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जाग रहा है हिन्दू समाज : परम पूज्य सरसंघचालक

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हमने संकल्प किया है. हिन्दू समाज जब-जब मन से संकल्प करता है, उस संकल्प को अवरुद्ध करने की शक्ति दुनिया में किसी की नहीं होती. क्योंकि हिन्दू समाज का संकल्प सत्य संकल्प होता है. सबका मंगल करने वाला संकल्प होता है. किसी के विरोध में वह संकल्प नहीं होता है.  अपने पवित्र हिन्दू धर्म, हिन्दू संस्कृति व हिन्दू समाज के संरक्षण तथा उसकी सर्वांगींण उन्नति का वह संकल्प होता है. इतिहास साक्षी है कि जब-जब हिन्दू समाज की उन्नति हुई है, तब-तब सब प्रकार के संत्राषों  से आसमानिया सुलतानी संकटो से त्रस्त दुनिया को सुख-शांति का नया रास्ता मिला है. हम लोगों ने आज जो संक्ल्प लिया है वो सत्य संकल्प है. हम लोग संकल्प करते हैं, उल्टी-सीधी चर्चा करने वाले दुनिया में लोग हैं. उससे अपने मन में शंका नहीं लाना. यहाँ पर हम लोग सम्मलेन कर रहे है. हमारे कार्यकर्तागण हमारे लिये दिग्दर्शन दे रहे हैं. हमारे संतगण हमारे लिये संकल्प दे रहे हैं. उसमें सब के कल्याण की शुद्ध और सत्य भावना है. उस संकल्प के पीछे हम सब लोगों के दृढ़ संकल्प का और बाहुओं के बल का पुरुषार्थ खड़ा है.

हिन्दू समाज जाग रहा है. सज्जनों को हर्षित करने वाली और दुर्जनों को भयकंपित करने वाली बात अब प्रत्यक्ष हो रही है. हम लोगो को उस संकल्प पर पक्का रहना पड़ेगा. प्रत्येक को पक्का रहना पड़ेगा. हमें किसी प्रकार के भय की आवश्यकता नहीं है. किस बात का भय करना है ? हम अपने देश में हैं. हम कहीं दूसरी जगह से यहाँ पर घुस कर नहीं आये, घुसपैठ करके नहीं आये. हम बाहर से यहाँ बसने के लिये भी नहीं आये. हम यहीं पर जन्मे, इसी मिटटी में पले, इसी देश के उत्थान में लगे पूर्वजो के वंशज हैं. यह हमारा देश है. यह हमारा हिन्दू राष्ट्र है. हिन्दू भागेगा नहीं. हिन्दू अपनी भूमि, अपनी जगह छोड़ेगा नहीं. जो कुछ पहले की हमारी निद्रा के कारण गया है, उसको वापस लाने का पुरुषार्थ अब हम करेंगे. संपूर्ण दुनिया की भलाई के लिये हिन्दू जाग रहा है.  उसके जागने से किसी को डरना नहीं चाहिये. डरेंगे वही, जो स्वार्थी होंगे या दुष्ट होंगे और इसलिये हिन्दू समाज के जागरण के विरुद्ध उठने वाली आवाजें केवल उन्हीं लोगों की होतीं हैं, जिनके स्वार्थ को खतरा होता है या जिनकी दुष्टता पर प्रतिबन्ध लगता है.

हिसाब कर ले दुनिया. कभी हिन्दू समाज ने किसी और को दबाने की बात नहीं की है. वह ऐसा आज भी नहीं करता है. इतने अपराध पाकिस्तान करता है, इतने अपराध घुसपैठ करने वाले बंगलादेशियों की तरफ से होते हैं. हिन्दू अभी तक केवल सहता आ रहा है. लेकिन हमारे भगवान सिखाते हैं कि 100 अपराधों के बाद सहन भी मत करो. अब 100 अपराध पूरे हो गये हैं. अब और क्या होना बाकी है? कितना सहन करना है?  केवल हमको सहन नहीं करना पड़ता. इनको तो दुनिया को सहन करना पड़ रहा है और दुनिया के पास उपाय नहीं है.  हमारे पास उपाय है.  हम जानते हैं कि यदि हम खड़े हो जाते हैं तो फिर कोई दुष्ट ताकत, कोई स्वार्थी ताकत हमारी सम्मिलित संगठित शक्ति के सामने खड़ी नहीं रह सकती. लड़ने की बात तो और है.

एक बार अपना वाहन लेकर विष्णु जी कैलाश पर दर्शन के लिये शंकर जी से मिलने गये. शिवजी ने आशीर्वाद दिया, शुभकामनायें दी, दोनों की बात होने लगी. तो शंकर जी के गले में सांप था. उन्होंने देखा विष्णु जी गरुड़ पर बैठे हैं. गरुड़ के आगे सांप रहता नहीं भागता है. लेकिन अब शिवजी के गले में था इसलिये हिम्मत करके बोला, ‘क्यों गरुड़ जी सब हाल-चाल ठीक है ना’. तो गरुड़ जी ने कहा हाल-चाल तब तक ठीक है तब तक तुम शिवजी के गले में हो. जरा भूमि पर उतर आओ फिर हाल-चाल बताता हूँ. अब हिन्दू का यही कहना है कि शिवजी के गले में बैठे हो तब तक तुम्हारा सब कुछ ठीक है. अब जमीन पर उतरने की भूल मत करना. क्योंकि अब हिन्दू जाग रहा है. हिन्दू जागा है. हिन्दू अपनी सुरक्षा कर लेगा. हिन्दू अपनी उन्नति कर लेगा.  इतना ही नहीं दुनिया के सब संत्रस्त लोगों को हिन्दू अभय प्रदान करेगा. सारी दुनिया में सुख-शांति पूर्ण लोकजीवन चलता रहे, ऐसा कल्याणकारक पथ अपने पथ से सारी दुनिया को हिन्दू समाज बताएगा. लाउडस्पीकर पर इतने जोर से मैं बोल रहा हूँ, हमेशा नहीं बोलता. किसके भरोसे बोल रहा हूँ ? आप लोगो के भरोसे बोल रहा हूँ. आप लोगों ने संकल्प लिया है, ये देख कर बोल रहा हूँ. इतनी बड़ी संख्या में यहाँ पर लोग उपस्थित हैं, यह देखकर बोल रहा हूँ. हम इकट्ठा होंगे, हम संकल्प लेंगे, हम उसपर दृढ़ रहेंगे, हम उस संकल्प के योग्य अपने आप को बनायेंगे और मिलकर चलेंगे. केवल हमारा ही नहीं सारी दुनिया के भले लोगो का कल्याण होगा और सारी दुनिया के दुष्ट लोगों को अपना मुंह छिपाने के लिये अँधेरे कोने की तलाश करनी पड़ेगी. ये हमको करना है और ये पूरा होने तक अपने स्वार्थ का विचार नहीं करना. मेरा क्या होगा इससे डरना नहीं. हमारे स्वातंत्र्य योद्धा डरे नहीं. फांसी चढ़ रहे थे खुदीराम बोस. पब्लिक प्लेस में फांसी हो रही थी. सारा जनसमुदाय इकट्ठा हुआ, उसमे उनकी माता भी थी. माता की आँखों में आंसू थे, लेकिन खुदीराम बोस डरे नहीं. खुदीराम बोस ने माता से कहा कि हे माता! धीरज रखो. अभी तो मैं जा रहा हूँ, लेकिन मेरा काम अभी अधूरा पड़ा है. तो नौ महीने में वापिस आना है. तुम्हारे ही उदर में जन्म लूँगा और जन्म लेकर काम पूरा करूँगा. देशभक्त हिन्दू का, सत्यभक्त हिन्दू का ऐसा चरित्र होता है. मेरे नौजवान भाइयो! हमें उस चरित्र का परिचय फिर से देना पड़ेगा. हम केवल अपनी सुरक्षा के लिये नहीं लड़ रहे. केवल अपनी उन्नति के लिये नहीं लड़ रहे. हम तो अगर अपनी उन्नति और सुरक्षा की बलि देकर दुनिया का कल्याण होता है तो वह भी देने को तैयार रहने वाले हैं. दुनिया के कल्याण के लिये हलाहल कालकूट प्रसंग करने वाले शिवजी के हम वंशज हैं. शिवजी ने दुनिया को बचाने के लिये विष पी लिया था. आज दुनिया को बचाने के लिये सम्पूर्ण हिन्दू समाज फिर से अमृतसंजीवनी लेकर खड़ा हो, इसकी आवश्यकता है और इसलिये उस हिन्दू समाज को खड़ा कर रहे हैं. हम सब लोग मिलकर खड़ा कर रहे हैं.

जो भूले-भटके बिछुड़ गये, उनको वापस लायेंगे. हमारे बीच से ही गये हैं. खुद नहीं गये. लोभ, लालच, जबरदस्ती से लूट लिये गये. अब हमसे जो लूट लिये गये, तो चोर पकड़ा गया, उसके पास मेरा माल है. दुनिया जानती है, वो मेरा माल है तो मै उसको वापस लेता हूँ. इसमें क्या बुराई है? पसंद नहीं तो कानून बनाओ. संसद ने कानून बनाने के लिये कहा है. कानून बनाने के लिये तैयार नहीं तो क्या करेंगे ? हमको किसी को बदलना नहीं है. हिन्दू किसी को बदलने में विश्वास नहीं करता. हिन्दू कहता है परिवर्तन अन्दर से होता है. लेकिन हिन्दू को परिवर्तन नहीं करना है तो हिन्दू का भी परिवर्तन नहीं करना चहिये. इस पर हिन्दू आज अड़ा है. खड़ा होगा और अड़ेगा. ये सारे संकल्प अभी इसी क्षण से अपने नित्य आचरण में लाना और उन पर अड़े रहना, खड़े रहना. आज के युग में हिन्दू धर्म के आचरण के लिये उसके प्राथमिक आचरण का यह साल है. उस पहले पायदान पर हम सबको रहना है. इस साल को देना नहीं है. गुरु तेग बहादुर जी का बलिदान हुआ. आरी से उनको चीरा गया, उनका सर धड़ से अलग कर दिया गया आरी से. मुंह से एक सिसकारी नहीं निकली दर्द की. गर्दन काटने के बाद लोगों ने देखा रीड़ की हड्डी पर कोई कागज़ लपेटा है. उसपर लिखा था ‘ सर दिया लेकिन सार नहीं दिया’. आज हमको जो करना है उसका सारांश हमने संकल्प रूप में ग्रहण किया है. हम सर दे देंगे सार नहीं देंगे. और सर भी नहीं देंगे सर बचायेंगे.  सर काटने वालों से कटने वालों के सर बचायेंगे. सारी दुनिया को अभय देने वाला अपने आप में स्व-सुरक्षित, जिसकी और टेढ़ी आँख करके देखने की दुनिया के दुष्टों की हिम्मत नहीं होगी, ऐसा हिन्दू हम खड़ा करेंगे और हिन्दू के नाते सम्पूर्ण दुनिया को फिर से एक बार युगानुकूल मानव संस्कृति की दीक्षा देंगे. उस संकल्प के पूरा करने की ओर जाने के लिये ये जो छोटे-छोटे संकल्प आपको दिये हैं, उंनका आचरण शुरू करना, इसी क्षण से प्रारंभ करना. जिसको जितना तुरंत संभव है, उतना अपने रोज के आचरण में लागू करना, क्योंकि इस देश का हिन्दू इस देश के भाग्य के लिये उत्तरदायी है. हम जब कहते हैं कि भारत मेरा देश है तो हम ये नहीं कि कहते हम भारत के मालिक है. हम कहते हैं कि ये मातृभूमि है, मैं उसका पुत्र हूँ. माता के लिये मेरा जन्म है. हम इसके उत्तरदायी हैं.  जितने जल्दी हिन्दू समाज खड़ा हो जायेगा उतने जल्दी भारतभूमि पर बसने वाले हर एक का, वो किसी की भी पूजा करता हो, हर एक कल्याण होगा. और जब तक भारत भूमि में हिन्दू खड़ा नहीं है तब तक किसी का कल्याण नहीं है. क्या है, पाकिस्तान तो भारत भूमि ही है न. ये तो 1947 में कुछ हुआ इसलिये अभी वहां गयी है. परमानेंट थोड़े ही है. लेकिन आप देखिये वहां हिन्दू को खड़ा होने लायक नहीं रखा. उस दिन से आज तक पाक सुख में है या दुःख में? थोडा बहुत हिन्दू भारत में खड़ा है तो भारत पाकिस्तान से ज्यादा सुख में है कि दुःख में? यही है, जो भारत था उसमें हिन्दू जब तक खड़ा है, भारत के सब लोगों का कल्याण है. भारत में हिन्दू अगर उत्तरदायी होकर खड़ा नहीं होता,संगठित होकर खड़ा नहीं होता, शक्तिसंपन्न होकर खड़ा नहीं होता तो भारतवर्ष में रहने वाले प्रत्येक को दुःख का ही सामना करना पड़ेगा. हम अपना दुःख दूर कर रहे हैं, उससे दुनिया का दुःख दूर होने वाला है. ये समझें कि हम खड़े हो रहे हैं. जिनकी स्वार्थ की दूकान बंद होगी, जिनकी दुष्टता चल नहीं सकेगी, वे विरोध करने का थोड़ा-बहुत प्रयास करेंगे. संघर्ष थोड़ा- बहुत होगा. लेकिन संघर्ष करते समय भी हमको पता है कि ये तो हमारा दुष्टों की दुष्टता के विरुद्ध संघर्ष है. स्वार्थी लोगों के स्वार्थ के विरुद्ध संघर्ष है. हम किसी का व्देष नहीं करते. एक राजकुमार को पूछा युद्धविद्या सीखने के बाद कि कितना सीखे हो ? कितने लोगों से लड़ सकते हो ? उसने उत्तर दिया कि मैं लड़ता नहीं हूँ किसी से, मैं किसी से दुश्मनी नहीं करता क्योंकि कोई मेरा दुश्मन नहीं है. लेकिन मैं जानता हूँ कि दुनिया दुष्ट है और उसमें दुश्मनी करने वाले लोग हैं. तो ऐसे दुश्मनों से अपने आप को और अपनी प्रजा को मैं बचा सकता हूँ, इतना लड़ना मैं जानता हूँ. हिन्दू भी इतना लड़ना जानता है और हिन्दू इतना ही लड़ता है, इससे ज्यादा नहीं लड़ता.

हिन्दू के प्रति किसी प्रकार की शंका करने का कोई कारण नहीं. हम हिन्दू हैं, हम हिन्दू रहेंगे और हिंदुत्व के जो काल सुसंगत शाश्वत तत्व हैं, जो सारी दुनिया पर लागू होते हैं, जिनके आधार पर चलने से दुनिया का कल्याण होगा, उन तत्वों को अपने आचरण से हम सारी दुनिया को देने वाला हिन्दुस्थान खड़ा करना चाह रहे हैं. उसको हम खड़ा करके रहेंगे. आज के सम्मलेन का अंतिम वृहत संकल्प यही है. हिन्दुस्थान में परम वैभव संपन्न हिन्दू राष्ट्र और सुखी-सुन्दर मानवता संपन्न दुनिया बनाने वाला विश्व गुरु हिन्दुस्थान, इसको खड़ा करने के लिये हमने संकल्प लिया है ‘प्रारंभिक संकल्प’. हमें उसके आचरण पर पक्का रहना है. देखियेगा ज्यादा समय नहीं लगेगा. यहाँ बैठे हुए जवानों की जवानी पार होने के पहले जो परिवर्तन आप जीवन में चाहते हो, उस परिवर्तन को होता हुआ आप अपनी आँखों से देखोगे. एक शर्त है, आज जो संकल्प आपने लिये उन पर आपको हर कीमत पर पक्का रहना पड़ेगा. इसलिये इन संकल्पों का स्मरण नित्य मन में रखिये और अपना आचरण उस स्मरण के अनुसार कीजिये. एक ही बात मैं आपके सामने रखता हूँ. निर्भय होकर, आश्वस्त होकर अंतिम विजय की आश्वस्ति मन में लेकर हम सब लोग चलना प्रारंभ करें, इतना आह्वान करता हूँ.

(कोलकाता में शनिवार, 21 दिसंबर को विश्व हिन्दू परिषद व्दारा पहली बार आयोजित सार्वजनिक सभा में) 

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