एक ऐसी पद्धति जिस पर चलकर असंख्य कर्म योगियों ने अपने जीवन को खपा दिया व इस राष्ट्र मंदिर को महकाया. उन्हीं पूजनीय डॉक्टर हेडगेवार की माला के मोती उस पथ के पथिक स्वर्गीय श्री सोहन सिंह जी थे. जिन्होंने दधिची की तरह अपने जीवन को गला दिया. जीवन का हर क्षण, हर पल राष्ट्र को समर्पित कर दिया.
उनका चयन भारतीय वायुसेना में हो गया था, किन्तु देश सेवा के निमित्त उन्होंने नौकरी को ठुकरा दिया था.
राष्ट्रीय आपातकाल के समय सोहन जी उत्तर क्षेत्र के क्षेत्र प्रचारक थे. उन्होंने एक लाख स्वयंसेवकों को परिवारों में ठहराने की व्यवस्था पहले से ही बना रखी थी. यह पूरी योजना वह एक महीने पहले ही बना चुके थे, ऐसा दूरदर्शी नेतृत्व उनका था.
वे देश की स्वतंत्रता से पूर्व प्रचारक निकले थे. वे व्यक्ति निर्माण कला के मर्मज्ञ थे. सैकड़ों कार्यकर्ताओं को उन्होंने गढ़ा. कार्यकर्ताओं की खूब संभाल करते थे. वे कर्तव्य कठोर थे, अत्यंत परिश्रम करते थे. एक वर्ग में वर्ग व्यवस्था में उन्होंने रात के वक्त स्वयं घड़ों में पानी भरा.
जम्मू कश्मीर की चिंता उनको सदैव रहती थी. उनकी योजना होती थी कि जो भी प्रचारक जम्मू जाता था, वे उनसे भेंट करते व वहां की परिस्थीति और चुनौतियों को लेकर चर्चा करते थे.
अंतिम दिनों में भी उन्होंने किसी सहयोगी को सेवा के लिए नहीं लिया. अस्वस्थता के बारे में किसी से कुछ नहीं बोलते थे. अंतिम दिनों में भी स्वयं ही अपने कपड़े धोए. ऐसे श्रेष्ठ कार्यकर्ता का जीवन हमें असाधारण परिस्थितियों में काम करने की प्रेरणा देता है.