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भौतिकता को छोड़ आध्यात्मिकता का मार्ग अपना श्रेष्ठ जीवन निर्वाह करें

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आदिदेव महादेव का परमधाम केदारनाथ 3,562 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है. केदारनाथ समुद्र सतह से 11,800 फुट की ऊंचाई पर बसा हुआ है. भव्य, दिव्य व सुमनोहर पर्वत श्रृंखला के साथ कई नदियों और झीलों से घिरा हुआ है. इस पावन स्थल के एक चौथाई भूभाग में केवल हिमनद या ग्लेशियर ही हैं. एक ओर चौराबाड़ी हिमनद से निकलती मंदाकिनी, तो दूसरी ओर वासुकी ताल से निकलती दूध गंगा और मधु गंगा, इसके साथ ही ऊपर से आती सरस्वती की जलधारा, ये सब केदारनाथ के आध्यात्मिक, प्राकृतिक व दिव्य शक्ति के प्रतीक हैं.

पर्वतराज हिमालय के उत्तुंग शिखर पर इन हिमनदों, नदियों और पवित्र कुंडों व तालों के मध्य केदारनाथ के मन्दिर को 1000 वर्ष से भी पूर्व निर्मित माना जाता है. कत्यूरी शैली में निर्मित द्वादश ज्योतिर्लिंग और पंचकेदार में श्रेष्ठ यह सिद्धपीठ श्रद्धालुओं के लिए परम आस्था का केंद्र है. भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि ने यहाँ भोले शंकर की तपस्या की थी और उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट होकर केदारनाथ में विराजने लगे. महाभारत के युद्ध में विजय श्री पाने के बाद अपने भाइयों और स्वजनों की हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए पांडव सब ओर भोलेनाथ को खोजते हुए, भगवान शंकर का आशीर्वाद पाने केदारनाथ तक पहुंचे थे. पांडवों से बचने के लिए भगवान शंकर ने तब बैल का रूप धारण किया और पशुओं के बीच चरने लगे, शंका होने पर भीम ने दो पर्वतों के बीच अपने दोनों पैर फैला दिए, सभी पशु भीम के पैरों के नीचे से निकले प्रभु रूपी बैल नहीं निकला. आखिर भगवान शंकर पांडवों की भक्ति, दृढ़ संकल्प देख कर प्रसन्न हो गए. उन्होंने तत्काल दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया.

जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतर्ध्यान हुए, तो भीम ने उनको कमर की ओर से पकड़ लिया. उतना शरीर उसी रूप में केदार में विद्यमान है. भगवान शंकर के धड़ से ऊपर का भाग काठमाण्डू में प्रकट हुआ जो पशुपतिनाथ धाम के रूप में प्रसिद्ध हुआ. शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मद्महेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए. इसलिये श्री केदारनाथ सहित इन पांच धामों को पंचकेदार कहा जाता है. केदारनाथ मन्दिर में शिवलिंग स्वयंभू है. यहाँ द्रौपदी सहित पाँच पाण्डवों की मूर्तियाँ हैं. मंदिर के पीछे कई कुण्ड हैं. ऐसी मान्यता है कि केदारनाथ मन्दिर का निर्माण पांडवों या उनके वंशज जन्मेजय द्वारा करवाया गया था. बाद में इस मंदिर का जीर्णोद्धार जगद्गुरु आदिशंकराचार्य ने करवाया. मंदिर के पृष्ठभाग में शंकराचार्य जी की समाधि है.

केदारनाथ का महात्म्य वेदों और पुराणों में निहित है. स्कन्दपुराण में केदारधाम को देवताओं के लिए भी दुर्लभ और पृथ्वी का स्वर्ग माना गया है – “इति तत्परमं स्थानं देवानामपि दुर्लभं. केदारमंडलं ख्यातं भूम्यास्तदभिन्नकं स्थलं अर्थात् केदारनाथ देवताओं के लिए भी दुर्लभ पावन स्थल है, केदारनाथ नाम से विख्यात यह धाम सबसे भिन्न और श्रेष्ठ है. इसी महिमा व गुण के कारण न केवल भारतवर्ष के सम्पूर्ण क्षेत्र से, बल्कि विश्वभर से करोड़ों श्रद्धालु अपनी मनोकामना लिए केदारबाबा के द्वार पर उपस्थित होते हैं.

वर्ष 2013 में 16 व 17 जून के वे कालिमा भरे दिन, कोई भी श्रद्धालु नहीं भूल सकता. जब प्रकृति ने बाबा की केदारपुरी, रामबाड़ा और गरुड़चट्टी सहित समूचे क्षेत्र में भीषण आपदा का कहर बरपाया था. 14 जून से लगातार हो रही बारिश के कारण मन्दिर के पीछे ऊपरी क्षेत्र में स्थित चौराबाड़ी ताल अथवा गांधी सरोवर के ऊपर बादल फटा, प्रचंड पानी के वेग और उफनती मन्दाकिनी, जिसमें दूध गंगा और मधु गंगा मिलीं और समूची केदारघाटी जलमग्न हो गयी. 16 जून की शाम और 17 जून की सुबह मन्दिर प्रांगण से लेकर रामबाड़ा और गरुड़चट्टी तक सब भवन, होटल, मकान, आदमी, पशु, सब इसी जलप्लावन, बड़े विशालकाय पत्थरों और बालू में समा गए थे.

सरकारी आंकड़ों के अनुसार केदारनाथ की इस भयावह आपदा में देश-विदेश से आये पांच हजार से अधिक श्रद्धालु और स्थानीय कामगार असमय काल के मुंह में समा गए. बड़ी संख्या में मकान ध्वस्त हुए, हजारों भवन क्षतिग्रस्त हुए, लगभग 11,091 पशु मारे गए. 4,200 से ज्यादा गांवों का संपर्क टूट गया. ग्रामीणों की 1,309 हेक्टेयर भूमि बाढ़ में बह गई. 100 से ज्यादा बड़े व छोटे होटल ध्वस्त हो गए. यात्रा मार्ग में फंसे 90 हजार तीर्थयात्रियों को सेना ने और 30 हजार से अधिक लोगों को पुलिस ने बाहर निकाला. आपदा में नौ नेशनल हाई-वे, 35 स्टेट हाई-वे और 2385 सड़कें, 86 मोटर पुल, 172 बड़े और छोटे पुल बह गए या क्षतिग्रस्त हो गए.

बाबा केदारनाथ और हिमालय की गोद में हुई यह भीषण प्राकृतिक आपदा एक दुःस्वप्न से कम नहीं है. 16, 17 जून 2013 को बारिश, बाढ़ और भूस्खलन ने भारी तबाही मचाई थी, सब कुछ नष्ट हुआ, विलुप्त हुआ. किन्तु बाबा केदार का हजारों वर्ष पुराना मन्दिर एक विशाल भीमकाय प्रस्तर शिला की टेक से अडिग खड़ा रहा जो पूरे विश्व के लिए एक बड़ा आश्चर्य, किन्तु बाबा के भक्तों के लिए उनके आराध्य की परमशक्ति का प्रमाण था. मन्दिर के अंदर भी पांडवों की मूर्तियाँ उस विनाशलीला में खंडित हुईं, किन्तु स्वयंभूलिंग एकदम सुरक्षित रहा. मन्दिर के बाहर स्थित शिवलिंग और नंदी की प्रतिमा एकदम सुरक्षित रहीं.

जो श्रद्धालु उस भीषण त्रासदी को देखने और झेलने के बाद फिर कभी केदारनाथ न जाने की बात करते थे, वे आज फिर बाबा के दरबार में अपनी कामना और आकांक्षा को लेकर जाने को आतुर हैं. यही बाबा की शक्ति का चमत्कार है और यही बाबा के भक्तों की निश्छल भक्ति व दृढ़ विश्वास का प्रमाण. भोलेनाथ की यह लीला मानव के लिए संभवतः यह सन्देश है कि प्रकृति का सम्मान हो और पर्यावरण की रक्षा के साथ भौतिकता के बजाय आध्यात्मिकता का मार्ग अपनाकर मानव श्रेष्ठ जीवन का निर्वाह करे.

सूर्यप्रकाश सेमवाल

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