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कोरोना सीजन में ’फेक न्यूज’ की खेती

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रविन्द्र सिंह भड़वाल

धर्मशाला

हाल ही में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने चिंता जाहिर करते हुए कहा था कि कोरोना के चुनौतीपूर्ण समय में मीडिया जिम्मेदारी के साथ खबरें चलाए. इसके साथ ही इसने यह भी स्पष्ट किया कि कोरोना वायरस से जुड़ी कोई भी खबर दिखाते समय सोशल मीडिया पर चल रही फेक न्यूज से बचा जाए. बेशक यह जरूरी है कि कोरोना से जुड़ी आवश्यक सूचना देश के हर नागरिक तक पहुंच सके. इसके लिए न्यायालय ने महामारी से जुड़ी प्रामाणिक सूचना हर नागरिक तक पहुंचाने के लिए केंद्र सरकार को एक पोर्टल बनाने का निर्देश भी दिया था, ताकि कोरोना वायरस को लेकर रियल टाइम इंफॉर्मेशन लोगों तक पहुंचाई जा सके. इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने कोरोना वायरस को लेकर फैलाई जा रही फेक न्यूज पर रोक लगाने के निर्देश भी दिए, जिससे जनता में बेवजह की घबराहट को रोका जा सके. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस तरह की कठिन परिस्थिति में इलेक्ट्रॉनिक, प्रिंट, सोशल मीडिया या वेब पोर्टल्स के जरिए किसी भी तरह की फेक जानकारी फैलना बेहद गंभीर है. इससे समाज में बड़े स्तर पर दहशत पैदा होने की आशंका रहती है.

न्यायालय के निर्देशों की अवहेलना करते हुए कुछ मीडिया संस्थान फेक न्यूज फैलाने से बाज नहीं आ रहे. ये मीडिया संस्थान झूठी खबरें प्रकाशित करके लोगों में अतिरिक्त बेचैनी और डर का माहौल बना रहे हैं. इस तरह की झूठी खबरों और अफवाहों के कारण समाज में अराजकता फैलने का डर बना रहता है. इस हकीकत से परिचित और न्यायपालिका के निर्देशों के बावजूद देश के कई मीडिया संस्थान बदस्तूर अपनी फैक्टरी में फेक न्यूज पका रहे हैं. इन्हीं में से एक है एनडीटीवी. एनडीटीवी पहले भी कई बार फेक न्यूज के प्रसार के लिए चर्चा में रहा है और अब कोरोना महामारी के दौरान भी रह-रहकर इसने फेक न्यूज का खेल जारी रखा है.

एनडीटीवी द्वारा प्रकाशित अरुणाचल प्रदेश से संबंधित एक खबर के अंश इस प्रकार हैं – देश में कोरोना का कहर जारी है. कोरोना वायरस से भारत में अब तक 500 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है और 16 हजार से अधिक संक्रमित हैं. कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए पूरे देश में 3 मई तक लॉकडाउन लगाया गया है. इस बीच सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा, जिसमें तीन लोग 12 फीट लंबे किंग कोबरा को मारकर कंधे पर लिए दिख रहे हैं. वीडियो अरुणाचल प्रदेश का है. वीडियो में इन लोगों को यह कहते हुए सुना जा सकता है कि उन्होंने इस जहरीले सांप को खाने के लिए जंगल में मारा है. उन्होंने दावत के लिए पूरा इंतजाम किया था और मांस को साफ करने तथा उसके टुकड़े करने के लिए केले के पत्तों की भी व्यवस्था की थी. वायरल वीडियो में उनमें से एक को यह कहते हुए सुना जा सकता है कि कोरोना वायरस महामारी को लेकर जारी लॉकडाउन के दौरान उनके पास खाने के लिए घर में चावल नहीं बचा. इसलिए हम जंगल में गए और कुछ ढूंढ रहे थे, तभी यह (किंग कोबरा) मिला.’
हालांकि, अरुणाचल प्रदेश सरकार ने खुद आगे आकर इस दावे को खारिज कर दिया कि राज्य में चावल की कोई कमी है. सरकार की तरफ से एक बयान में कहा गया, ’राज्य के पास सभी स्थानों पर कम से कम तीन महीने का स्टॉक है और जो लोग अपनी आजीविका खो चुके हैं, उन्हें मुफ्त राशन दिया जा रहा है.’

एनडीटीवी ने यह साबित करने का प्रयास किया कि कोरोना के चलते लोगों को खाने-पीने की वस्तुओं की किल्लत होने लगी है और हालत यह हो गई है कि लोग अपना पेट भरने के लिए सांप तक को खाने लगे हैं. ऐजेंडा चलाने का प्रयास किया कि सरकारें संकट के दौरान चावल जैसे खाद्यान्न और आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति करने में भी असफल हुई हैं. इस खबर को जिस किसी ने भी पढ़ा और सुना होगा, वह यकीनन विचलित हुआ होगा.

इसी प्रकार एक अन्य फर्जी खबर छापने पर एनडीटीवी की खूब फजीहत हुई थी. एनडीटीवी ने लोगों को डराने के लिए एक विदेशी यूनिवर्सिटी का कपोलकल्पित अध्ययन डिजाइन किया और फिर उसे खबर की शक्ल दे दी. इसके बाद लोगों में काफी हलचल भी मची. हालांकि बाद में कुछ जागरूक नागरिकों और संस्थाओं की सजगता से वह चोरी भी पकड़ी गई. एनडीटीवी ने एक खबर चलाई, जिसमें कहा गया – अगले तीन महीने में भारत में कोरोना वायरस के 25 करोड़ मामले आ सकते हैं. चैनल द्वारा दिए गए आंकड़ों की मानें तो देश की 20 फीसदी जनता कोरोना वायरस से पीड़ित होगी. एनडीटीवी ने दावा किया कि ये आंकड़े जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के अध्ययन में सामने आए हैं. हैरानी यह कि ’ ऐसे ‘अध्ययन’ का हवाला दिया गया, जिसे करने वाले को ही इसके बारे में कुछ पता नहीं था. एनडीटीवी ने यूनिवर्सिटी के हवाले से लिखा कि अप्रैल-मई तक ऐसी तबाही आएगी. इस खबर के सामने आने के बाद जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी ने इसे नकार दिया. अमेरिका के मेरीलैंड में स्थित यूनिवर्सिटी ने स्पष्टीकरण जारी करते हुए बताया कि उसने ऐसा कोई रिसर्च प्रकाशित नहीं किया है. यूनिवर्सिटी ने लिखा कि इस कथित ‘रिसर्च’ में उसके लोगो और नाम का भी गलत इस्तेमाल किया गया है. लोगों ने ट्विटर पर जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी से इस बारे में पूछा था, जिसके बाद उसने यह स्पष्टीकरण दिया. लोगों ने यूनिवर्सिटी को टैग करके पूछा था कि यह ‘रिसर्च’ भारत में खूब वायरल हो रहा है, क्या यह यूनिवर्सिटी के छात्रों का है? लेकिन यूनिवर्सिटी ने इसे स्पष्ट तौर पर नकार दिया. बाद में पोल खुलने पर एनडीटीवी ने इस खबर को डिलीट कर दिया.

एनडीटीवी ने तीसरा फेक न्यूज कोरोना का वैक्सीन खोजने से संबंधित चलाया. हालांकि ये सभी जानते हैं कि कोरोना का अभी तक कोई इलाज नहीं है, फिर भी इसने वैक्सीन खोजे जाने की खबर चला दी. इसके लिए एनडीटीवी इंडिया ने अमरीका के एक तथाकथित भारतीय वैज्ञानिक का साक्षात्कार प्रसारित किया. इस झूठे इंटरव्यू में बताया गया कि प्रयाग के रहने वाले फराज जैदी अमरीका में उस टीम की अगुवाई कर रहे हैं, जो कोराना वैक्सीन तैयार करने में जुटी है. इस झूठ को गढ़ते समय विशेष तौर पर ध्यान रखा गया कि एनडीटीवी और रविश कुमार अपने मुस्लिम प्रेम का भी इजहार कर सकें. बाद में फिलाडेल्फिया के विस्टार इंस्टीट्यूट की वेबसाइट से पता चला कि जिस फराज जैदी को रविश कुमार ने एक नायक बनाने के लिए कड़ी मेहनत करके फेक न्यूज गढ़ी, वो वैज्ञानिक भी नहीं है. वास्तव में उस संस्थान में कई भारतीय मूल के वैज्ञानिक भी हैं, लेकिन उनका वो धर्म नहीं था जो उनको और उनके चैनल के नैरेटिव को सूट करता हो. इसलिए उनका जिक्र तक करना रविश कुमार ने जरूरी नहीं समझा.

फर्जी पत्रकारिता के जरिए एनडीटीवी जैसे चैनल भले कुछ टीआरपी कमा लें या समाज को भ्रमित करने वाली सोच को पोषित कर लें, लेकिन एक पेशे के तौर पर सारे पत्रकारिता जगत की विश्वसनीयता खतरे में आ जाती है.

वामपंथी गिरोह का एक अन्य सदस्य है #Scroll, उसका भी झूठ फेक्ट चैक से उजागर हुआ. #Scroll ने समाचार प्रकाशित किया था – बिहार के जहानाबाद में खाने के आभाव में बच्चे व लोग मेंढक खा रहे हैं, लेकिन #PIBFactCheck में समाचार फर्जी व भ्रामक पाया गया. #Scroll के दावे की जाँच जिला कलेक्टर ने की, तो पाया कि दावा करने वाले के घर में पर्याप्त राशन और खाने की चीज़ें उपलब्ध हैं.

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