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टीआरपी के चक्कर में असंवेदनशील हुआ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया

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भारत में प्राइवेट टीवी मीडिया को आए तकरीबन २८ साल हो रहे हैं और न्यूज़ चैनल को लगभग २० साल. इन २० साल में भी न्यूज़ चैनल्स अभी तक संवेदनशील मुद्दों पर अक्सर बहुत ही असंवेदनशील और मज़ाक के पात्र बने दिखते हैं. ऐसा लगता है, इनका बचपना अभी तक गया नहीं. श्रीदेवी की मौत पर बाथ टब में बैठ कर रिपोर्टिंग करना या अभी सुशांत सिंह के पिता के मुंह में माइक घुसेड़ कर उनसे कुछ कहलवाना. अरे, जिसका जवान बेटा कुछ समय पहले असामयिक गुजर गया, आप उसके घर में घुस कर ज़बरदस्ती कुछ भी और कौन सी बात पूछना चाहते हैं. वही बचकाना सवाल कि आप को कैसा महसूस हो रहा है या वो बचपन में कैसा था, उसकी हिट फिल्म कौन सी थी, आपकी बात कब हुई….??? एक परिवार का व्यक्ति चला गया और ये लिख रहे हैं हिट विकेट, मुंबई में फेल क्यों आदि…आदि….

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