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आरएसएस के सह जिला संघचालक ने दिव्यांग बालक को परिवार से मिलवाया

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छत्तीसगढ़ (विसंकें). सक्ती ब्लॉक के भाठा (फगुरूम) निवासी दिव्यांग बालक कन्हैया 13 साल पहले गलत ट्रेन पर बैठकर दिल्ली पहुंच गया था. पंजाब, हरियाणा में दर-दर भटकते हुए युवक विक्षिप्त हो गया और उत्तरप्रदेश के निरपुरा गांव के एक किसान के घर जा पहुंचा, जहां किसान ने उसे अपने बेटे की तरह रखा और ठीक होने पर उसके द्वारा बताई जगहों की तलाश की.

इसी दौरान सेवानिवृत्त शिक्षक को उसके बारे में जानकारी मिली. उन्होंने मानवता का परिचय देते हुए यूपी से लाकर युवक को बिछड़े मां-बाप से मिलाया. सेवानिवृत्त शिक्षक आरएसएस के सह जिला संघचालक ओम प्रकाश साहू ने बताया कि सक्ती तहसील के फगुरूम के पास भाठा निवासी दिव्यांग कन्हैया चौहान ने वर्ष 2004 में पामगढ़ के दृष्टि एवं श्रवण बाधित आवासीय स्कूल से छुट्टी के बाद सक्ती जाने के लिए चांपा से ट्रेन पकड़ी, परन्तु भूल से वह दिल्ली की ओर जाने वाली ट्रेन पर चढ़ गया. बोल व सुन नहीं पाने के कारण किसी को नाम, पता व गांव का नाम नहीं बता पाया. कन्हैया पंजाब, हरियाणा एवं उत्तर प्रदेश के अनेक गांवों में भटकता रहा. उसकी मानसिक स्थिति बिगड़ चुकी थी, कन्हैया भटकते-भटकते यूपी के बागपत जिले के बडौत तहसील के गांव निरपुरा में 2013 में किसान सतीश जाट के घर जा पहुंचा. किसान ने उसे पानी व खाना दिया. खाना मिलने से कन्हैया वहां रोज आने लगा.

युवक की हालत देखकर किसान ने उसे घर में रख लिया और पहनने के लिए कुछ कपड़े भी दिये. धीरे-धीरे कन्हैया परिवार में घुलमिल गया और खेत भी जाने लगा. धीरे-धीरे मानसिक स्थिति ठीक होने लगी और जनवरी 2017 में युवक को याद आने पर उसने कापी पर लिखकर घर का पता सक्तीभाठा बिलासपुर लिखा. किसान सतीश ने फिर छत्तीसगढ़ से आए कुछ मजदूरों से पूछताछ की तो उसे बिलासपुर शहर का पता मिला. उसने गांव के पढ़े लिखे लोगों से संपर्क कर इंटरनेट के माध्यम से बिलासपुर के आनंद निकेतन मूक-बधिर विद्यालय की संचालिका ममता मिश्रा से संपर्क किया और उसे सारी बात बताई. कुछ महीने बाद चांपा में एक बैठक के दौरान ममता शर्मा ने उनसे (ओमप्रकाश जी) से इस संबंध में चर्चा की, जिससे उसके माता-पिता का निवास भूपदेवपुर के पास लोड़ाधर गांव का पता चला. लोड़ाधर जाकर माता-पिता से मिलने पर सारी स्थिति स्पष्ट हो गई. फोटो से उन्होंने अपने बेटे को पहचान लिया. कन्हैया जब अपने माता-पिता के साथ सतीश के घर से अपने घर जाने के लिये निकला तो सतीश जाट के साथ ही उनकी पत्नी, व 85 वर्षीया मां की आंखें छलक उठी. किसान ने युवक को आत्मनिर्भर बनने के लिए 30 हजार रुपए भी दिए.

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