गोरखपुर (विसंकें). अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के राष्ट्रीय संगठन सचिव डॉ. बाल मुकुंद जी ने कहा कि इतिहास के समक्ष यह सोचने का बिन्दु है कि आखिर सन् 1857 की प्रथम राष्ट्रीय क्रांति के काल में न तो सांप्रदायिक कट्टरवाद था और न ही जातिवादिता. लेकिन पाश्चात्य जगत ने आंग्लदासता से युक्त इतिहास लिखने के लिए हमारे राष्ट्रीय इतिहास के गौरव का मर्दन करने का कुप्रयास किया. यह सौभाग्य का विषय रहा कि तत्कालीन भारतीय राष्ट्रवादी इतिहासकारों और आध्यात्मिक संतों ने राष्ट्रीय इतिहास और राष्ट्रीय चेतना के पुनर्जागरण का दायित्व अपने कंधों पर संभाला. डॉ. बालमुकुंद जी 16 दिसम्बर को गोरखपुर विश्वविद्यालय के 36वें दीक्षा समारोह सप्ताह के अंतर्गत इतिहास विभाग द्वारा आयोजित विशिष्ट व्याख्यान ‘जरा याद करो कुर्बानी’ में मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे.
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि भारतीय नीति प्रतिष्ठान के निदेशक, संघ विचारक प्रो. राकेश सिन्हा जी ने कहा कि मार्क्सवादी इतिहासकारों का लेखन कुलीनता की भावना से भरा हुआ है. उनके लिए प्रथम राष्ट्रीय मुक्ति संग्राम के इतिहास में रानी झलकारीबाई का कोई महत्व नहीं है. यह विडंबना है कि हमारे राष्ट्रीय इतिहास के लेखन के लिए हमारी अभिदृष्टि भारतीय न होकर पाश्चात्य प्रधान है. कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे गोरखपुर विश्विद्यालय के कुलपति प्रो. वीके सिंह जी ने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि हमें आज अपनी सांस्कृतिक विरासत के प्रति समझ विकसित करनी होगी और इसे विरासत के रूप में संजोने के लिए संवेदनशील होना होगा. इससे पूर्व कार्यक्रम का शुभारंभ मा. अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन कर किया गया.