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असली उद्देश्य मतांतरण के लिये विवश करना है

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नैशनल डैमोक्रेटिक फ़्रंट आफ बोडोलैंड (सोंगबिजित) के धड़े ने पिछले दिनों असम प्रदेश के दो जिलों शोणितपुर और कोकराझार में जो नरसंहार किया, उससे मानवता भी लज्जित हो जाये. इस गिरोह के लोगों ने पांच अलग-अलग स्थानों के गांवों में लगभग 80 से भी ज़्यादा लोगों को मौत के घाट उतार दिया. इनमें ज़्यादातर औरतें और बच्चे ही थे. यहां तक कि एक पांच माह के बच्चे को भी गोली मारी गई. गिरोह की नृशंसता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि कुछ माह पहले इसने नौंवी कक्षा की एक लड़की को घर में घुसकर, पुलिस इनफ़ोरमर के नाम पर मार दिया. मारे जानेवाले जनजाति लोगों में से ज़्यादा संभाल, भील इत्यादि समुदायों के लोग थे. बोडो लोगों के नाम पर इस गिरोह का संचालन कर रहा सोंगबिजित स्वयं बोडो नहीं है. बताया जाता है कि इस गिरोह में 250 के लगभग लोग शामिल हैं. यह गिरोह आम बोडो समाज का प्रतिनिधि भी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि इनकी इस करतूत के बाद अनेक स्थानों पर बोडो समाज के लोगों ने भी इनके ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन किया.

जिन स्थानों पर इस गिरोह के लोगों ने जनजाति समाज के निर्दोष लोगों को अपना निशाना बनाया वे सभी अरुणाचल प्रदेश और भूटान की सीमा पर स्थित हैं. यह क्षेत्र स्थल संचार माध्यमों से प्रायः कटा हुआ ही है और जब तक पुलिस तक सूचना पहुंचती है और पुलिस घटनास्थल पर पहुंचती है, तब तक इस गिरोह के लोग भूटान या अरुणाचल प्रदेश या म्यांमार की सीमा में पहुंच जाते हैं. दुर्भाग्य से म्यांमार के पर्वतीय क्षेत्रों में भी ईसाई मिशनरियों ने मतान्तरण का काम बहुत तेज़ किया हुआ है और उन इलाक़ों में भी अलगाव का भाव पैदा किया हुआ है. इसलिए वहां के ऐसे अलगाववादी गिरोह नैशनल डैमोक्रेटिक फ्रंट आफ बोडोलैंड के अपराधियों को तुरन्त पनाह ही नहीं देते बल्कि अन्य सहायता भी करते हैं. वैसे असम पुलिस ने इस गिरोह के सरगना सोंगबिजित की सूचना देने के लिए दस लाख का ईनाम घोषित कर रखा है.

पूर्वोत्तर क्षेत्रों में पिछले कई दशकों से विदेशी पैसे के बल पर ईसाई मिशनरियां मतान्तरण के काम में लगी हुई हैं और उन्होंने अच्छी खासी संख्या में स्थानीय लोगों को मतान्तरित भी कर लिया है. इन विदेशी मिशनरियों का संचालन ही विदेशी पैसे से नहीं होता, बल्कि इनकी कार्य योजना भी विदेशों में बैठे इनके आका ही बनाते हैं. मतान्तरण के बाद इन मिशनरियों का दूसरा पग इस मतान्तरित समुदाय में अलगाव के भाव पैदा करना होता है. राजनीति विज्ञान में कहा भी गया है कि मतान्तरण से राष्ट्रन्तरण होता है. अलगाव पैदा करने के बाद आतंक के बल पर अन्य समुदाय के लोगों को डराकर नस्ली सफ़ाये (वंश विच्छेद) का लक्ष्य रहता है. सोंगबिजित का यह गिरोह फ़िलहाल इसी तीसरे चरण के काम में लगा हुआ है. इस गिरोह ने अपनी इस रणनीति को छिपाने के लिए अपने इस गिरोह का नाम नैशनल डैमोक्रेटिक फ़्रंट आफ बोडोलैंड रखा हुआ है, ताकि प्रथम दृष्ट्या यह एक राजनीतिक आन्दोलन दिखाई दे. लेकिन इसका मुख्य उद्देश्य असम के जनजाति क्षेत्रों में आतंक के बल पर अपना वर्चस्व स्थापित करना है ताकि ग़ैर ईसाई जनजाति समाज को या तो वहां से भगा दिया जाए या फिर मतान्तरण के लिये परोक्ष रूप से विवश किया जा सके. स्थानीय जनजाति समाज पर इस गिरोह के पैशाचिक आक्रमण के बाद वहां के जनजाति लोगों का पश्चिमी बंगाल की ओर पलायन शुरू हो गया है. दुर्भाग्य से राज्य सरकार जब इस प्रकार के गिरोहों पर विचार करती है तो या तो उनके सरगनाओं को राजनीतिक आन्दोलन के नाम पर बातचीत के लिए बुलाकर उनकी प्रतिष्ठा को बढ़ाने का काम करती है या फिर शान्ति स्थापना के नाम पर विदेशी पैसे के बल पर खांस रही मिशनरियों के आगे घुटने टेक देती हैं. उनकी इस कृत्रिम प्रतिष्ठा के कारण प्रशासन के अंग उन पर कार्यवाही करने से घबराते रहते हैं.

दरअसल असम में सोनिया कांग्रेस की सरकार राज्य में ईसाईयों मिशनरियों के कामकाज की जांच करने के स्थान पर, उनको कामकाज की सुविधाएं मुहैया करवाती हैं. यही कारण है कि इस प्रकार के गिरोहों का साहस बढ़ता जाता है. केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने ठीक ही कहा है कि इस प्रकार के अपराधी गिरोहों से बात करने का सवाल ही पैदा नहीं होता. उनकी गतिविधि को राजनीतिक गतिविधि न मान कर आतंक और अपराध की गतिविधि ही माना जायेगा और उसी के अनुरूप इनके सरगनाओं पर पकड़े जाने के बाद कार्यवाही की जायेगी. लेकिन इसके साथ ही जरुरी है कि इस गिरोह और पूर्वोत्तर में सक्रिय इस प्रकार के अन्य गिरोहों के पीछे काम कर रही असली ताक़तों की शिनाख्त कर ली जाये और उन्हें कटघरे में खड़ा किया जाये. कहा भी गया है, चोर को न मारो चोर की माँ को मारो.

लेकिन नैशनल डैमोक्रेटिक फ्रंट आफ बोडोलैंड के मामले में चोर तो जाना पहचाना ही है और उसकी शिनाख्त अरसा पहले हो चुकी है. अब तो उसे केवल पकड़ना ही बाक़ी है. उसके लिए भी सरकार ने दस लाख का ईनाम घोषित किया हुआ है. देखना केवल इतना ही है कि सरकार के हाथ लम्बे हैं या अपराधी की दौड़. लेकिन जांच एजेंसियों का असली काम तो उन ताक़तों का पता लगाना है जो गले में क्रास लटकाकर, उसके आगे बोडोलैंड की प्लेट चिपकाकर, पूर्वोत्तर में अपना अपना ख़ूनी खेल खेल रही है.

डॉ. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री, लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.

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