ट शब्दों में वर्णित कर सकते हैं. जिसे हम दुनिया की किसी भी भाषा में नहीं कर सकते हैं. अतः हिन्दी एक सर्वश्रेष्ठ भाषा है. जिसके मुकाबले विश्व में कोई भाषा नहीं हैं.
कार्यक्रम के अध्यक्ष क्षेत्र संपर्क प्रमुख शशिकांत जी ने भी हिन्दी को उच्च स्थान दिलाने की बात कही. उन्होंने कहा कि यदि कोई छात्र 1966 में उत्तप्रदेश से हिन्दी माध्यम से 12वीं तक की शिक्षा ग्रहण करता था तो वह हिन्दी में अधिक मजबूत होता था. बाद में हमारे हिन्दी साहित्य से कबीर, रहीम, मैथलीशरण गुप्त आदि अनेक कवियों के लेखन हमारे सिलेबस से हटा दिये गए. इसके लिए 1966 में हिन्दी के उत्थान के लिए आन्दोलन भी किया गया था. संविधान का क्रियान्वयन करने वाले जो लोग थे, उन्होंने अपने राजनीतिक कारणों और स्वार्थों के चलते हिन्दी का विरोध किया. वास्तव में राजनीतिक इच्छा शक्ति के अभाव के कारण समाज जागरूक नहीं है. इसी कारण आज हिन्दी की स्थिति जो होनी चाहिए थी, वह आज नहीं है. यदि हम अपने व्यवहार में हिन्दी को लायें तो हिन्दी को उच्च स्थान मिल पायेगा.