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प्रकृति और मानव को संतुलित रखता है यज्ञ – महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरी जी महाराज

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नई दिल्ली. लक्ष्मी नारायण मंदिर (बिड़ला मंदिर) में छह दिवसीय चतुर्वेद स्वाहाकार महायज्ञ कार्यक्रम का आयोजन विश्व हिन्दू परिषद् व अशोक सिंघल फाउंडेशन द्वारा किया जा रहा है. लक्ष्मीनारायण मंदिर, मंदिर मार्ग में वेदों को लेकर पूज्य संतों, माताओं, बहनों, पुरुषों ने तीन किमी यात्रा की. श्रीश्रीश्री त्रिदंडी स्वामी रामानुजाचार्य चिन्जय स्वामी जी ने विस्तार पूर्वक वेद से सम्बन्धित छह दिवसीय आयोजन में होने वाली सम्पूर्ण प्रक्रिया की जानकारी दी. उन्होंने यज्ञ की प्रक्रिया को बताया कि यज्ञ में क्या और क्यों यह हो रहा है तथा इसके पीछे का उद्देश्य बताया. दोनों सत्रों में प्रातः 9 बजे से दोपहर 12 बजे तक और शाम को 5 बजे से रात्रि 8 बजे तक चारों वेदों का अलग-अलग यज्ञ कुंडों पर उच्चारण होगा, वेद मंत्र कंठस्थ वेदपाठी, विद्वानों द्वारा अलग-अलग यज्ञ कुंडों में शुद्ध सस्वर उच्चारण करते हुए यज्ञ में आहुति दी. इसी क्रम में 14 अक्तूबर को प्रातः पूर्णाहुति संपन्न होगी.

जूना अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरी जी ने महायज्ञ के उद्देश्य पर कहा कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण विश्व में वैष्मयता बढ़ रही है, प्रकृति में प्रतिकूलता बढ़ रही है तो हम ऐसा मानते हैं कि यज्ञ के माध्यम से धरती, अम्बर, अग्नि, जल, वायु, निहारिका, नक्षत्रों का संतुलन बनेगा और प्राणियों में सद्भावना आती है. यज्ञ से उन्माद शिथिल होता है, उत्तेजना शिथिल होती है. यज्ञ के माध्यम से जो हारमोन-कैमिकल्स डेवलप होते हैं जो व्यक्ति को सहज, स्वाभाविक, नैसर्गिक, प्रकृतिक और संयमित रखते हैं, उसे संतुलित करते हैं. यज्ञ से पाचक रस सहज बनते हैं. यज्ञ के परिणाम यह भी देखे गए कि समूची प्रकृति में एकता आ जाती है, एकरूपता आ जाती है. यज्ञ सब के कल्याण की चीज है.. सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे संतु निरामयः, तो सबका आनन्द हो, सबके स्वाभिमान सम्मान की रक्षा हो.

विश्व हिन्दू परिषद की प्रबन्ध समिति के सदस्य दिनेश चन्द्र जी ने कहा कि विश्व के कल्याण के लिए यह यज्ञ है. वेद के विषय में अनेक भ्रांतियां फैली हैं, जैसे महिलाएं वेद नहीं पढ़-सुन नहीं सकतीं, कोई विशेष वर्ग नहीं सुन सकता, यह सच नहीं है. यजुर्वेद के 26वें मंडल के दूसरे अध्याय में बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि वेदों का ब्रह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, नारी, सेवक कोई भी श्रवण, अध्ययन और पठन कर सकता है और किसी को भी उसका श्रवण करा सकता है. वेद के बारे में फैले भ्रम इत्यादि दूर हों, इसलिए दिल्ली में ऐसा महायज्ञ पहली बार हो रहा है. सामाजिक समरसता की दृष्टि से भी यह ऐतिहासिक है, इसमें झुग्गियों से लेकर महलों तक रहने वाले विभिन्न समाज नेता, धर्म नेता, राज नेता, सभी को बुला रहे हैं, वे सब आ रहे हैं. दक्षिण के 61 आचार्य यहां आए हुए हैं, जिनको वेद कंठस्थ हैं. घनपाठी विद्वान आए हैं जो शुरु से जो वाक्य पढ़ा उसे उसी स्वर में विपरीत दिशा में भी उसको उसी रूप में बोल सकते हैं, ऐसे वर्षों में तैयार होने वाले घनपाठी विद्वान भी यहां आए हैं.

महायज्ञ में यजमान के नाते महेश भागचंदका व उनका परिवार, विश्व हिन्दू परिषद के संयुक्त महामंत्री कोटेश्वर जी, विश्व हिन्दू परिषद से दिनेश चन्द्र जी एवं अनिल सिंघल जी का परिवार, कोहली टेंट के कीमती लाल धर्म पत्नी, पुत्र एवं पुत्र वधु सहित उपस्थित थे. प्रातः 8:15 बजे से यह सभी यजमानों ने पूर्ण विधि विधान से पांचों यज्ञ कुंडों में भगवान को अपर्ण करते हुए विधिवत आहुति दी.

वेद कंठस्थ करने की जो परंपरा विश्व हिन्दू परिषद ने गत 17 वर्षों से प्रारम्भ की है, उसमें मंडोली के वेद विद्यालय के बटुक भी इस यज्ञ में वेद मंत्रोच्चारण करते हुए उपस्थित थे. माताएं, बहनें, पुरुष और अनेक विद्वान, संस्कृत के अनेक ज्ञाता, लाल बहादुर शास्त्री संस्कृत विश्व विद्यालय के कुलपति रमेश पांडे जी महाराज, उनके साथ जिनको अलग-अलग वेद कंठस्थ हैं, ऐसे प्रोफेसर सहचार के रूप में यहां उपस्थित थे. विश्व हिन्दू परिषद के संगठन महामंत्री मिलिंद जी परांडे, संगठन महामंत्री विनायक देशपांडे जी, संयुक्त महामंत्री राघवलू जी, विद्या भारती अखिल भारतीय सह संगठन मंत्री शिव कुमार जी, संस्कृत भारती से श्रीनिवास जी, व समाज के अनेक प्रबुद्ध लोग महायज्ञ में सम्मिलित हुए.

यज्ञ सत्र में प्रयाग के सच्चा बाबा गोपाल जी, ऋषिकेश के जगद्गुरु कृष्णाचार्य जी महाराज, महामंडलेशवर प्रज्ञानंद जी आदि संतों ने वेदों पर अपने विचार रखे.

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